टॉप सरकारी अस्पतालों के कोरोना वार्डों में काम करने वाले संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने ब्लैक फंगस यानी म्यूकोर्मिकोसिस को लेकर आउटलुक से कई चौकाने वाले खुलासे किए हैं। म्यूकोर्मिकोसिस यानी ब्लैक फंगस इस वक्त कोरोना से ठीक हुए मरीजों में सामने आ रहे हैं जो जानलेवा साबित हो रहा है। म्यूकोर्मिकोसिस एक फंगस है जो हमारे वातावरण में पाया जाता है। अमूमन ये उन्हीं लोगों को संक्रमित कर सकता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बीमारियों की वजह से कमजोर हो गई हो।
ये कई माध्यमों से शरीर में प्रवेश कर सकता है। उदाहरण के लिए साँस के जरिए या फफुंदी वाले संक्रमित भोजन के सेवन से ये हमारे शरीर के भीतर पहुंचता है। ये शरीर के अंगों को काफी नुकसान पहुँचा सकता है और मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
इन डॉक्टरों का कहना है कि ब्लैक फंगस से संक्रमित करीब 60 फीसदी मरीज ऐसे हैं जिन्होंने कोविड-19 के इलाज के दौरान न तो स्टेरॉयड लिया है और ना ही वो ऑक्सीजन स्पोर्ट के सहारे रहे हैं। ऐसे कई संक्रमित मरीजों के सामने आने के बाद डॉक्टरों की आशंका है कि आरटी-पीसीआर टेस्टिंग के दौरान नाक में डाले जाने वाले स्वाब संक्रमण के फैलने का मुख्य कारण हो सकता है।
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित सरकारी अस्पताल में काम करने वाले संक्रामक रोग के डॉक्टर बताते हैं, “हम उन लोगों की स्वच्छता के बारे में नहीं जानते हैं जो ये स्वाब बना रहे हैं या जहां इसे बनाया और पैक किया जा रहा है।”
आगे वो कहते हैं, “हमने म्यूकोर्मिकोसिस संक्रमित ऐसे कई मरीजों को भर्ती किया है जिनका इलाज कोरोना संक्रमण के दौरान घर पर हीं किया गया था। उन्हें माइल्ड संक्रमण था। ऐसे मरीजों को ना तो स्टेरॉयड दिया गया और ना हीं उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया।“
पिछले साल कोरोना संक्रमण की पहली लहर के दौरान 80 मरीजों पर "कोविड-19 से जुड़े म्यूकोर्मिकोसिस की शिकायत: 18 देशों के मामलों का विश्लेषण" शीर्षक से ग्लोबल अध्ययन किया गया था, इनमें 42 मामले भारत के थे। पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़ के प्रसिद्ध माइक्रोबायोलॉजिस्टों में से एक डॉ. अरुणालोक चक्रबत्री जो एमडी, प्रोफेसर, माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हैं, इस टीम का हिस्सा थे।