कालचक्र की विडंबना ही है कि जब प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला से भी पुराने तेलहारा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष का उत्खनन हो रहा है, उसी समय स्टेट विजिलेंस यूनिट यहां के विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार की खुदाई करने में लगी हुई है। सूबे के लगभग सभी 17 विश्वविद्यालयों में वित्तीय अनियमितता और भ्रष्टाचार की जांच शुरू हो गई है। शीतकालीन सत्र के दौरान नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव, सूबे के बुद्धिजीवियों सहित पक्ष-विपक्ष के 18 विधान पार्षदों ने बिहार के प्राचीन शैक्षणिक गौरव की याद दिलाते हुए कुलाधिपति से इसमें अविलंब सुधार की मांग शुरू कर दी है। वित्तीय अनियमितता की आशंका से घिरी सरकार ने विश्वविद्यालयों के पर्सनल लेजर अकाउंट में पड़े 1100 करोड़ रुपये का हिसाब-किताब लेना शुरू कर दिया है। भ्रष्टाचार में जीरो टॉलरेंस पॉलिसी के तहत विभाग ने सख्त पत्र लिखते हुए कुल सचिवों और वित अधिकारियों को चेताया है कि विभाग द्वारा गठित जांच कमेटी को अगर हिसाब देने में कोताही बरती गई तो प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने महालेखाकार को भी पत्र लिख कर विश्वविद्यालयों में ऑडिट कराने का अनुरोध किया है। पत्र में लिखा गया है कि विश्वविद्यालयों में कई वर्षों से ऑडिट नहीं हुआ है। विभाग इस बात को लेकर भी हैरान है कि बिना उपयोग के विश्वविद्यालयों ने आखिर इतनी राशि ली क्यों है? दूसरी ओर विभाग को लगातार शिकायतें मिलती रही हैं कि अवकाश प्राप्त कर रहे शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को वेतन, सेवानिवृत्ति लाभ तथा पेंशन आदि का नियमित भुगतान नहीं हो रहा है।
उच्च शिक्षा की गतिविधियों को लेकर नीतीश सरकार भी बहुत संतुष्ट नजर नहीं आ रही है। इसका प्रमाण पिछले दिनों तब मिला जब राजभवन में आयोजित बेस्ट वीसी अवॉर्ड सम्मान समारोह में शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी राजधानी में रहते हुए भी उपस्थित नहीं हुए। यह अवॉर्ड ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के वीसी सुरेंद्र प्रताप सिंह को ठीक उस समय दिया गया जब अरबी-फारसी विश्वविद्यालय के वीसी प्रो. कुदुस ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर बताया कि एसपी सिंह जब यहां प्रभारी कुलपति थे, उस समय उन्होंने सात रुपये की दर वाली 60 हजार कॉपियां 16 रुपये की दर से लखनऊ की एक ही फर्म से खरीदीं। उन्होंने यह भी लिखा कि उनके प्रभार लेते ही उन पर उक्त कॉपियों के भुगतान का दबाव लगातार बनने लगा। भुगतान से पहले कुदुस ने यह जानने की कोशिश की कि पूर्व वीसी ने कॅापी खरीद में नियमों का पालन किया या नहीं? अगर खरीद में नियमों का पालन नहीं हुआ, तो फिर खरीद के लिए कौन-सी प्रक्रिया अपनाई गई? प्रो. कुदुस कहते हैं कि भुगतान के लिए उन पर हर तरह से दबाव बनाया गया। इससे उन्हें गलत की आशंका हुई और और प्रांरभिक जांच में ही दाल में काला नजर आने लगा। शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने मामले पर संज्ञान लिया और इसे गंभीर मामला बताते हुए जांच के आदेश दिए हैं। उसी समय कुलाधिपति फागू चौहन ने एसपी सिंह से पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय का प्रभार छीन कर आरके सिंह को कुलपति नियुक्त कर दिया। प्रो. सिंह उत्तराखंड के बीटेक आइटी के ईसी विभाग में हेड हैं। एसपी सिंह मिथिला विवि के कुलपति तो थे ही, साथ ही उन दोनों विश्वविद्यालयों के प्रभारी कुलपति भी थे। हालांकि सिंह ने आरोपों को खारिज करते हुए कोर्ट जाने की बात कही है।
मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेन्द्र प्रसाद
मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। विजिलेंस के राडार पर वर्षों से रहे मगध विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने तो भ्रष्टाचार की सभी सीमाएं लांघते हुए एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। जब वे वीर कुंवर सिंह विवि में वीसी थे, उस समय भी उन्होंने वित्तीय मनमानी की थी। विजिलेंस ने उनके बिहार से लेकर यूपी गोरखपुर सहित कई ठिकानों पर छापेमारी कर 30 करोड़ रुपये की हेराफेरी का मामला पकड़ा है। गोरखपुर के उनके आवास से 70 लाख रुपये, 15 लाख के जेवरात तथा पांच लाख रुपये की विदेशी मुद्राएं बरामद हुई हैं। विदेशी मुद्राओं में यूरो, डॉलर, चाइनीज येन और पाउंड भी मिले हैं। इस बात की जांच की जा रही है कि उन्होंने इन देशों की यात्राएं की थीं या किसी दूसरे मकसद से मुद्राएं मंगवाईं थीं। उनके पास एक करोड़ से अधिक मूल्य की चल-अचत संपत्ति में निवेश के प्रामाणिक दस्तावेज भी मिले हैं। इस पर भी उनका साहस देखते बनता है। 17 नवंबर को जब उनके ठिकाने पर छापेमारी हुई तो 18 नवंबर को उन्होंने विश्वविद्यालय में नया फरमान जारी करते हुए प्रो वीसी, रजिस्ट्रार, वित्तीय सलाहकार, वित्त पदाधिकारी और परीक्षा संचालक को निर्देश दे दिया कि बिना उनकी
अनुमति के किसी भी तरह की ऑफिशियल फाइल थर्ड पार्टी को नहीं दी जाए। जाहिर है ये थर्ड पार्टी में विजिलेंस यूनिट है, जो जांच कर रही है। इतना ही नहीं, यह निर्देश जारी कर मगध विश्वविद्यालय आवास पर ताला लगाकर वे उसी दिन से चिकित्सीय अवकाश पर चले गए। नियम के मुताबिक उस दिन तक अवकाश के पक्ष में उन्होंने न कोई चिकित्सीय प्रमाणपत्र सलंग्न किया न सूचना दी। इस संबंध में राज्यपाल के निजी सचिव विजय कुमार सिंह ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। मगध विश्वविद्यालय के वीसी आवास की तालाबंदी से हैरान विजिलेंस ने सरकार से उसे खुलवाने का आग्रह किया है ताकि आगे की कार्रवाई बाधित न हो। टीम ने यह भी आशंका जताई है कि आवास में रखे कागजात के साथ छेड़छाड़ हो सकती है या उन्हें नष्ट किया जा सकता है। अपने किस्म का यह पहला मामला है, जब छापेमारी के दौरान जांच स्थल को अपने कब्जे में लेकर आरोपी लंबे अवकाश पर चला गया हो।
बहरहाल, प्रो. राजेन्द्र प्रसाद, उनके सहायक सुबोध कुमार, मेसर्स पूर्वा ग्राफिक्स और ऑफसेट प्रिंटर्स, मेसर्स एक्सएलआईटी सॉफ्टवेयर कंपनी लिमिटेड लखनऊ, वीर कुंवर सिंह विवि के वित्त पदाधिकारी ओमप्रकाश, पाटलिपुत्र विवि के कुल सचिव जितेंद्र कुमार सहित अन्य कई पर आइपीसी की धारा 120 बी, 420 तथा पीसी एक्ट 1988 सहित अन्य धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज करते हुए कार्रवाई तेज कर दी गई है।
कुलाधिपति फागू सिंह चौहान
इस संबंध में दिलचस्प यह है कि भ्रष्टाचार के वायरस पर लगभग सभी यूनिवर्सिटी में जांच चल ही रही थी कि कुलाधिपति फागू चौहान को दिल्ली तलब कर लिया गया। उनके दिल्ली रवाना होते ही कई तरह के कयास लगने शुरू हो गए। दिल्ली में कुलपति नियुक्ति और भ्रष्टाचार पर मीडिया द्वारा पूछे गए सवाल पर उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि जिन पर आरोप लगे हैं, उनसे पूछा जाए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस पर कुलाधिपति के साथ चर्चा की है। मुख्यमंत्री ने पाटलिपुत्र के वीसी और एनओयू के प्रो वीसी की नियुक्ति के साथ मगध विश्वविद्यालय के कुलपति के आवास पर छापेमारी को लेकर चर्चा की। विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के शोर-शराबे और जारी जांच के बीच राजभवन की रहस्यमय चुप्पी से शिक्षाविदों में हैरानी है। विभाग ने वित्तीय धांधली रोकने के लिए तत्काल ऑनलाइन फाइनेंस सिस्टम लागू कर दिया है। पर लोगों की नजरें भानुमती के उस पिटारे पर टिकी हैं, जो महालेखकार को सौंपा गया है।
बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन के पूर्व सदस्य शिवजतन ठाकुर ने मुख्यमंत्री और कुलाधिपति को पत्र लिखते हुए ऐसी बिंदुओं की ओर इशारा किया है, जो भारी-भरकम रसूख रखते हुए विश्वविद्यालयों में बैठे बड़े हाकिमों को सरंक्षण देते हुए उनके रक्षा कवच बने हुए हैं। उन्होंने अपने पत्र में उच्च शिक्षा के आंगन में बैठे वैसे हुक्मरानों की भी चर्चा की है, जिन्होंने नियमावलियों की धज्जियां उड़ाते हुए विश्वविद्यालयों को अपनी जागीर की तरह इस्तेमाल किया।