लोकसभा सचिवालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राषट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संविधान के अनुच्छेद 117 :3: के तहत सांसद फिरोज वरूण गांधी के निजी विधेयक जन प्रतिनिधित्व अधिनियम संशोधन विधेयक 2016 पर लोकसभा में विचार करने को मंजूरी प्रदान कर दी है।
वरूण गांधी ने कहा कि चुनावी लोकतंत्र में चुनाव के वित्त पोषण में पारदर्शिता सबसे महत्वपूर्ण है। चुनाव में उम्मीदवारों के चुनावी खर्च की सीमा और राजनीतिक दलों के बारे में हालांकि कानूनी प्रावधान हैं लेकिन इसका ठीक ढंग से नियमन नहीं हो पाता है। ऐसा कानून में खामियों या उसका ठीक ढंग से अनुपालन नहीं होने के कारण हो रहा है।
उन्होंने कहा कि ऐसे में उनकी ओर से पेश जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन का विधेयक इस दिशा में एक ऐसी पहल है जो पारदर्शिता सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
विधेयक के कारण एवं उद्देश्यों में कहा गया है कि चुनाव सुधार पर राष्ट्रीय आयोग के परामर्श पत्र 2001 में अनुमान लगाया गया है कि उम्मीदवारों के चुनाव अभियान का खर्च उनकी ओर से घोषित राशि का 20 से 30 गुणा अधिक होता है।
वरूण गांधी की ओर से पेश निजी विधेयक में कहा गया है कि अगर किसी उम्मीदवार या राजनीतिक दल की ओर से दिखाये गए खर्च में कोई खामी पायी जाती है तब ऐसे मामलों में चुनाव आयोग के पास अभियोग चलाने का अधिकार होना चाहिए।
इसमें कहा गया है कि चुनावी कदाचार पर लगाम लगाने के लिए भारतीय चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में पेड न्यूज को लाया जाना चाहिए जिसके कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हुए जनमत को प्रभावित करने का कार्य किया जाता है।
वरूण गांधी के निजी विधेयक में कहा गया है कि चुनाव से जुड़े विषयों या मुद्दों का निपटारा करने के लिए संबंधित राज्यों में उच्च न्यायालय के तहत चुनावी पीठ का गठन किया जाना चाहिए।
विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि अगर कोई राजनीतिक दल अपने चुनावी खर्च की गलत घोषणा करते हैं या गलत ब्यौरा देते हैं, तब चुनाव आयोग के पास ऐसे दलों का पंजीकरण रद्द करने और अभियोग चलाने का अधिकार हो।
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म :एडीआर: ने 2009 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के चुनावी खर्च का विश्लेषण करते हुए कहा है कि 6,753 उम्मीदवारों के चुनावी खर्च घोषणाओं के आधार पर केवल चार
उम्मीदवारों ने ही सीमा से अधिक खर्च किया और केवल 30 प्रतिशत उम्मीदवारों ने खर्च की सीमा का 90 प्रतिशत तक व्यय किया।
अभी तक राजनीतिक दलों के लिए एक स्रोत से चंदे के रूप में 20 हजार रूपये तक प्राप्त करने को रजिस्टर में दर्ज कराने से छूट प्राप्त है। हालांकि 2017-18 के बजट में प्रस्ताव किया गया कि एक स्रोत से कोई भी दल केवल 2 हजार रूपये ही चंदे के रूप में स्वीकार कर सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीतिक दलों के अभी तक सूचना का अधिकार के दायरे में नहीं आने से भी चुनावी पारदर्शिता सुनिश्चित करने में बाधा आ रही है। भाषा