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आउटलुक विशेष- कला के कैनवास पर लाखों की हेराफेरी

ललित कला अकादमी में गड़बडिय़ों को लेकर सचिव पर ऑडिट महानिदेशालय ने उंगली उठाई, नियमों को धता बताते हुए बरसों से चल रहा खेल।
आउटलुक विशेष- कला के कैनवास पर लाखों की हेराफेरी

दस्तावेजों में छेड़छाड़ कर अपना पद ग्रेड बढ़ा लिया और मंत्रालय की मंजूरी के बगैर बरसों से बढ़ी तनख्वाह लेते रहे। जब लेखा महानिदेशक दफ्तर (केंद्रीय व्यय) ने उंगली उठाई तो बचने के लिए दस्तावेजों में छेड़छाड़ की और कुछ दस्तावेज गायब करा दिए। बरसों तक अपने करीबियों को रेविड़यां बांटी। अनियमितता के आरोप में दो बार बर्खास्त किए गए, लेकिन मंत्रालय में पहुंच के बल पर बहाल भी हो गए। अब जबकि मामला तूल पकड़ गया है, रिकॉर्ड रूम को सील कर मंत्रालय को जांच के आदेश देने पड़े।

यहां बात ललित कला अकादमी की हो रही है। यहां के सचिव डॉ. सुधाकर शर्मा पर बतौर तनख्वाह लाखों रुपए की ज्यादा निकासी करने, नियमों से परे जाकर कलाकारों को स्टूडियो अलॉट करने और खुद से संबंधित दस्तावेजों में छेड़छाड़ करने के आरोप सामने आए हैं। नियमों को धता बताने के लिए किस प्रकार रास्ता तैयार किया गया, इस बारे में लेखा परीक्षा महानिदेशक (केंद्रीय व्यय) कार्यालय ने उंगली उठाई है। आउटलुक को मिले दस्तावेजों को देखने से पता चलता है कि ललित कला अकादमी के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (एमओए) में सचिव के पद को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के बराबर बताया गया है और वेतन इसी के अनुसार निर्धारित करने की बात है। लेकिन इस बारे में अकादमी के बाई लॉज और नियुक्ति के नियमों को संशोधित नहीं किया गया। तकनीकी तौर पर इस पद का वेतनमान 12000-375-16000 का स्केल वित्त और संस्कृतिक मंत्रालय द्वारा मंजूर है। लेकिन डॉ. सुधाकर शर्मा ने एमओए में दर्ज संस्तुति को आधार बनाकर अपना वेतनमान 16400-25000 का करा लिया और 2003 से बढ़ी तनख्वाह और अन्य सुविधाएं संयुक्त सचिव के स्तर की लेते रहे। जबकि, उनका पद उप सचिव स्तर का रहा। महानिदेशक (लेखा परीक्षा) ने 2004-05 में भी बढ़ी तनख्वाह पर रोक लगाने की संस्तुति की थी, लेकिन नतीजा सिफर रहा।

महानिदेशक लेखा परीक्षा (केंद्रीय व्यय) की 2015 की ऑडिट में पता चला कि वे अब तक 33 लाख रुपए से ज्यादा की रकम बतौर तनख्वाह अतिरिक्त ले चुके हैं। ऑडिट में आपत्ति के बाद उन्हें रकम लौटाने के लिए कहा गया। लेखा परीक्षा महानिदेशक के 17 मई को लिखे पत्र के बाद खलबली मची। महानिदेशक लेखा परीक्षा कार्यालय ने संस्कृति मंत्रालय से पूछा था कि क्या सचिव के पद का स्तर अपग्रेड करने के लिए संस्तुति ली गई थी? क्या वेतनमान बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय से पूछा गया था? दोनों ही सवालों के जवाब ना में हैं।

दूसरा गंभीर आरोप स्टूडियो के अलॉटमेंट को लेकर है। 2007-08 में 18 कलाकारों को नियमों से परे जाकर स्टूडियो दे दिए गए। इनमें से अधिकांश के पास खुद के स्टूडियो हैं ग्रेटर नोएडा में। मिस साबिया, आनंद सिंह, दत्तात्रेय आप्टे, के.आर. सुब्बन्ना, राजकुमार पंवार, अजय खन्ना, अमिताव भौमिक, सुशांत गुहा, सुखविंदर सिंह और हेमराज को अकादमी का कर्मचारी होने के बावजूद स्टूडियो अलॉट कर दिए गए। इस बारे में कोई दस्तावेज ही नहीं हैं कि इन लोगों को किस आधार पर अलॉटमेंट मिला। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जब नियमों को धता बताते हुए कइयों को उपकृत किया गया।

गड़बडिय़ों का मामला तूल पकडऩे के बाद ललित कला अकादमी में आरोपों से संबंधित दस्तावेजों में छेड़छाड़ की बात सामने आई है। इसके बाद संस्कृति मंत्रालय ने अकादमी का रिकॉर्ड रूम सील कर दिया है। प्राथमिक जांच में पता चला है कि सुधाकर शर्मा के असिस्टेंट आर.के. शर्मा ने दस्तावेजों में पिछले हक्रते छेड़छाड़ की। मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, सुधाकर शर्मा ने उस कमरे की दूसरी चाबी बनवा ली, जहां उनके खिलाफ जांच के दस्तावेज रखे हैं।

तमाम मुद्दों पर आउटलुक से बात करने के लिए सुधाकर शर्मा तैयार नहीं हुए। उन्हें फोन, मोबाइल फोन पर कई बार संपर्क किया गया। उनको सवाल भेजे गए। लेकिन उन्होंने बात नहीं की। वे 2001 में अकादमी में डेप्युटेशन पर आए थे। 2005 में उनका पद नियमित कर दिया गया। उन्हें अनियमितताओं के आरोपों में पहली बार दो दिसंबर 2011 को अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक वाजपेयी ने बर्खास्त किया था। मंत्रालय ने जांच का आदेश देकर उन्हें बहाल कर दिया। 2013 के फरवरी में तत्कालीन अध्यक्ष के.के. चक्रवर्ती ने उन्हें सस्पेंड कर जांच कराई। मई 2014 में उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। 10 दिसंबर 2014 को मंत्रालय ने उन्हें बहाल कर दिया। इस बाबत चक्रवर्ती ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी शिकायती पत्र भेजा था। तब मंत्रालय ने चक्रवर्ती को सेवा से निकाल दिया। सुधाकर शर्मा अब तक अपने पद पर बने हुए हैं।

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