सूत्रों के अनुसार पूरे यूपी में अवैध मीट का कारोबार करीब 60 करोड़ रुपये प्रतिदिन का है। जबकि प्रदेशभर में 250 लाइसेंसधारी छोटी इकाई 475 करोड़ रुपये रोज का कारोबार करती हैं। अवैध मीट कारोबार में कत्लखानों से जुड़े मजदूरों की संख्या करीब 12 हजार है। जबकि लाइसेंस वाले कत्लखानों में 38 हजार दिहाड़ी मजदूर काम करते हैं। दिहाड़ी मजदूरों को अनुमानित 300 रुपये रोजाना मजदूरी मिलती है।
यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में अवैध और यांत्रिक कत्लखानों को बंद करने की बात कही थी। एक दिन पहले भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने भी कहा है कि जल्द ही अवैध और यांत्रिक कत्लखाने बंद किए जाएंगे। सभी यांत्रिक कत्लखाने लाइसेंस पर चल रहे हैं। जबकि आम बाजार में आ रहा मीट अवैध कत्लखानों से आ रहा है।
अलीगढ़, मेरठ, संभल, मथुरा, आगरा, कानपुर में अधिकारियों ने मौखिक आदेश जारी कर जल्द से जल्द अवैध कत्लखानों को बंद करने का फरमान सुना दिया है। जिसके चलते मेरठ में कुछ हंगामा भी हुआ था.
मेरठ के आम बाजार में 60 प्रतिशत भैंस का मीट सप्लाई करने व़ाले कारोबारी बताते हैं कि नगर निगम का और लाइसेंस से चलने वाले कत्लखाने शहरी सीमा से दूर हैं। इसलिए आम दुकानदार इतनी दूर मीट लेने नहीं जाता है। जिसके चलते गली-मोहल्ले में ही अवैध कत्लखाना शुरु हो जाता है। जहां से शहर के छोटे-छोटे दुकानदारों को मीट सप्लाई कर दिया जाता है।