लगता है शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों की ईमानदारी ही उनकी जान की दुश्मन बन गई है। तीन वर्ष पहले इसी तरह के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने की कोशिश कर रहे पुलिस अनुमंडल अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह पर ट्रैक्टर चढ़ाकर उनकी जान ले ली गई। वह मुरैना जिले में अवैध खनन माफिया के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। इसी तरह उत्तर प्रदेश में रेत माफिया के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली आईएएस अधिकारी दुर्गा नागपाल को प्रदेश सरकार ने तबादले का सोंटा चलाकर दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर कर दिया। सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के अवैध जमीन सौदे में हस्तक्षेप करने वाले अशोक खेमका की दुर्गति किसी से छिपी नहीं है। ऐसे न जाने कितने आईएएस, आईपीएस या शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी हैं जिन्हें देश में भ्रष्टाचार, मिलावट और अवैध खनन माफिया के खिलाफ अभियान चलाने की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।
ताजा घटना कर्नाटक के कोलार जिले की है जहां रेत माफिया के खिलाफ नियुक्त आईएएस अधिकारी डी. के. रवि ने बेंगलूरु में अपने सरकारी आवास पर पंखे से फांसी लगाकर जान दे दी। वह अतिरिक्त आयुक्त वाणिज्यिक कर (प्रवर्तन) के पद पर तैनात थे। हालांकि उनके कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है और न ही उन्होंने अपने परिवारवालों को इस तरह का कोई संकेत दिया था, लिहाजा फॉरेंसिक चिकित्सा और विज्ञान की टीम उनकी हत्या किए जाने का भी शक जता रही है और इस आधार पर जांच कर रही है। ईमानदार आईएएस अधिकारी रवि की मौत के मामले में सीबीआई जांच की मांग जब कर्नाटक विधानसभा में भी गूंज रही थी तब ईमानदार प्रशासनिक अधिकारियों की जान को कोई मोल नहीं देते हुए कर्नाटक के कुछ मंत्री और विधायक सदन में ही सोते नजर आए। उच्च शिक्षा एवं पर्यटन मंत्री आर. वी. देशपांडे और वन मंत्री बी. रामनाथ राय जैसे राजनेताओं की नींद तब तक नहीं टूट सकती जब तक कि देश में एक भी ईमानदार अधिकारी मौजूद है। यानी खनन माफिया, भ्रष्टाचारियों, मिलावटखोरों की काली करतूतों से हुई काली कमाई का हिस्सा पाकर ऐसे ही चैन की नींद सोते रहेंगे।