दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और उपराज्यपाल के बीच पिछले काफी वक्त से जारी गतिरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने कुल 6 मुद्दों पर अपना निर्णय दिया है, लेकिन सबसे अहम मामला अब भी लटक गया है। दिल्ली में केंद्रीय कैडर के अधिकारियों की ट्रांसफर- पोस्टिंग का मुद्दा अभी बड़ी बेंच के हवाले कर दिया गया है।
आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दिल्ली सरकार को कौन से अधिकार मिले हैं और कौन से मामले उपराज्यपाल (एलजी) के अधिकार क्षेत्र में आएंगे।
अफसरों का ट्रांसफर-पोस्टिंग
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ग्रेड 1, ग्रेड 2 स्तर के अफसरों का मसला केंद्र सरकार के पास और ग्रेड 3, ग्रेड 4 के अफसरों का मामला दिल्ली सरकार के पास रहेगा। दोनों जजों के बीच इस मुद्दे पर एक सहमति नहीं बन पाई है, यही वजह है कि इस मामले को बड़ी बेंच के हवाले कर दिया है। अब तीन जजों की बेंच इस मामले को सुनेगी।
एंटी करप्शन ब्रांच
एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) का अधिकार केंद्र को दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दिल्ली विशेष स्थिति वाला राज्य है और यहां की पुलिस केंद्र के अधीन है इसलिए भ्रष्टाचार की जांच के मामले भी एलजी के अधीन ही होंगे।
जांच आयोग का गठन
शीर्ष अदालत ने कहा है कि कमिशन ऑफ इन्क्वायरी ऐक्ट के तहत अधिकार एलजी के पास रहेंगे। दिल्ली सरकार जांच आयोग का गठन नहीं कर सकती है।
जमीन और रेवेन्यू
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि जमीनों का सर्कल रेट दिल्ली सरकार तय करेगी। दिल्ली सरकार ही मुआवजे का निर्धारण भी करेगी। जमीन से जुड़े अन्य मामले भी सीएम ऑफिस के नियंत्रण में होंगे। हालांकि रेवेन्यू पर सरकार को एलजी की सहमति लेनी होगी।
बिजली सुधार का मुद्दा
राजधानी में इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का मुद्दा काफी अहम रहता है, सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़े सभी अधिकार दिल्ली सरकार को दिए हैं। यानी इस बोर्ड का डायरेक्टर कौन होगा, किस अधिकारी की इस बोर्ड में पोस्टिंग होगी, ये सभी फैसले दिल्ली सरकार ले सकेगी।
सरकारी वकील की नियुक्ति
किसी भी मामले में यदि दिल्ली की ओर से सरकारी वकील की नियुक्ति करनी होगी, तो उसका अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। यानी राज्य की ओर से किसी भी कोर्ट में अगुवाई कौन करेगा, इस पर फैसला दिल्ली सरकार लेगी।