न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि चूंकि 11 सितंबर को अंतिम अवसर दिए जाने के बावजूद केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल नहीं किया है, इसलिए उस पर 25 हजार रूपए का अर्थदंड लगाया जाता है। न्यायालय ने संबंधित प्राधिकारी को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
इससे पहले, सितंबर में केंद्र महिलाओं को कथित रूप से देवदासी बनने के लिये बाध्य करने की प्रथा के बारे में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने पर सहमत हुआ था। न्यायालय ने उस समय स्पष्ट किया था कि इसके बाद उसे और समय नहीं दिया जाएगा। इस मामले पर अगली सुनवाई 8 जनवरी को होगी।
न्यायालाय ने गैर सरकारी संगठन एसएल फाउंडेशन की जनहित याचिका पर पिछले साल केंद्र सरकार से जवाब-तलब किया था। इस याचिका में केंद्र और कर्नाटक सरकार को राज्य के देवनगर जिले के उत्तांगी माला दुर्गा मंदिर में 13 फरवरी, 2014 की आधी रात को देवदासी समर्पण को रोकने के लिये तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायालय को सूचित किया गया था कि यह गतिविधि कर्नाटक देवदासी समर्पण निषेध कानून, 1982 के खिलाफ है और इससे किशोर के अधिकारों का हनन होता है।
उस समय न्यायालय ने कर्नाटक के मुख्य सचिव को 14 फरवरी, 2014 के भोर पहर में होने वाले इस कार्यक्रम में, जहां दलित किशोरियों को देवदासी के रूप में समर्पित किया जाना था, के संबंध में सभी एहतियाती उपाय करने का निर्देश दिया था। पीठ ने इस जनहित याचिका पर कर्नाटक सरकार से भी जवाब मांगा था। इस याचिका में देवदासी प्रथा रोकने के लिये दिशानिर्देश बनाने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि यह राष्ट्रीय शर्म की बात है। गैर सरकारी संगठन ने आरोप लगाया था कि देवदासी प्रथा के खिलाफ कानून होने के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में यह कुप्रथा जारी है। इस संगठन ने न्यायालय से इसमें हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था।