आउटलुक पत्रिका ने अपने 27 जून के अंक में सबसे पहले इस मामले का खुलासा किया जिससे यह सच सामने आया कि एस्सार कंपनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय से देश के बड़े नेताओं, अधिकारियों, कॉरपोरेट घरानों के प्रमुखों के फोन टेप करवा रही थी और हाल तक यह टेपिंग जारी रही। इस टेपिंग से भी ज्यादा टेप में कैद आवाजें देश के लिए चिंताजनक हैं। एस्सार के पूर्व सुरक्षा अधिकारी अल्बासित खान को इन खुलासों को सामने लाने का श्रेय दिया जा रहा है। बताया जाता है कि खान को ही इन सभी फोन टेपिंग की जिम्मेदारी दी गई थी। इन टेपों में दर्ज बातचीत के टेक्स्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट के वकील सुरेन उप्पल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिकायत भेजकर मामले की पूरी जांच करवाने का आग्रह किया है। उप्पल का दावा है कि खान ने उन्हें इस खुलासे के लिए अधिकृत किया है मगर खान ने ऐसा कोई अधिकार देने से इनकार किया है। वैसे उप्पल अपने दावे के पक्ष में कई ईमेल होने की बात कहते हैं।
खुलासा किसी ने भी किया हो मगर जिन लोगों की बातचीत टेप की गई उनकी सूची चौंकाती है। इनमें जिन लोगों की आवाजें कैद हैं उनमें वाजपेयी सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा, वाजपेयी के दत्तक दामाद रंजन भट्टाचार्य, मंत्री जसवंत सिंह, दिवंगत प्रमोद महाजन, यूपी के वर्तमान राज्यपाल राम नाईक, वर्तमान बिजली मंत्री पीयूष गोयल, रेल मंत्री सुरेश प्रभु, मुंबई के सांसद कीरिट सोमैया और महाजन के करीबी सुधांशु मित्तल शामिल हैं। कॉरपोरेट जगत से मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी और उनकी पत्नी टीना, रिलायंस इंडस्ट्रीज के निदेशक हेतल मेशवानी, अमिताभ झुनझुनवाला, मनोज मोदी, आनंद जैन और सतीश सेठ आदि शामिल हैं। जिन सरकारी अधिकारियों के फोन टेप किए गए उनमें वाजपेयी के पीएमओ के अधिकारी एन.के. सिंह और वर्तमान गृह सचिव राजीव महर्षि मुख्य हैं। इसके अलावा सहारा समूह के सुब्रत राय, अमिताभ बच्चन, समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह और अमर सिंह भी टेप कांड के शिकारों में शामिल हैं।
टेप की गई बातचीत इन नामों से भी ज्यादा चिंतित करने वाली हैं। आउटलुक की संवाददाता मीतू जैन, जिन्होंने ये पूरा खुलासा सामने लाने का काम किया है, के अनुसार अगर इन आवाजों को सच मानें तो साफ है कि देश में हर चीज बिकाऊ है। 2010 में नीरा राडिया टेप सबसे पहले छापने की हिम्मत दिखाने वाली आउटलुक पत्रिका ने तब लिखा था कि इन टेप से आप यह सोचने पर मजबूर होंगे कि यूपीए सरकार के दौरान भारत गणराज्य बिक्री के लिए उपलब्ध हैं और ताजा खुलासे यह बताते हैं कि यह बिक्री दरअसल यूपीए सरकार से भी पहले वाजपेयी काल से जारी है।
एक दिसंबर, 2002 को रिकार्ड किए गए एक टेप में रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुखिया मुकेश अंबानी और रिलायंस के एक निदेशक सतीश सेठ के बीच हुई बातचीत से खुलासा होता है कि वे प्रमोद महाजन की सहायता से देश के सुप्रीम कोर्ट को मैनेज करने की फिराक में थे।
इसी तरह 29 जनवरी, 2003 को अनिल अंबानी और सतीश सेठ की बातचीत से यह सामने आया कि वे प्रमोद महाजन के पक्ष में शिवानी भटनागर केस को मैनेज करना चाह रहे थे। बाद में इस मामले में महाजन का नाम हटा भी दिया गया गया था। यही नहीं कंपनी इस मामले में संसद में हुए हंगामे को भी अमर सिंह के जरिये साधने में कामयाब रही।
यही नहीं 28 नवंबर 2002 को अमर सिंह और समता पार्टी के सांसद कुंवर अखिलेश सिंह की बातचीत के टेप से यह खुलासा हुआ कि केतन पारेख घोटाले और ग्लोबल ट्रस्ट बैंक से जुड़े विवाद में संयुक्त संसदीय समिति की जांच को अमर सिंह ने रिलायंस के पक्ष में मैनेज कर दिया था।
यह तो चंद उदाहरण हैं। दरअसल ऐसे सैकड़ों बातचीत इन टेपों में दर्ज है। वैसे आउटलुक इन टेपों की सत्यता का दावा अपने स्तर से नहीं कर सकता। ऐसे में यदि प्रधानमंत्री इसकी जांच कराते हैं तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि जांच सिर्फ फोन टेपिंग नहीं बल्कि उसमें दर्ज विवरणों का भी हो तो शायद देश का ज्यादा भला होगा।