स्वीट्जरलैंड और मैक्सिको की यात्रा का कार्यक्रम आखिरी समय में बनाया गया था। एनएसजी की एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्लेनरी बैठक सियोल में नौ जून को बुलाई गई है। इसी के मद्देनजर आनन-फानन में दोनों देशों के दौरे का कार्यक्रम बनाया गया। भारत ने 12 जून को सदस्यता के लिए आवेदन किया था। पाकिस्तान ने भी आवेदन कर रखा है। चीन ने भारत की सदस्यता को लेकर आपत्ति जता रखी है। ऐसे में भारत लॉबिंग में जुटा हुआ है। 2008 में भारत ने इसके लिए कोशिश की थी। तब आर्ट्रिया, मैक्सिको और स्वीटजरलैंड ने चीन का अनुसरण करते हुए भारत के मद्देनजर छूट का विरोध किया था। सदस्यता अभियान के मद्देनजर पिछले दो साल में मोदी ने ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, जापान, टर्की, रूस, इंग्लैंड और अमेरिका के दौरे कर जिन बिंदुओं पर बात की है, उनमें एनएसजी की सदस्यता का मुद्दा भी रहा है।
छह महीने से भी कम समय में अफगानिस्तान की अपनी दूसरी यात्रा के तहत नरेंद्र मोदी संक्षिप्त दौरे पर हेरात पहुंचे। यहां वह पड़ोसी ईरान के साथ लगते और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हेरात प्रांत में भारत द्वारा तैयार की गई ढांचागत बांध परियोजना का उद्घाटन किया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ उनकी मुलाकात में आतंकवाद समेत जिन मुद्दों पर चर्चा हुई, उससे राजनयिक स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने में आगे और मदद मिलने वाली है। हेरात प्रांत पूर्व, मध्य और दक्षिण एशिया के प्राचीन कारोबारी मार्ग पर पड़ता है। हेरात से ईरान, तुर्कमेनिस्तान और अफगानिस्तान के दूसरे हिस्सों की सड़कों को रणनीतिक रूप से अहम माना जाता है।
अफगानिस्तान के बाद स्वीट्जरलैंड, अमेरिका और मैक्सिको की यात्रा को अहम माना जा रहा है। 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में सदस्यता पाने के लिए भारत लॉबिंग कर रहा है। स्वीट्जरलैंड से उसके लिए मोदी सहयोग मांगेंगे। साथ ही, स्विस बैंक में भारतीय नागरिकों के जमा कालेधन को लेकर बात होनी है। स्वीट्जरलैंड से प्रधानमंत्री को वाशिंगटन जाना है। वे अमेरिकी थिंकटैंक के कई प्रमुखों से मिलेंगे।