उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के ऐलान होने के तुरंत बाद प्रदेश की राजनीति में तीखा मोड़ आ गया है। सत्ताधारी भाजपा से राजनेताओं का पलायन शुरू हो गया है। इसी कड़ी में अब तक 15 से अधिक विधायक और मंत्री भाजपा का दामन छोड़ चुके हैं, जिससे अब योगी सरकार की मुसीबतें बढ़ गई हैं। इससे ज्यादा चिंता की बात यह है कि अब तक जिन भी विधायकों और मंत्रियों ने भाजपा से इस्तीफा दिया है उन सभी ने योगी सरकार पर एक ही आरोप लगाए हैं। सभी ने सरकार से दलितों-पिछड़ों और समाज के अन्य वर्गों को नजर अंदाज करने की बात कही है।
इन हालातों के बीच अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या 5 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद चुनाव के पहले पाला बदलने वाले विधायकों और मंत्रियों पर पार्टी कोई कार्रवाई कर सकती है या नहीं? तो इसका जवाब है नहीं। जिन विधायकों और मंत्रियों ने पार्टी से इस्तीफा दिया है, उनके खिलाफ भाजपा संगठन स्तर पर कुछ भी नहीं कर सकती है। क्योंकि अब वे पार्टी का हिस्सा नहीं रहे हैं।
आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार इस सावल पर सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता बताते हैं कि चूंकि राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है, इस स्थिति में वहां पर विधायक और मंत्रियों के पाला बदलने पर उन्हें अयोग्य होने का खतरा भी नहीं है। इसलिए चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर पार्टी बदलने का सिलसिला शुरू हो चला है।
उन्होंने बताया कि इन नेताओं पर दल बदल कानून भी लागू नहीं होगा और चुनाव के बाद नई विधानसभा के गठन होने के बाद इन नेताओं के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई भी नहीं की जा सकेगी। जो लोग विधायक या मंत्री नहीं हैं, उन्हें पार्टी बदलने पर कोई खतरा भी नहीं है। जो संसद के सदस्य हैं, उनका ढाई साल का कार्यकाल अभी बाकी है। ऐसे में यदि कोई सांसद पार्टी बदलता है तो उनका अयोग्य होने का खतरा है।
क्या है दल बदल का कानून
यह कानून 1989 में राजीव गांधी की सरकार लेकर आई थी। इसमें कहा गया कि यदि कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाता है तो उसे अयोग्य करार दिया जा सकता है। इसमें यह भी प्रावधान था कि यदि कोई विधायक या सांसद पार्टी व्हीप का पालन नहीं करेगा तो भी उसकी सदस्यता जा सकती है।