एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने नाम न छापने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पीएमओ और चुनाव आयोग के बीच में बातचीत होना बहुत ही दुर्लभ और असाधारण मामला है, लेकिन अनुचित नहीं। चुनाव संबंधी मामलों पर चुनाव आयोग सरकार के कानून और गृहमंत्रालय से सीमित बात करता है। उन्होंने कहा कि 28 जनवरी 2015 के दिन उन्हें राज्यों के मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा और पीएम के प्रधान सचिव निरिपेंद्र मिश्रा का हस्ताक्षर किया पत्र मिला था, जिसमें कहा गया था कि सरकार लोकसभा और राज्यों के चुनाव हर हाल में एक साथ कराने का विचार रखती है।
पूर्व कमिश्नर ने कहा कि 36 राज्यों के चुनाव फिर से कराना आसान बात नहीं है, इसमें बड़ा व्यवधान खड़ा होता है। उन्होंने बताया कि फिर सरकार की तरफ से कहा गया कि चुनाव आयोग तीन हफ्ते के भीतर एक पत्र तैयार करें ताकि आंतरिक तौर पर सभी पार्टियों और विशेषज्ञों से बात की जा सके। इस पत्र को संसद की स्टैंडिंग कमेटी के साथ साझा किया गया था।
ब्रह्मा, जोकि 19 अप्रैल 2015 में मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए थे, उन्होंने इस बात पर मुहर लगाई कि पीएमो से उनकी बात हुई थी। उन्होंने कहा ''मुझे याद है कि 2015 में मुझे प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से टेलीफोन कॉल आई थी, जिसमें कहा गया था कि दोनों चुनावों कराए जा सकते हैं या नहीं, इस पर कुछ काम किया जाए। चुनाव आयोग ने इसका अध्ययन किया और रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। मुझे यकीन है उसी रिपोर्ट के आधार पर सरकार फैसला लेगी। निरिपेंद्र मिश्रा से इस मामले पर हालांकि बात नहीं हो पाई।
लोकसभा और विधानसभा चुनान एक साथ कराना भाजपा का पुराना मुद्दा रहा है। 2011 में पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इस पर खूब जोर दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में दोनों चुनाव एक साथ कराने का जिक्र किया गया था। चुनाव अलग-अलग समय में होने से खर्च बढ़ जाता है। अभी वोटिंग मशीन खरीदने में 9248 करोड़ रुपए खर्च हाेेने हैं। 1951-52 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ हुए थे। 1957, 1962 और 1967 में भी चुनाव साथ हुए। आगे इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।