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गंगा की सफाई पर बवाल, मोदी सरकार के दो मं‍त्रालय आपस में भिड़े

गंगा नदी की सफाई पर पीएम मोदी के दो मंत्रालय अब भिड़ गए हैं। यह फसाद गंगा की सफाई के संबंध में एक दूसरे के अधिकारों को लेकर है। भाजपा की तेज तर्रार नेता उमा भारती के नेतृत्व में जल संसाधन मंत्रालय गंगा नदी की सफाई के लिए मौजूदा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की तरह अधिकार देने के लिए नए प्राधिकरणाें का गठन करना चाहता है। लेकिन नए मंत्री अनिल माधव दवे का पर्यावरण मंत्रलय इसके विरोध में सामने आ गया है।
गंगा की सफाई पर बवाल, मोदी सरकार के दो मं‍त्रालय आपस में भिड़े

सूत्रों के अनुसार जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 के तहत ‘नेशनल गंगा काउंसिल’ व ‘एम्पावर्ड टास्क फोर्स’ के गठन और एनएमसीजी को प्राधिकरण का दर्जा देने के लिए कैबिनेट के पास एक प्रस्ताव भेजा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है। लेकिन, इससे पहले ही पर्यावरण मंत्रलय ने जल संसाधन मंत्रालय के इस कदम का विरोध किया है। पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि जल संसाधन मंत्रालय को इन प्राधिकरणों का गठन पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत अधिसूचना जारी करने की बजाय संसद से कानून बनाकर करना चाहिए।

जल संसाधन मंत्रालय के अधीन एनएमसीजी फिलहाल एक सोसाइटी के तौर पर रजिस्टर्ड है और जल संसाधन मंत्रालय के इस कदम के बाद उसे प्राधिकरण का रूप मिल जाएगा। इसके बाद एनएमसीजी को भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरह शक्तियां प्राप्त हो जाएंगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे कोई निर्माण या उस क्षेत्र में सड़क और पुल जैसे निर्माण के लिए भी एनएमसीजी से मंजूरी लेने की जरूरत होगी।

कैबिनेट अगर जल संसाधन मंत्रालय के इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देती है तो इस प्राधिकरण के बनने के बाद कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गंगा में किसी भी तरह का औद्योगिक अपशिष्ट, खाद या कीटनाशक प्रवाहित नहीं कर सकेगा। इस संबंध में पर्यावरण मंत्रलय का कहना है कि किसानों के खेत से जो खाद और कीटनाशक बारिश के पानी के साथ बहकर नदी में जाते हैं, उसका निर्धारण करना मुश्किल होगा। इसलिए जल संसाधन मंत्रालय के इस प्रावधान से अनावश्यक रूप से किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। साथ ही गंगा के किनारे बसे गांवों में सड़क निर्माण या अन्य प्रकार के निर्माण को भी नियमित करने में दिक्कतें आएंगी।

सूत्रों ने कहा कि फिलहाल जो शक्तियां और अधिकार केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो को मिले हैं, वैसे ही इन नए प्राधिकरणों को मिलेंगे, जिससे कार्यो में दोहराव और विलंब होगा। पर्यावरण मंत्रलय का यह भी कहना है कि पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत जिन संस्थाओं का गठन होता है उनके फैसलों को नेशनल ग्रीन टिब्यूनल में चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में जल संसाधन मंत्रलय ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनने वाले जिस प्राधिकरण के गठन का प्रस्ताव कैबिनेट के पास भेजा है, उसके फैसलों की समीक्षा भी एनजीटी कर सकेगा।

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