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`इज्जत से जीना चाहती हैं बार गर्ल्स'

एक बार मैं देर रात लोकल ट्रेन से घर लौट रही थी। उस कंपार्टमेंट में कुछ और औरतें भी थीं जो ड्रेस में थीं। मुझे लगा वे किसी जेवर की दुकान में काम करने वाली लड़कियां होंगी। पर, इतनी देर तक जेवर की दुकानें खुली नहीं रहती हैं।
`इज्जत से जीना चाहती हैं बार गर्ल्स'

वे लड़कियां देखने में वेश्या भी नहीं लगती थीं और इतनी पढ़ी-लिखी भी नहीं कि उन्हें देख कर कॉरपोरेट कर्मचारी होने का आभास हो। तब फिर ये लड़कियां कौन थीं। मैं ट्रेन से उतर गई लेकिन मेरी जिज्ञासा वहीं रह गई। उसके बाद मैंने बहुत बार उन्हें ट्रेन में देर रात तक देखा। एक दिन मैंने तय किया कि मैं सेकेंड क्लास में सफर करूंगी, क्या पता वहां ज्यादा लड़कियां मिल जाएं। हुआ भी यही। पर, वे अपने समूह में ही बात करती थीं। रोज की पूछताछ से तंग आकर एक लड़की ने कहा कि वह शादियों में वेटर का काम करती है। मैंने उसी लडक़ी से पूछा कि और ये कौन है जो बिलकुल अलग बैठती हैं। उसने मुझे बताया कि वे लड़कियां बार गल्र्स हैं। 

बार गर्ल यानी बार बालाएं, मैंने यह शब्द कहां सुना है? मैंने दिमाग पर जोर डाला, हां अखबार में पढ़ा है, कोई फिल्म भी आई है चांदनी बार। मेरी पृष्ठभूमि सामाजिक सेवा की रही है। मैंने तय किया कि इनके बारे में जानना है और इनकी मदद करना है। मैंने घूमना शुरू किया। कुछ लड़कियां मुझे चेहरे से पहचानने लगी थीं, फिर भी बात नहीं करती थीं। एक बार मैं कच्ची बस्ती में घरों में काम करने वाली महिलाओं की मीटिंग ले रही थी तो एक युवा लडक़ी ने मुझे कहा कि यदि अच्छी नौकरी नहीं मिली तो वह डांस बार में नाचेगी। बस फिर मैंने इस बारे में जानकारी इकट्ठा की। कई बार मैं आखिरी स्टेशन तक उनके साथ गई और फिर स्टेशन पर ही रुकी। धीरे-धीरे लड़कियां खुलने लगीं और मुझे पता चला कि देर रात काम से लौटने पर पुलिस उन्हें परेशान करती है और कुछ लोग उन्हें वेश्या मानते हैं, जबकि वे कलाकार हैं। जैसे और लोग नाचते हैं वे भी नाचती हैं और पैसा कमाती हैं। पुलिस बार में छापा मारती थी और इन्हें पकड़ लेती थी। फिर पैसा लेकर छोड़ती थी। देर रात मिलने वाले शोहदे भी उन्हें परेशान करते थे।

उसी दौरान मैंने भारतीय बार गर्ल यूनियन संस्था का पंजीकरण कराया और जो लड़कियां सदस्य बनीं उन्हें पहचान पत्र दिए। अब कोई पुलिस वाला रात में उन्हें रोकता तो वह अपना पहचान पत्र दिखाती और कोई ज्यादा हुज्जत करता तो मुझे फोन कर देतीं। पुलिस वालों का रवैया बदलने लगा। सदस्यों की संख्या दिन रात बढऩे लगी। मैंने भारतीय दंड विधान की धाराएं पढ़ीं। एक बार जब मैं छापेमारी में गिरफ्तार की गईं लगभग चालीस लड़कियों को बाहर निकाल लाई तो बार मालिकों ने भी कहा कि हमारे यहां आप इस काम को संगठित कीजिए। महाराष्ट्र में प्रतिबंध के बाद लड़कियां बिखर गईं। कुछ दूसरे प्रदेशों में चली गईं। अब धीरे-धीरे लड़कियां फिर लौट रही हैं। कुछ लड़कियां उन्हीं बार में बार टेंडर या वेटर बन गईं जहां नाचती थीं। बार गर्ल्स कहती हैं, हमारे पास खेत-जमीन जायदाद नहीं है। बस हुनर है जिसके जरिये हम इज्जत से जीना चाहती हैं। मैं बस उनके उसी हुनर की ताकत को जिंदा रखने की कोशिश में हूं। 

 

(लेखिका, भारतीय बार गर्ल्स यूनियन की अध्यक्ष हैं) 

 

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