2020 में कोरोना की पहली लहर दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले नारा दिया,“जान है तो जहान है”,फिर दूसरा नारा था,“जान भी चाहिए,जहान भी चाहिए”। कोराेना की दूसरी लहर में मोदी जी का दूसरा नारा चरितार्थ करना कड़ी चुनौती है कि तालाबंदी बगैर जिंदगी भी बचानी और अर्थव्यवस्था भी प्रभावित न हो। पहली की तुलना में अधिक विकराल एंव भयावह दूसरी लहर में बढ़ता संक्रमण जान व जहान(आजीविका,अर्थव्यवस्था) के लिए ज्यादा खतरनाक हैं पर इस बार हमारे हाथ लड़ने के लिए टीके का हथियार भी है।
जान और जहान सुरक्षित रखने की चुनौती के बीच हमारे किसान कर्मयोद्धा हम सबके प्रेरक हैं। 2020 में 25 मार्च से शुरू हुई तालाबंदी दौरान भी खेतों में रबी फसलों की कटाई,ढुलाई से लेकर मंडियों में इनकी बिक्री में जुटे किसानों ने ही फल-सब्जी,दूध जैसी रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं की निबार्ध आपूर्ति भी बनाए रखी। 55 फीसदी से अधिक आबादी को रोजगार देने वाला देश का कृषि क्षेत्र की एक मात्र ऐसा क्षेत्र रहा जिसने कोरोना संकट काल में भी 3.4 फीसदी वृद्धि दर्ज की। किसानांे से ही एक बड़ी सीख यह है कि काेरोना महामारी में जान व जहान भी बरकरार रखने की चुनौती से अन्य क्षेत्रों को भी पार पाना है। जान भी चाहिए,जहान भी चाहिए के मद्देनजर कुछ राज्यों में सप्ताहंात के दो दिन तालाबंदी के बीच फिलहाल देशभर में लंबी पूर्ण तालाबंदी के अासार कम हैं। इस बीच अपने मूल राज्यों के लिए लौटती कोरोना खोफज़दा हजारों प्रवासी श्रमिकों की आशंकित भीड़ ने विनिर्माण(मेन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र के छोटे-बड़े उद्यमियों की चिंता फिर से बढ़ा दी है।
महामारी की पहली लहर के कहर से अभी उबरे नहीं थे कि दूसरी ने धावा बोल दिया। दूसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता फिर से बढ़ा दी है। निवेश बैंक अपने कारोबार वृद्धि की संभावनाओं को कम करके आंक रहे हैं। दूसरी लहर ऐसे समय में आई है जब अर्थव्यवस्था पिछले साल महामारी के प्रसार को रोकने के लिए की गई तालाबंदी के असर से उबर रही थी। अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार के फरवरी में लगाए जाने वाले कयास पर विराम न लगे,यह एक बड़ी चुनौती फिर से खड़ी हो गई है। सर्वे एजेंसी मूडीज़ ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा,“ कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर ने पटरी पर तेजी से लौटती भारत की अर्थव्यवस्था के अनुमानों पर संकट खड़ा कर दिया है। महामारी को रोकने के लिए तालाबंदी से आर्थिक गतिविधियों पर गहरा असर पड़ेगा। भारतीय िरजर्व बैंक की मार्च में आई ‘कंज्यूमर कॉफिंडेंस’ सर्वे रिपोर्ट मुताबिक,“फरवरी के मुकाबले अप्रैल में देश में खुदरा बिक्री और मनोरंजन गतिविधियां 25 फीसदी तक कम हो गई हैं”। शॉपिंग सेंटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया(एससीएआई)के मुताबिक कोरोना से पहले मासिक 15,000 करोड़ रुपए का कारोबार महामारी की दूसरी लहर में स्थानीय स्तर की आंशिक तालाबंदी से ही करीब 50 प्रतिशत गिर गया है।
केंद्र सरकार ने 2020 में महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए 27 लाख करोड़ रुपए के ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज़ में विनिर्माण और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए 1.57 हजार करोड़ रुपए के उत्पादन आधारित प्रोत्साहन(पीएलआई) स्कीम की घोषणा की जिसमें सबसे अधिक 57,042 करोड़ रुपए ऑटोमोबाइल और इसके पुर्जाें के उद्योग के लिए हैं। कोरोना की पहली लहर के असर से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए कारोबारियों को दिए गए उत्पादन प्रोत्साहन पैकेज़ का दूसरी लहर में फिर से तालाबंदी के हालात में कारगर होना मुश्किल होगा। प्रोत्साहन का पुरस्कार पुरुषार्थ करने पर ही मिलेगा। जैसे कोरोना की जंग से हमारी जान बचाने को हमारे कर्मयोद्धा डाक्टर,नर्स,लैब तकनीशियन और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के कर्मयोग से स्वास्थ्य सेवाएं अनवरत घुमती घड़ी की सुईयों की तर्ज पर जारी हैं वैसे ही जहान के लिए अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर बनाए रखने को औद्योगिक उत्पादन से आखिर उपभोक्ता तक 24 घंटे पहुंच बने रहना जरुरी है।
मौजूदा आर्थिक हालात में पूर्ण तालाबंदी तार्किक नहीं है। 2020 में देशभर में 25 मार्च से 31 मई के दौरान चार चरणों की 68 दिन की पूर्ण तालाबंदी से अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा था। असंख्य कारोबार की तालाबंदी से बेरोजगार हुए लाखों लोग अभी तक अर्थव्यस्था की मुख्यधारा में नहीं लौट पाए हैं। नवम्बर 2020 से फरवरी 2021 दौरान आंशिक रुप से संभली अर्थव्यवस्था को पूर्ण तालाबंदी की पुनावर्ति से संभलने का वक्त नहीं मिल पाएगा। देशभर के ज्यादातर राज्यों में रात 9 बजे के बाद की तालाबंदी ने होटल,रेस्तरां,क्लब,सिनेमा जैसे कारोबारों को फिर से जकड़ दिया है, इसे और बढ़ा देना बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है। एक बड़ी वजह यह भी कि पूर्ण तालाबंदी से केंद्र व राज्य सरकारें फिलहाल हिचक रही हैं। पूर्ण तालाबंदी को बेहतर विकल्प न मानने वाले अर्थशास्त्री कहते हैं, “2020 में पूर्ण तालाबंदी लगाने का उद्देश्य स्वास्थ्य तंत्र को कोविड-19 से लड़ने और लोगांे को कोरोना के खतरे व बचाव के लिए मानसिक रुप से तैयार करना था। उस दौरान लोगों ने वायरस के खतरे को समझते हुए जान की सुरक्षा के लिए मॉस्क को जरुरी अंग वस्त्र की तरह पहनने,हाथ धोने व सामाजिक दूरी बनाए रखने की आदत डाली। कोरोना के प्रति सजगता का करीब 50 फीसदी उद्देश्य अभी तक पूरा हुआ है। सालभर में केंद्र व राज्य सरकारांे ने अपने स्तर पर स्वास्थ्य तंत्र को बहुत पुख्ता किया है पर लोग सजग नहीं हुए तो उन्हंे चंद अगले दिनांे मंे सजग करना भी एक बड़ी चुनौती है। ताजा उदाहरण हरिद्वार कुंभ मेले में सत्तर लाख लोगांे की भीड़ ने आस्था की डुबकी में कोरोना के संभावित खतरे को ताक पर रख दिया,कमोवेश यही हाल पांच चुनावी राज्यों की रैलियों में उमड़ी भीड़ मंे भी दिखा।
काेरोना से बचाव के तमाम उपायों के बीच स्वंय सयमित उद्योगों की चिमनियां ठंडी न पड़ें,मशीनों की घड़घड़ाहट जारी रहे,साॅयरन की आवाज पर नीले कॉलरधारी फैक्टिरियों में प्रवेश करते दिखते रहे और माल लदी गाड़ियों की आवाजाही रहे। सालभर से ‘वर्क एट होम’ की संस्कृति में ढले सफेद काॅलरधारियांे की अंगुलियां दफ्तरनुमा घरों में कंप्यूटर और लैपटॉप पर िथरकती रहें। हमारे श्रमिक,उद्यमी योद्धाओं का देश की अर्थव्यवस्था मंे योगदान से ही यह जहान कायम है। जान के साथ यह कड़ी व लड़ी भी बड़ी रहे। अर्थव्यस्था पटरी पर रहे जिससे केंद्र व राज्य सरकारों के जीएसटी और अन्य राजस्व का ग्रॉफ चढ़ते क्रम में रहें जिससे कारोेना के संकट काल में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़े अप्रत्याशित खर्च में कहीं कोई कमी न होने पाए।
समाधान: तालाबंदी और संक्रमण को फैलने देने के बीच का विकल्प आसान नहीं है। सप्ताहांत की तालाबंदी भी पुख्ता हल नहीं है,जैसे शनिवार और रविवार की तालाबंदी में अटके लोगों की भीड़ साेमवार को बाहर निकलेगी जिससे संक्रमण की संंभावना भी बढ़ेगी। ढिलाई के प्रति कड़ाई जबरन थोपने की एक सरकारी सीमा है ऐसे में स्वंय सयमित होने की जरुरत है। इन दिनों कई शहरों से ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां बगैर किसी सरकारी फरमान के कारोबारियों ने खुद अनुशासित तालाबंदी लागू है। खुद तय कर ले कि लंबी तालाबंदी मंजूर है या स्वंय अनुशासित होकर काेरोना फतेह करना है। बचाव के लिए केंद्र सरकार ने एक मई से 18 वर्ष व इससे अधिक आयु वर्ग के टीकाकरण का फैसला कर बहुत बड़े वर्ग को काेरोना सुरक्षा कवच की एक बड़ी पहल की है। इधर राज्य सरकारों को जहां टैस्ट और टीकाकरण केंद्रों की संख्या बढ़ा इसमें तेजी लानी होगी वहीं स्वास्थ्य तंत्र का विस्तार स्कूल,कॉलेज,यूनिवर्सिटीज परिसरों मे करना चाहिए। इंडस्ट्रियल आक्सीजन का उत्पादन और आपूर्ति घटाकर इसे जीवन रक्षक आक्सीजन की ओर केंद्रित करना होगा। छोटे उद्यमी व बड़ी कंपनियां अपने स्तर पर जहां सेनेटाइजे़शन,मॉस्क,देह दूरी आदि नियमों का सख्ती से पालन करें वहीं श्रमिकों और कर्मचारियों के उपचार और टीकाकरण से उनके स्वास्थ्य के प्रति सजगता का माहौल भी बहाल करना होगा। महामारी की अनदेखी न करते हुए इसके रोकथाम और टीकाकरण की योजनाबद्द ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जरूरी है।