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मात्रागत त्रुटि की वजह से आरक्षण से वंचित है यह जनजाति

छत्तीसगढ़ के संवरा जनजाति के कुछ लोग पिछले कुछ दिनों से दिल्ली आकर विभिन्न सांसदों के चक्कर काट रहे हैं, पूछने पर बताते हैं कि हम लोग दशकों से इस तरह भटक रहे हैं, लेकिन हमें अभी तक कोई पायदा नहीं हुआ। दरअसल इनका कहना है कि सौंरा, संवरा, सवरा, सौरा छत्तीसगढ़ की जनजाति है जिन्हें पिछले 2002 से लिपिकीय त्रुटि की वजह से आदिवासी नहीं माना जा रहा है। लिहाजा जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण सहित अन्य लाभ से यह समुदाय पूरी तरह वंचित है।
मात्रागत त्रुटि की वजह से आरक्षण से वंचित है यह जनजाति

संवरा समाज के विजय विशाल बताते हैं, ‘’हम लोग कई बार मुख्यमंत्री से मुलाकात कर लिए, भूख हड़ताल कर लिए, रैली निकाल लिए, आयोग को भी इस संबंध में जानकारी देते रहे लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक परिणाम हमारे पक्ष में नहीं आ सका।’’

वे आगे बताते हैं, ‘’जब हम लोग अपना मुद्दा उठाते हैं तो सभी इसका समर्थन करते हैं और जल्द इसके निराकरण का आश्वासन भी देते हैं, लेकिन इस तरह हमारी एक पीढ़ी निकल गई। ’’

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा, महासमुंद, बलौदा बाजार, रायगढ़ जिलों में निवासरत लगभग 2.5 लाख संवरा जनजाति के लोगों की दिक्कतों की वजह सिर्फ मात्रात्मक व ध्वन्यात्मक त्रुटियां है। अनुसूची 41 में ‘सवर सवरा’ दर्ज है जिन्हें आरक्षण का लाभ मिल रहा है लेकिन वहीं राजस्व अभिलेख में जिनकी जाति सौंरा, संवरा, सौरा है उन्हें आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।

पिछले साल मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए सवर, सवरा समाज छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष इंदिरा गोविन्द सिदार ने बताया था कि अनुसूचित जनजाति होने के बावजूद छ.ग. की सवर, सवरा जाति सहित अन्य जाति क्रमश: भूमिया, खैरवार, धनवार, धनगड़, पाव, गदवा, गोड़, नागवंशी, तनवर, कोंधख कोड़ाकू, मझवार, पथारी, दौलरा, भूईहार एवं नहरिया को राजस्व अभिलेख में दर्ज पर्याय-स्वर संधि की भिन्नता-मात्रात्मक त्रुटि दर्ज होना बताकर जाति प्रमाण-पत्र जारी नहीं किया जा रहा है। जिसके बाद राज्य सरकार ने प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को प्रेषित किया था। लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस फैसला नहीं हो सका है।  

संवरा जनजाति के भागवत प्रसाद कहते हैं कि ‘’यह गलती तो हमारी नहीं है,शासन की ही गलती है फिर इसे सुधारने में दशकों क्यों लग रह रहे हैं,हमारे आदिवासी नेता भी इस मामले के प्रति उदासीन रहे हैं। हम तो सिर्फ अपना संवैधानिक अधिकार मांग रहे हैं ताकि हमारी जनजाति की भी तरक्की हो। अक्षय दुबे ‘साथी’

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