‘वीमेन एण्ड द सीटी - मेकिंग द इनविजिबल विजिबल’ नामक अध्ययन में यह पाया गया कि गरीब बस्तियों में रहने वाली महिलाओं, लड़कियों को सशक्त किया जाए तो उनके जीवन स्तर में भी सुधार होगा और महिलाओं को बराबरी का हक भी मिलेगा। रिपोर्ट के परिणाम दो प्रोजेक्ट पर आधारित हैं - ‘दिल्ली स्लम इनीशिएटिव (डीएसआई), 2012-13’ और ‘इनहांसिंग मोबाइल पाॅपुलेशंस एक्सेस टू एचआईवी एण्ड एड्स सर्विसेज़, इन्फार्मेशन एण्ड सपोर्ट (इम्फैसिस), 2009-14’।
रिपोर्ट के विमोचन के अवसर पर केयर इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक राजन बहादुर ने कहा कि यह सच नहीं है कि हम सुखी शहरी लोग हमारे शहर के दीन-हीन लोगों की समस्याओं से बिल्कुल अनजान हैं। परंतु अक्सर उनकी समस्याएं हमारी नजर में सहज होती हैं और हम उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन आज उनकी पुरानी और नई समस्याओं की जो गुत्थी बन गई है उसे समझना या सुलझाना कठिन है। रिपोर्ट के मुताबिक झोपड़पट्टी की महिलाओं की आर्थिक गतिविधि में मानव संसाधन का विकास नहीं हो रहा है। आज भी इनमें कौशल की कमी है। इनका स्वास्थ्य सही नहीं रहता। ये तंदुरुस्त नहीं रहतीं। ऊपर से घर के काम-काज का बोझ रहता है। जीवन के संघर्ष में पैसा कमाने की लाचारी रहती है। इस भाग-दौड़ में इनकी थोड़ी-बहुत जमा पूंजी भी समाप्त हो जाती है और औपचारिक अर्थव्यवस्था में इनकी भूमिका आज भी उत्पादक नहीं बल्कि उपभोक्ता की है।