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सुरक्षा पर मूंदी आंख

संवेदनशील रक्षा सामग्री का उत्पादन करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की पूर्व कंपनी भारत एल्युमिनियम कंपनी लि. (बालको) को पूरी तरह से एक विदेशी कंपनी वेदांता के हाथों में देने की तैयारी चल रही है।
सुरक्षा पर मूंदी आंख

संवेदनशील रक्षा सामग्री का उत्पादन करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की पूर्व कंपनी भारत एल्युमिनियम कंपनी लि. (बालको) को पूरी तरह से एक विदेशी कंपनी वेदांता के हाथों में देने की तैयारी चल रही है। इससे संबंधित रक्षा खतरों के प्रति भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने या तो जानबूझकर आंखें मूंद रखी हैं या उन्हें शायद इस खतरे का अंदाजा ही नहीं है। गौरतलब है कि बालको में एल्युमिनियम के व्यावसायिक उत्पादन के अलावा मिसाइलों और अंतरिक्ष रॉकेटों में इस्तेमाल होने वाले एल्युमिनियम केसिंग और एलॉय (मिश्रधातु) का निर्माण भी होता है। ये दोनों ऐसे एल्युमिनियम से बनाई जाती हैं जो अत्यधिक उच्च तापमान पर भी पिघले नहीं। जाहिर है कि ये मिसाइल और रॉकेटों के सफल प्रक्षेपण के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और भारतीय मिसाइल और रॉकेटों में इसी का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में इस कंपनी का प्रबंधन किसी विदेशी कंपनी के हाथों में चला जाना देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है मगर हकीकत यही है कि इस कंपनी का प्रबंधन 51 फीसदी हिस्सेदारी के साथ पहले ही वेदांता के पास है और उसे कंपनी की 100 फीसदी हिस्सेदारी देने की तैयारी चल रही है। कंपनी में अभी सरकार के पास 49 फीसदी शेयर हैं। गौरतलब है कि वेदांता का नाम बालको में एक चीनी कंपनी को बिजली संयंत्र का ठेका देने (जिसकी बनाई चिमनी निर्माण के दौरान ही गिर गई और 40 से ज्यादा लोग मारे गए), खनन कंपनी सेसा गोवा के अधिग्रहण और नियमगिरि में बॉक्साइड खनन पर स्थानीय आदिवासियों के कड़े विरोध को लेकर पहले से ही विवादों में है।
गौरतलब है कि तात्कालीन एनडीए सरकार ने वर्ष 2001 में बालको के 51 फीसदी शेयरों के साथ कंपनी का पूरा प्रबंधन स्टरलाइट कंपनी को बेच दिया था। उस समय श्रमिक संगठन सीटू ने इन्हीं संवेदनशील वजहों से विनिवेश का कड़ा विरोध किया था। अप्रैल  2001 से मार्च 2002 के बीच स्टरलाइट कंपनी पर सेबी द्वारा बाजार से पूंजी उगाहने पर रोक लगा दिए जाने के बाद इस कंपनी के मालिक अनिल अग्रवाल ने लंदन में एक नई कंपनी वेदांता रिसोर्सेज के नाम से बनाई और यह कंपनी लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराई गई थी। स्टरलाइट कंपनी की वास्तविक मालिक यही वेदांता रिसोर्सेज है जो पूरी तरह से एक विदेशी कंपनी है। वेदांता ने बाद में भारत में खनन क्षेत्र की दिग्गज कंपनी सेसा गोवा का भी अधिग्रहण किया और पिछले महीनों में स्टरलाइट और सेसा को मिला कर एक नई कंपनी स्टरलाइट सेसा का गठन किया और इसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराया। वर्तमान में बालको का नियंत्रण स्टरलाइट सेसा के पास है या यों कहें कि एक विदेशी कंपनी वेदांता के पास है। खुद अनिल अग्रवाल भारत के नागरिक नहीं हैं बल्कि लंदन में रहने वाले अनिवासी भारतीय हैं। इस आशय के आरोप लगते रहे हैं कि वेदांता में अनिल अग‎ग्रवाल परिवार के साथ-साथ विदेश की कई संस्थाओं के पैसे लगे हैं। ऐसे में रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़े सामान बनाने वाली कंपनी में परोक्ष रूप से विदेशियों की घुसपैठ भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए कितनी चिंता की बात है इसकी जांच देश की खुफिया एजेंसियों को करने की जरूरत है।
खास बात यह है कि अब वेदांता बालको में सरकार की 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदकर 100 फीसदी मालिकाना हक करना चाहती है और इसके लिए लगातार सरकार से बातचीत भी कर रही है। दिलचस्प तथ्य यह है कि सरकार इसके लिए तैयार भी है। सिर्फ इस बात पर विचार किया जा रहा है कि बिक्री की प्रक्रिया क्या होगी। देश के आर्थिक मामलों के सचिव पहले ही साफ कर चुके हैं कि बालको में सरकार के बचे शेयर बेचने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है। जाहिर है कि देश की रक्षा चिंताओं को अनदेखा करने की पूरी तैयारी कर ली गई है। पूर्व अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने सरकार को अपनी हिस्सेदारी खुले बाजार के जरिये बेचने की राय दी थी।
बालको में रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित उत्पादों के निर्माण की जानकारी खुद वेदांता ने अपनी वेबसाइट पर दी है और इससे संबंधित दस्तावेज आउटलुक के पास मौजूद हैं। इस मामले पर करीबी निगाह रखने वाले मुकेश कुमार सिंह कहते हैं कि रक्षा शोध और विकास संगठन (डीआरडीओ) बालको तथा कुछ अन्य कंपनियों के साथ मिलकर नॉन फेरॉस टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट सेंटर चलाता है जो विभिन्न धातुओं के एलॉय बनाने की आधुनिक तकनीक विकसित करता है। मिसाइल और रॉकेटों के लिए तैयार की जाने वाली मिश्रधातु की तकनीक दुनिया के चंद गिने-चुने देशों के पास ही हैं और इसलिए पूरी दुनिया में इनकी भारी मांग है मगर खुले बाजार में यह उपलब्ध नहीं होते हैं। ऐसे में भारत की कोई कंपनी जो ये एलॉय बनाती हो वो किसी विदेशी कंपनी के पास चली जाए तो उसके खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे भी पिछले दिनों बालको संयत्र से कुछ डिजाइन और एलॉय चोरी होने की खबरें आई थीं, जिनपर तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी ने जांच कराने की घोषणा की थी मगर इस जांच का क्या नतीजा निकला इसके बारे में कोई कुछ बताने को तैयार नहीं है। इस बारे में बात करने के लिए आउटलुक ने बालको के दो अधिकारियों से बात करने की कोशिश की मगर उन्होंने कहा कि वे इस बारे में कुछ नहीं बता सकते। आउटलुक को स्थानीय स्रोतों से पता चला कि कंपनी ने इस चोरी की कोई रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई। बाद में दावा किया गया था कि इनमें से कुछ सामान वापस मिल गया था। मुकेश सिंह कहते हैं कि बालको के पुराने संयंत्र को कंपनी ने तोडक़र कबाड़ में बेचने का दावा किया है मगर इस बारे में कोई जानकारी किसी के पास नहीं है।
मुकेश कुमार सिंह के अनुसार बालको को लेकर खतरे की एक बात यह भी रही है कि वर्ष 2010 तक वहां 80 से अधिक चीनी नागरिकों का जमावड़ा रहा था। ये चीनी नागरिक चीन की कंपनी सेपको के कर्मचारी थे जिसे बालको प्रबंधन ने 1200 मेगावाट क्षमता का ताप विद्युत संयंत्र लगाने का ठेका दिया था। जाहिर है कि एक ऐसे संयंत्र में जो रक्षा मामलों के लिए इतना संवेदनशील हो वहां विदेशियों की सीधी पहुंच नहीं होनी चाहिए थी मगर देश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार अधिकारियों का शायद इस ओर ध्यान नहीं गया। मुकेश के अनुसार ये चीनी नागरिक बिजनेस वीजा पर भारत आए थे मगर निर्माण की गतिविधियों में लिप्त थे जो कि गैरकानूनी है।
जाहिर है कि बालको को लेकर सुरक्षा एजेंसियों में जिस स्तर की संवेदनशीलता दिखनी चाहिए थी वैसी दिख नहीं रही है। उलटे प्रयास हो रहा है कि इस कंपनी को पूरी तरह एक विदेशी कंपनी के हवाले कर दिया जाए। अगर ऐसा हुआ तो परिणाम घातक हो सकते हैं।

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