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कड़े कदमों की आहट

नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति में बदलाव के संकेत देने से पहले विदेश मंत्रालय में बदलाव के संकेत पहले दे दिए। विदेश सचिव सुजाता सिंह को कार्यकाल खत्म होने से सात महीने पहले ही उन्हें अचानक उनके पद से हटाकर यह संकेत प्रधानमंत्री ने पूरी नौकरशाही को दिया। इसके बाद उन्होंने कहा, -नौकरशाही को अब समझना चाहिए कि रवैये में अंतर आया है, पहले संतुलन की बात होती थी, सक्रिय, अब तेजी से आगे बढ़ने वाली विदेश नीति अपनानी है।
कड़े कदमों की आहट

प्रधानमंत्री का यह कथन कम से कम इस बात की तो पुष्टि करता ही है कि विदेश नीति का फोकस बदल गया है और संभवतः सुजाता सिंह को एकाएक हटाए जाने के पीछे इस बदलाव का बड़ा हाथ हो। खासतौर से इजराइल और विश्व व्यापार संगठन पर पूर्व विदेश सचिव का रुख भी प्रधानमंत्री को नागवार गुजरा था। अमेरिका में भारतीय राजदूत एस जयशंकर को उनकी जगह नियुक्त किया गया है, जो अमेरिका में भारत के राजदूत थे।

 सुजाता सिंह को बेहद असम्मानजनक ढंग से हटाए जाने के बाद से पूरी नौकरशाही में खासतौर पर विदेश मंत्रालय में हडकंप है।

सुजाता सिंह को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा की समाप्ति के तुरंत बाद आनन-फानन में हटाए जाने को विदेश नीति अमेरिकी और इस्राइली झुकाव से जोड़कर देखा गया। तमाम छोटे-बड़े कारणों पर भी कयास लगाया जा रहा था लेकिन सुजाता सिंह को हटाया जाना निश्चित रूप से नीतिगत वजहों से किया गया था। जिस तरह से सुजाता सिंह को हटाया गया उसके प्रति नौकरशाही के अलावा बाकी हिस्सों में गहरा असंतोष जाहिर किया गया। विदेश सचिव रही निरुपमा राव का कहना है कि सिंह का इस तरह से हटाया जाना बेहद चिंताजनक है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है लेकिन जिस तरह का दबाव बनाया जा रहा है, वह लोकतंत्र में नौकरशाही के कामकामज पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंतरराट्रीय अध्ययन केंद्र में प्रो. अनुराधा चिनॉय ने आउटलुक को बताया कि इस तरह से किसी विदेश सचिव को हटाया जाना बेहद शर्मनाक है। राजनीतिक नेताओं को थोड़ी गरिमा के साथ काम करना चाहिए। जयशंकर को नया विदेश सचिव बनाने पर किसी को कोई आप‌त्ति नहीं है, लेकिन जो पूरी प्रक्रिया अपनाई गई, वह चिंताजनक है। वह भी तब जब सुजाता सिंह के खिलाफ कोई मामला नहीं था और न ही उन्होंने कभी किसी नीति या आदेश अवहेलना नहीं की। चिनॉय के अनुसार ऐसा लगाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक विचित्र किस्म की जल्दी में है, उन्हें तुरंत-तुरंत परिणाम चाहिए और इसके लिए वह तमाम नियम-कायदे और मान्यताएं ताक पर रख रहे हैं। ऐसा नहीं कि सुजाता सिंह पहली विदेश सचिव हैं, जिनको हटाया गया हो। इससे पहले तीन विदेश सचिवों को हटाया गया था, जिनमें 1979 में प्रधानमंत्री चरण सिंह ने जगत मेहता को हटाया, प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1987 ए.पी. वेंकटेश्वरन और 1990 प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह ने एस.के.सिंह को हटाया था।    

ऐसा लगता है कि तेजी से भारत की विदेश नीति में बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है और इसके अच्छे या बुरे परिणाम झेलने के लिए देश बढ़ चला है।

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क्यों मेरा रिकॉर्ड खराब किया-सुजाता’

 गहरे रूप से आहत पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह का यह कहना, 'मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया गया, मेरा रिकॉर्ड खराब किया जा रहा है। यह क्यों जरूरी था?' एक सिद्धहस्त नौकरशाह की व्यथा को बयान करता है। वह पूरे घटनाक्रम पर बहुत बात करने को तैयार नहीं लेकिन उनका यह कहना है कि जिस तरह से चीजों को अंजाम दिया गया, वह दुखदायी है और इसकी गूंज दूर तक जाएगी। विदेश सचिव के तौर पर उनका कार्यकाल दो साल का था, जिसमें सात महीने की जबरन कटौती कर दी गई। इस जबरन कटौती के बारे में सुजाता सिंह का कहना है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उन्हें बताया था कि प्रधानमंत्री एस. जयशंकर को विदेश सचिव नियुक्त करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने अपना इस्तीफा पहले से तैयार रखा था, जिसमें उन्होंने बाकायदा उल्लेख किया था, प्रधानमंत्री के निर्देशानुसार –वह इस्तीफा दे रही हैं। यह बात प्रधानमंत्री को पसंद नहीं आई और वह ये शब्द हटवाना चाहते थे, जिसके लिए वह तैयार न हुई। अपनी तुलना जयशंकर से किए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सुजाता सिंह कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पदभार संभालते ही उनके  शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुखों को बुलाने का कठिन काम कम समय में पूरा किया। दिक्कत यह है कि मैंने कभी श्रेय लेने का खेल नहीं खेला। परमाणु करार पर भी मैंने अहम भूमिका निभाई। वैसे मेरी सबसे बड़ी ताकत बौद्धिक ईमानदारी और निष्ठा है, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जानी चाहिए।  सुजाता सिंह ने आउटलुक से कहा, क्या उन्हें पहले से यह संकेत दिया गया कि प्रधानमंत्री उनके काम से खुश नहीं हैं ? सुजाता सिंह का जवाब था, हां, एक बैठक में मुझसे पूछा गया था कि क्या मैं कोई और काम करना पसंद करूंगी, मैंने बस जवाब दिया कि मैं अपना काम अच्छे से कर रही हीं। मुझे किसी और काम में दिलचस्पी नहीं।

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