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रवि की मौत के पीछे रंजिश या मोहब्बत?

कर्नाटक में एक युवा और जोशीले आइएएस अधिकारी डी.के. रवि की अप्राकृतिक मौत एक अप्रत्याशित अंत में तब्दील हो गई है। पूरे देश के मध्य वर्ग को नेताओं और नौकरशाहों में अपना नायक तलाशने की आदत हो गई है, इससे बुरी तरह विचलित है। भारत में लगातार बढ़ता यह वर्ग यथास्थिति कायम रखने का पक्का समर्थक है और समस्याओं की जड़ तलाशने एवं उनके समाधान का प्रयास करने से इनकार करता रहा है। यह समस्या के लक्षणों पर ध्यान केंद्रित करने और उनके आसान हल तलाशने में ही खुश रहता है और खुद को अपने नायक की भक्ति में व्यस्त रखता है।
रवि की मौत के पीछे रंजिश या मोहब्बत?

पहले रवि की मौत के पीछे बिल्डर और रेत खनन माफिया का हाथ होने की अटकलों की वजह से जनता में गुस्सा था। अब एक महिला आइएएस अधिकारी के साथ रवि के रूमानी संबंध सुर्खियों में छाए हैं। कहा जा रहा है कि आइएएस महिला के साथ रवि का एकतरफा प्रेम सफल नहीं हो पाया तो यही उनकी आत्महत्या की वजह बना। संयोग की बात है कि रवि और संबंधित महिला अधिकारी वर्ष 2009 की भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की परीक्षा के टॉपरों में शामिल थे। तब रवि को 34वीं वरीयता हासिल हुई थी जबकि इस महिला को 43वीं। आंध्र प्रदेश की होने के बावजूद महिला अधिकारी ने कैडर के मामले में कर्नाटक को चुना और एक बार फिर संयोग से पहली नियुक्ति उन्हें रवि के घरेलू जिले तुमकुर में मिली।

इस 36 वर्षीय महिला अधिकारी का कोण ही रवि की आत्महत्या वाली पुलिस की थ्योरी को विश्वसनीयता प्रदान करता है क्योंकि महिला ने रवि के शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इस अधिकारी ने कर्नाटक के मुख्य सचिव कौशिक मुखर्जी को अपने पूरे कॉल रिकार्ड, टेक्‍स्ट मैसेज और ईमेल के रिकॉर्ड सौंपे हैं जो रवि ने अपनी मौत से पहले उसे किए और भेजे थे। वैसे रवि के ससुर का कहना है कि उनकी बेटी और दामाद अपने विवाहित जीवन में बेहद खुश थे। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें रवि के अपनी बैचमेट अधिकारी के साथ प्रेम प्रसंग या मौत वाले दिन उसे फोन किए जाने की कोई जानकारी नहीं है।

अपने अपार्टमेंट में 16 मार्च को मृत पाए गए डी.के. रवि के शरीर की प्राथमिक जांच बेंगलुरु मेडिकल कॉलेज एवं रिसर्च इंस्टीट्यूट के फॉरेंसिक मेडिसीन एंड टॉक्सीकोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने की और पाया कि उनके गले पर कसाव के निशान (लिगेचर मार्क) थे। सांस रोक देने वाला यह निशान गले पर तब बनता है जब कोई व्यक्ति खुद को फांसी लगाता है।

कर्नाटक की मुख्य विपक्षी पार्टियां भाजपा एवं जनता दल (एस) इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही हैं और यह अब राज्य के ओबीसी मुख्यमंत्री सिद्धरमैया (जो कि अबतक इस मामले की सीबीआई जांच की मांग के सामने नहीं झुके हैं) और प्रभावशाली ऊंची जाति वोक्कालिगा के बीच की लड़ाई बनती जा रही है।

ईमानदार अधिकारी जो दुर्लभ होते हैं और जिनकी झलक कभी-कभी ही मिलती है पतनशील व्यवस्‍था द्वारा हजम कर लिए जाते हैं। इसके बावजूद कुछ सख्त जान अधिकारी अपवाद भी हैं जो व्यवस्‍था में भी बचे हुए हैँ मगर किनारे लगा दिए गए हैं, यहां-वहां, क्षणिक रूप से अपनी चमक बिखेरते रहते हैं। एक युवा, साहसी, आकर्षक और खरा अधिकारी जिसके चारों ओर आइएएस की आभा भी हो, अल्पजीवी नायकत्व की सूची में हालिया इजाफा है। अपने अल्पकालिक चमकदार कॅरिअर में, जो जनहित के कामों से भरी हुई थी, रवि ने बड़े और ताकतवर लोगों से लोहा लिया और ‌कई ताकतवर दुश्मन भी बनाए। कोलार के जिलाधिकारी के रूप में काम करते हुए उन्होंने अवैध रूप से कब्जाई गई सरकारी जमीनों को ताकतवर लोगों के चंगुल से सफलतापूर्वक मुक्त कराया। इन लोगों में लालची एवं खतरनाक रेत माफिया, भूमि माफिया और रीयल इस्टेट के धंधेबाज शामिल थे जो नेताओं और नौकरशाहों के साथ मिलीभगत से धंधा चलाते हैं। उन्होंने जिस भी चीज में हाथ डाला वहां अपनी अमिट छाप छोड़ गए। फिर चाहे वह राजस्व का मसला हो या पानी की आपूर्ति का, जमीन का मसला हो या कचरा निस्तारण का। वस्तुतः उन्होंने कोलार को कूड़ा मुक्त शहर बना डाला। उन्होंने सफलतापूर्वक ठेकेदार और दलाल मुक्त प्रशासन का मॉडल लोगों के सामने रखा। कूड़ा निस्तारण विशेषज्ञों का कहना है कि कोलार का मॉडल पूरे देश में लागू किया जा सकता है। उन्होंने जो सबसे पहली चीज सुनिश्चित की वह थी कूड़ेदानों का हटाना। उनका मानना था कि जितने अधिक कूड़ेदान होंगे कूड़ा फेंकने की इच्छा उतनी ही अधिक होगी। वह निरर्थक बातें करने वाले अधिकारी नहीं थे और आम लोगों में आसानी से घुल-मिल जाते थे। उन्होंने समाज के दबे-कुचले वर्ग का विश्वास भी जीत लिया था।

रवि के ससुर हनुमंथरैयप्पा राजनीति में हैं और खुद रीयल इस्टेट के कारोबारी भी हैं। उनका कहना है कि कोलार के एक साल और तीन महीने के कार्यकाल के दौरान उनके दामाद को हमेशा बिल्डर माफिया से जान का खतरा बना रहा। जिले के एक को छोड़कर बाकी सारे विधायक उनके ट्रांसफर की मांग करते रहे। हनुमंथरैयप्पा का आरोप है कि जिस दिन रवि का बेंगलुरु स्‍थानांतरण हुआ इनमें से एक विधायक तिरुपति गया और अपने बाल मुंडाए। उसे जिला कमिश्नर के कार्यालय के बाहर मिठाई बांटकर खुशी मनाते भी देखा गया कि चलो आखिरकार ट्रांसफर हुआ।

रवि के साथ विचार-विमर्श के बाद उन्होंने खुद मुख्यमंत्री से संपर्क कर रवि के ट्रांसफर और बेंगलुरु में अच्छी पोस्टिंग की बात की जिसके बाद बीते अक्टूबर में रवि को वाणिज्य कर विभाग में अतिरिक्त सचिव का दायित्व सौंपा गया। यहां भी रवि का बड़े बिल्डरों के खिलाफ अभियान जारी रहा जिन्होंने टैक्स चोरी को अपनी आदत बना लिया था। मात्र चार महीने से कुछ अधिक के अपने कार्यकाल में उन्होंने करीब 400 करोड़ रुपये टैक्स के रूपये में वसूल डाले।

कोलार के अपने कार्यकाल में रवि ने रेत माफिया से भी लोहा लिया था। नेताओं की सांठगांठ से चलने वाले इस धंधे के धंधेबाजों की पूरे राज्य में फौलादी पकड़ है। खासकर बेंगलुरु के आस-पास की मृत हो चुकी नदियों के किनारे इनकी तूती बोलती है। कोलार में अर्कावती, वृषभावती और अंतरगंगे नदियों का चौड़ा पाट माफिया के खास निशाने पर है। कावेरी, काबिनी, काली, अग्नाशिनी और शरावती नदियों के किनारे भी माफिया ने बख्शे नहीं हैं। देश के अन्य भागों की तरह कर्नाटक में भी रेत माफिया ने रेत की कृत्रिम मांग पैदा की है और रेत को नया सोना कहा जाने लगा है। कहा जाता है कि राज्य में रेत का अवैध कारोबार 40 से 45 हजार करोड़ रुपयों का है जबकि सरकार के खजाने में टैक्स के रूप में सालाना महज 178 करोड़ रुपये आते हैं। गुंडों की मदद से चलने वाले इस धंधे का भयंकर गठजोड़ बिल्डरों और नेताओं से है। यहां तक कि रवि की मौत के बाद भी रेत माफिया ने एक तहसीलदार के वाहन को कुचलने की कोशिश की। तहसीलदार अवैध खनन से निकाली गई रेत से भरे ट्रक का पीछा कर रहे थे। राज्य के अलग-अलग हिस्सों में कृषि भूमि का बड़ा हिस्सा माफिया के जरिये रेत निकालने के गड्ढों में बदल चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त एन.संतोष हेगड़े का कहना है कि राज्य में अवैध रेत खनन के कारण हुआ नुकसान अब भरपाई से परे जा चुका है। यही हाल बेंगलुरु शहर के आसपास रीयल इस्टेट और बिल्डर माफिया का है।

इसके बावजूद यह माफिया अभी इतना दबंग नहीं हुआ है कि किसी आईएएस अधिकारी को मार डाले। चीजें अभी इस स्तर पर नहीं पहुंची हैं। कभी खुद बेंगलुरु शहर के अंडरवर्ल्ड डॉन रहे और अब एक लोकप्रिय साप्ताहिक टेबुलायड ‘अग्नि’ का संपादन कर रहे अग्नि श्रीधर डीके रवि के त्रासद अंत के बारे में ऐसी किसी भी आशंका को खारिज करते हैं। वह तर्क देते हैं कि कोई डॉन अपने सपने में भी किसी आइएएस अधिकारी की राह काटने की नहीं सोच सकता। नेता आते और जाते रहते हैं मगर आइएएस अधिकारी दशकों तक व्यवस्‍था में ताकतवर पदों पर रहते हैं। इसलिए किसी नौकरशाह के रास्ते में आने की बात सवालों से परे है, वह भी डी.के. रवि जैसे अधिकारी की राह में जो कि सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहे थे।

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