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कवि की स्मृति को नसीब नहीं दो गज जमीन

गोपाल सिंह नेपाली के परिवार की जमीन पर भाजपा समर्थित भू-माफिया का कब्जा, खटाई में पड़ा स्मृति न्यास का निर्माण
कवि की स्मृति को नसीब नहीं दो गज जमीन

राजा बैठे सिंहासन पर

यह ताजों पर आसीन कलम

मेरा धन है स्वाधीन कलम

(मेरा धन है स्वाधीन कलम)

 

रचनाकार और आंदोलनकारी के रूप में देश भर में तूती बुलवाने वाले कवि गोपाल सिंह नेपाली की याद ताजा और जिंदा रखने की कोशिशों को जमीन से महरूम किया जा रहा है। बिहार के चंपारण के बेतिया में यानी गोपाल सिंह नेपाली के जन्मस्थान में क्या उनकी स्मृति को जिंदा रखा जा पाएगा या नहीं, यह अभी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। एक कवि की परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिशों को पुलिस-थाने के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। आगे अभी क्या होगा, कुछ बताया नहीं जा सकता है क्योंकि गोपाल सिंह नेपाली की स्मृति को आगे बढऩे के सपने को भू-माफिया की नजर लग गई है।

 

बेतिया में गोपाल सिंह नेपाली की भतीजी यानी उनके भाई समबहादुर सिंह की बेटी सविता सिंह नेपाली ने एक जमीन 2002 में खरीदी और उस पर  नेपाली स्मृति शोध संस्थान बनाना चाहती हैं। जब उन्होंने इस जमीन पर शिलान्यास कराया, उसके बाद पता चला कि इस जमीन पर इलाके के भू-माफिया ने कब्जा जमाने की पूरी तैयारी कर रखी है। टकराव तो होना ही था और अब भी पता नहीं कि यहां गोपाल सिंह नेपाली की स्मृति में शोध संस्थान कभी बन भी पाएगा या नहीं। क्योंकि स्वाधीन कलम की वकालत करने वाले गोपाल सिंह नेपाली का स्मृति शोध संस्थान भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष  एवं दबंग विधायक रेणु देवी के दबंग भाई पीनु उर्फ रवि कुमार की जमीन पर कब्जा जमाने की नीयत से टकरा गया है। गौरतलब है कि रेणु देवी उसी भारतीय जनता पार्टी की विधायक हैं जो बिहार के गौरव कवि रामधारी सिंह दिनकर का गुणगान करके राजनीतिक स्कोर बढ़ाने में आगे रहती है लेकिन अभी तक पार्टी गोपाल सिंह नेपाली की स्मृति को नमन करने को तैयार नहीं दिखती।

 

इस मामले में खबर लिखे जाने तक इलाके के भू-माफिया पीनु उर्फ रवि कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी थी और उसकी गिरफ्तारी का आदेश भी निकल चुका था। हालांकि खबर लिखे जाने तक गिरफ्तारी नहीं हुई थी। इस बारे में जब आउटलुक ने बेतिया के जिलाधिकारी लोकेश कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि ऐसा मामला दर्ज हुआ है और भूमि को लेकर विवाद चल रहा है। हालांकि उन्होंने कहा कि चूंकि मामले में प्राथमिकी दर्ज हो गई है, लिहाजा पुलिस प्रशासन इस पर नियमों के मुताबिक काम कर रहा है। इस मामले के बारे में तफसील से बताया सब-डिविजनल पुलिस अधिकारी रामानंद कुमार कौशल ने। उन्होंने बताया कि जमीन गोपाल सिंह नेपाली की भतीजी सविता सिंह की है, जिस पर वह संग्रहालय बनाना चाहती हैं। लेकिन इसी जमीन पर रवि कुमार उर्फ पीनु ने भी कब्जा कर रखा है, महदा के जरिए। रामानंद ने बताया कि पीनु के खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश निकल चुका है लेकिन चूंकि मामले में सात साल से कम की सजा का प्रावधान है, लिहाजा सीधे गिरफ्तारी नहीं हो सकती। इस बात की तस्दीक बेतिया टाउन इंस्पेक्टर अजीत कुमार साहा ने भी की कि विधायक रेणु देवी के भाई की गिरफ्तारी का आदेश निकल चुका है। गिरफ्तारी के लिए अदालत से वारंट लेने का इंतजार चल रहा है। अजीत साहा ने आउटलुक को बताया कि पीनु उर्फ रवि कुमार का इतिहास आपराधिक जरूर रहा है लेकिन कोई भी मामला आगे नहीं बढ़ा। इस मामले में भी चूंकि उन्होंने निर्माण कार्य में अड़चन डाली, डराया धमकाया, इसलिए मामला बनता है। बाकी जमीन के स्वामित्व का मामला पुलिस की परिधि में नहीं है। सवाल उठता है कि जब गिरफ्तारी का आदेश हो चुका है, तब भी जमीन पर कब्जा दिलाने में प्रशासन कोई मदद ञ्चयों नहीं कर रहा है? आतंक का माहौल खत्म कर सविता सिंह नेपाली को उनकी जमीन पर कब्जा क्यों‌ं नहीं दिलवाया जा रहा है।

 

इस बारे में आउटलुक ने जब सविता सिंह नेपाली से बात की तो उन्होंने बताया कि प्रशासन में पीनु और उनकी विधायक बहन रेणु देवी का बहुत दबदबा है। सब डरे हुए हैं। कोई खुलकर मदद के लिए सामने नहीं आ रहा है। पूरे वाकये के बारे में उन्होंने बताया कि 30 मई को जब वह बेतिया में अपनी जमीन पर नेपाली शोध संस्थान और गोपाल सिंह नेपाली फाउंडेशन के प्रधान कार्यालय का शिलान्यास करके लौट रही थीं तो रास्ते में 25-30 लोगों ने घेर कर उन्हें धमकी दी, गाली-गलौज की और जमीन छोड़ने को कहा। इस शिलान्यास के लिए उन्होंने इलाके के जाने-माने साहित्यकारों को बुलाया था, जिनमें राजेंद्र अनल, गौरव मस्ताना, भूपेंद्र शेष, अंशु मालवीय शुक्ल आदि शामिल थे। उनका सपना है कि गोपाल सिंह नेपाली के जन्मस्थान बेतिया में ही उनकी याद में संग्रहालय बनाया जाए ताकि जो भी उन पर शोध करे, वे यहां आकर पूरे वातावरण को मसहूस करें और उनसे संबंधित सारी जानकारी एक ही जगह रखी भी जाए। इस नेक मकसद के लिए उन्होंने 2002 में अपने द्वारा खरीदी जमीन का इस्तेमाल करने की योजना बनाई। इसके सारे कागजात उनके पास हैं, जिसका हवाला एफआईआर में भी दिया गया है। अभी तक जमीन पर ही सारी निर्माण सामग्री पड़ी हुई है, क्योंकि ये अपराधी वहां जाकर निर्माण होने नहीं दे रहे हैं। दूसरे जितना निर्माण होता भी है, उसे ये अपराधी तोड़ देते हैं।

 

इस मामले में खुद कविता लिखने वाली सविता सिंह तमाम दरवाजे खटखटा चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक के यहां पत्र भेज चुकी हैं। तमाम कोनों से मदद की गुहार लगा चुकी सविता का कहना है कि वह यह लड़ाई बीच में नहीं छोड़ेंगी, आखिर यह उस कवि की परंपरा को बचाने की बात है, जिनके गीतों-कविताएं से आजादी की ऐसी बयार बहती थी कि बड़े-बड़ों के दिल हिल जाते थे।

 

एक बात और ध्यान देने की है कि पिछले कुछ समय में बिहार में जमीन के दामों में जबर्दस्त उछाल आया और इससे भू-माफिया का नापाक गठबंधन भी बहुत प्रभावशाली हो गया है। ऐसी वारदातें पटना से लेकर आरा, बेतिया तक में पसरी हुई हैं। चुनाव के लिए जिस बिहार की जमीन गरम हो रही है, वहां गोपाल सिंह नेपाली की धरोहर को बचाने और संवारने के इस प्रयास को राजनीतिक तवज्जो मिल पाएगी, ये तो समय ही बताएगा। बहरहाल, गोपाल सिंह नेपाली की ये पंक्तियां आस जरूर टूटने नहीं देती:

 

घोर अंधकार हो,

चल रही बयार हो

आज द्वार द्वार पर

यह दीया बुझे नहीं

यह निशीथ का दीया ला रहा विहान है

 

 

(यह दीया बुझे नहीं)

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