31 अक्टूबर 1984 को राजीव गांधी ने देश के छठे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। सन 1984 से 1989 तक वह देश के प्रधानमंत्री रहे। वर्ष 1989 के चुनाव उपरांत देश में जनता दल की सरकार बनी, पर यह ज्यादा समय न चल सकी। बाद में चंद्रशेखर की सरकार राजीव गांधी के सहारे कुछ महीने चली और आखिरकार वह भी गिर गई। सन 1991 में पुन: चुनाव की घोषणा हुई। इस बार देश में कई चरणों में चुनाव कराए गए। राजीव गांधी जमकर चुनाव प्रचार कर रहे थे। चुनाव का प्रथम चरण 20 मई 1991 को खत्म हुआ। राजीव गांधी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके खिलाफ बड़ी साजिशें रची जा रही हैं और उनकी हिफाजत तमाम एजेंसियां और पुलिस भी नहीं कर पाएगी। बीस मई 1991 को उन्होंने दिल्ली में मतदान किया। इक्कीस मई को वह उड़ीसा और तमिलनाडु मेंचुनाव प्रचार के लिए निकले।
21 मई 1991 को रात 10:20 मिनट पर चेन्नई से 30 मील दूर श्रीपेरुंबुदूर में चुनावी सभा के दौरान मानव बम के विस्फोट में उनकी जान चली गई। उनकी हत्या की जांच एसआईटी, सीबीआई को सौंपी गई। हत्या के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल के लिए जस्टिस जेएस वर्मा (सर्वोच्च न्यायालय) और जस्टिस एमसी जैन (उच्च न्यायालय) के नेतृत्व में महत्वपूर्ण जांच आयोग गठित किए गए। इन आयोगों ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। जांच रिर्पोटों में देश की जनता और राजीव गांधी के परिवार के सदस्यों को बताया गया कि राजीव गांधी की जघन्य हत्या लिट्टे की धनु नाम की महिला, जो मानव बम थी, के माध्यम से की गई। नलिनी एवं उसके अन्य सहयोगी पकड़े गए और उनके ऊपर कार्रवाई हुई। दूसरी तरफ प्रभाकरन एवं अन्य भगोड़े घोषित किए गए। न्यायमूर्ति वर्मा ने सुरक्षा चूक और उसकी खामियों पर रोशनी डाली। न्यायमूर्ति एमसी जैन ने हत्या में साजिश के कोण की जांच की और इससे जुड़े कुछ बिंदुओं को उजागर किया है। और इस तरह देश की जनता और राजीव गांधी के हितैषी इन जांचों से संतुष्ट हो गए।
इस समय राजीव गांधी की हत्या के संदर्भ के कुछ नए तथ्य एवं विवेचनाएं हमारे सामने आ रही हैं।
इस कड़ी में सबसे पहले हाल में ही प्रकाशित फराज अहमद की पुस्तक 'असैसीनेशन ऑफ राजीव गांधी: ऐन इनसाइड जॉब’ महत्वपूर्ण है। उनकी पुस्तक में राजीव गांधी की हत्या के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। अगर उनकी पुस्तक सहित इस विषय पर तमाम किताबें और जांच आयोग की रिपोर्टें देखें तो कई महत्वपूर्ण अनुत्तरित प्रश्न उभरते हैं।
पहला महत्वपूर्ण प्रश्न है कि राजीव गांधी की हत्या के बाद आईबी निदेशक एमके नारायणन ने 22 मई को प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, कैबिनेट सेकेट्री को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने एक वीडियो का जिक्र किया था। उसमें एक महत्वपूर्ण जानकारी होने की बात कही थी (जे.एस वर्मा रिपोर्ट)। लेकिन यह वीडियो जेएस वर्मा कमीशन और एसआईटी सीबीआई को उपलब्ध न हो सका, ऐसा इन जांच एजेंसी द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया है। वह वीडियो कहां हैं? उसकी जानकारियां कैसी थीं? एसआईटी सीबीआई के प्रमुख कार्तिकेयन और हत्या के जांच अधिकारी के. रागोथॉमन ने अपनी पुस्तकों में इसकी उपयोगिता पर जोर डाला है। साथ ही जांच के दौरान वीडियो उपलब्ध न होने का जिक्र किया है। ऐसा ही जिक्र जस्टिस जेएस वर्मा ने अपनी रिपोर्ट में किया है।
दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न है कि राजीव गांधी की सुरक्षा क्यों घटाई गई। राजीव गांधी खुद प्रधानमंत्री थे। अकाली समझौते और श्रीलंका में आईपीकेएफ और तमिल समझौतों के बाद वह आतंकवादियों के निशाने पर थे। इसकी जानकारी जांच एंजेसियों को भी थी। फराज अहमद ने भी अपनी पुस्तक में इस पर विस्तार से प्रकाश डाला है। राजीव गांधी की सुरक्षा में कमी कुछ अधिकारियों के निर्देश से हुई। जस्टिस वर्मा के अनुसार, सुरक्षा नियमावली का समुचित पालन नही किया गया। उन्होंने कुछ अधिकारियों को इसका दोषी पाया था, जिनमें डीआईबी एमके नारायणन भी थे। जांच रिपोर्ट के आलोक में सरकार ने एक्शन टेकन रिपोर्ट के आधार पर इन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया कि इनकी जांच हो। लेकिन इस जांच को भी एसआईटी सीबीआई के ही सुपुर्द किया गया। इसे पीई-1, 1995 में दर्ज किया गया। इसकी जांच एसआईटी के पुलिस अधीक्षक को दी गई। जिसके मुख्य अधिकारी डीआर कार्तिकेयन ही थे।
राजीव की सुरक्षा में और भी महत्वपूर्ण तथ्य हैं। जहां एक ओर राजीव जी की सुरक्षा में कटौती एसपीजी संक्चया कमी के कारण नियमों का हवाला देकर की गई थी, वहीं एनएसजी के संदर्भ में रहस्यमय चुप्पी साध ली गई थी। इसका जिक्र फराज अहमद ने अपनी पुस्तक में किया है। एनएसजी के संदर्भ में प्रधानमंत्री के नियम की अवहेलना नहीं होती थी। राजीव गांधी खुद पूर्व प्रधानमंत्री थे। उनके ऊपर खतरों को देखते हुए वह एनएसजी की सुरक्षा कवच के हकदार थे जो उन्हें नहीं मिली। जबकि जांच एजेंसियां और गृह मंत्रालय के आला अधिकारी आपस में पत्राचार करते रहे। जहां राजीव को एनएसजी की सुविधा के लिए कुछ सरकारी अधिकारी बहस कर रहे थे वहीं कई दूसरे राजनीतिज्ञों को तत्कालीन सरकार ने एनएसजी सुविधा दे रखी थी। इनमें कांग्रेस के जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार, भजनलाल, बूटा सिंह, एचकेएल भगत और लालकृष्ण आडवाणी थे (पेज 69, फराज अहमद)। एक ओर सरकार जहां कांग्रेस के नेताओं को एनएसजी उपलब्ध करा रही थी वहीं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए विशेष अड़चनें थी। एक पूर्व प्रधानमंत्री के नाती, और दूसरी पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे राजीव गांधी को, जिनके ऊपर विभिन्न आतंकी संगठनों का खतरा मंडरा रहा था, अधिकारियों द्वारा एनएसजी नहीं केवल दो व्यक्तिगत सुरक्षाकर्मी दिए गए। इसके कारण आतंकवादी राजीव गांधी की सुरक्षा में सेंध लगा सके और अंतत: उनकी हत्या करने में सफल रहे। जिन अधिकारियों ने उनकी सुरक्षा को हटाया उनमें तत्कालीन डीआईबी एमके नारायणन, कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा, संयुक्त गृह सचिव (पुलिस) एन के सिंह थे। जस्टिस वर्मा ने इनमें से कुछ अधिकारियों को चिन्हित भी किया था।
तीसरा महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उस समय इस तथ्य को राजीव गांधी के सुरक्षा सलाहकार पी चिदंबरम ने भी नहीं उठाया कि एनएसजी की सुविधा जब कांग्रेस के नेताओं को मिल रही थी तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ञ्चयों नहीं (एनेक्सचर जेएस वर्मा)? यह एक महत्वपूर्ण चूक रही।
चौथा महत्वपूर्ण प्रश्न है कि श्रीपेरुंबुदुर में उनकी सभा में डबल बैरीकेडिंग क्यों नहीं थी। सुरक्षा मानकों के अनुसार राजीव के ऊपर खतरों को देखते हुए यह अहम सुरक्षा उपाय था। वहां के प्रमुख सुरक्षा अधिकारी राघवन थे। राघवन ने प्रमुख सुरक्षा नियमों की क्यों अनदेखी की? जस्टिस वर्मा ने भी इस तथ्य का जिक्र किया है। डबल बैरिकेडिंग का न होना आतंकवादियों का भीड़ में शामिल होने का एक सरल कारण बना।
पांचवा महत्वपूर्ण प्रश्न है कि श्री पेरुंबुदुर की सभा का आयोजन मार्गथम चंद्रशेखर ने किया था। इसकी पूरी व्यवस्था उनकी जवाबदेही थी। उस सभा में स्थापित सुरक्षा मानकों और नियमों का पालन नहीं किया गया। इसमें डबल बैरिकेडिंग न होना और बड़ी संख्या में लोगों का राजीव गांधी से मिलना प्रमुख है। एजी डॉस (एमएलसी) मार्गथम चंद्रशेखर के प्रतिनिधि थे और सभा का संचालन कर रहे थे। उन्होंने पुलिस के निर्देशों के बावजूद राजीव से मिलने वालों की संख्या बढ़ाई, साथ ही उनके आने पर उनसे मिलने वालों को रेड कार्पेट पर आने की घोषणा की। इसी भीड़ में मानव बम धनु सम्मिलित हुई। इसी रेड कारपेट पर विस्फोट कर राजीव की हत्या की गई। एजी डॉस की इन भूलों को वर्मा कमीशन और जांच एजेंसियों ने वर्णित किया है। सीबीआई के जांच अधिकारी के रागोथमन ने भी अपनी पुस्तक में इसका जिक्र किया है।
छठा महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि श्रीपेरुंबुदुर की सभा मार्गथम चंद्रशेखर ने आयोजित की थी लेकिन इसमें तमिलनाडु कांग्रेस का सहयोग नहीं लिया गया था। मार्गथम चंद्रशेखर के लड़के ललित एवं लडक़ी लताप्रिया कुमार ने ही कार्यक्रम की व्यवस्था की थी। लताप्रिया कुमार ने ही लता कानन और उसकी लडक़ी कोकिला को सभा में रेड कार्पेट के पास पहुंचाया। यही लता कानन और उसकी लड़की कोकिला ने राजीव को रेड कारपेट पर रोककर रात के 10:15 मिनट पर हिंदी में कविता सुनाने का आग्रह किया। यही कविता सुनाने के दरमियान मानव बम धनु राजीव गांधी के समीप पहुंचने में सफल रही और माला पहनाने के बहाने विस्फोट कर उनकी हत्या की। लताप्रिया कुमार का बयान बदलना और राजीव के समीप एक अन्य व्यक्ति डेरिल पीटर का रहना, ललित को उसको जानने से इनकार करना और बाद में उससे संबंध का उजागर होना भी अबूझ पहेली रह गई हैं (पेज न. 103 के रागोथमन)।
सातवां महत्वपूर्ण प्रश्न है कि राजीव गांधी जी की हत्या के बाद वहां उपलब्ध महत्वपूर्ण साक्ष्यों में हरिबाबू का कैमरा नियमों के विपरीत क्यों हैंडल किया गया। राघवन को पुलिस मैनुअल और सुरक्षा नियमों की जानकारी के बाद ऐसा क्यों हुआ? इससे जांच की प्रक्रिया मजबूत हुई या कमजोर, यह भी महत्वपूर्ण प्रश्न है।
आठवां महत्वपूर्ण प्रश्न है कि बेंगलूरु पुलिस और एसआईटी सीबीआई ने बेंगलूरु में शिवरासन को उसके मकान में घेर लिया था। शिवरासन राजीव हत्या कांड का प्रमुख सूत्रधार था एवं इसकी जानकारी सभी को थी। फिर भी उसे पकडऩे के लिए पुलिस को एनएसजी के लिए 36 घंटे इंतजार क्यों करने पड़ा? इन 36 घंटों के दौरान शिवरासन ने कई महत्वपूर्ण वीडियो और दस्तावेज जलाए। इसके बाद सात लोग सायनाइड खाकर मर गए। शिवरासन को उसके साथी ने गोली से मारा।
नौवां महत्वपूर्ण प्रश्न है कि इस हत्याकांड की एक महत्वपूर्ण कड़ी षणमुगन पुलिस सुरक्षा के बावजूद कैसे भाग गया। अथक पुलिस प्रयासों के बावजूद उसे नहीं पकड़ा जा सका। वहीं, दूसरे दिन वह एक लुंगी और रस्सी से लटककर मर गया। इस महत्वपूर्ण हत्याकांड के प्रमुख सूत्रधार आखिर पुलिस को जिंदा ञ्चयों न मिले? अगर पुलिस सतर्क रहती तो वे जिंदा होते और शायद राजीव गांधी की हत्या का कोई दूसरा पहलू भी पता रहता।
दसवां महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस हत्याकांड की जांच जब जेएस वर्मा कर रहे थे तो वहां ऐसे तथ्यों को रखा गया। यह रोचक है लेकिन किन लोगों ने किस तरह से अपने तथ्यों को रखा? एजी डॉस और लताप्रिया कुमार के पक्ष में किस तरह की दलील दी गई? कपिल सिब्बल और हरीश साल्वे उनके बचाव में थे।
ग्यारहवां महत्वपूर्ण प्रश्न है कि बी राममूर्ति उस समय तमिलनाडु कांग्रेस के अध्यक्ष थे जब राजीव के तमिलनाडु दौरे की जानकारी मिली। उन्होंने तत्काल एक फैक्स किया कि कांग्रेस का एआईडीएमके नेता जयललिता के साथ महत्वपूर्ण गठबंधन है और उन्हेें चुनाव प्रचार में आने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मार्च 1991 में उन्होंने मरीना बीच पर जयललिता के साथ एक बड़ी सभा को संबोधित किया है। साथ में राममूर्ति ने इस बात का भी जिक्र किया अगर वह श्रीपेरुंबुदूर जाते हैं तो मार्गथम चंद्रशेखर द्वारा किसी मारवाड़ी के निजी मकान में, जो शहर के बीच स्थित है, बिल्कुल न रुकें और चेन्नई आकर ही रुके (पेज न. 31, के रागोथमन)। इस घटना से ऐसा महसूस होता है कि राममूर्ति को किसी बड़े खतरे की जानकारी थी। इस तथ्य को नए आलोक में जानने की भी जरूरत है।