उन्होंने बताया कि समिति की ओर से प्रधानमंत्री, केंद्रीय बिजली मंत्री, केंद्रीय श्रम मंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को प्रेषित नोटिस में लिखा गया है कि लोकसभा में जिस दिन इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) बिल, 2014 प्रस्तुत किया जाएगा उस दिन देश के तमाम बिजली कर्मचारी, वरिष्ठ एवं कनिष्ठ अभियंता एक दिन की हड़ताल, कार्य बहिष्कार और विरोध प्रदर्शन कर इस जनविरोधी विधेयक का प्रतिकार करेंगे। हालांकि दुबे ने यह नहीं कहा कि क्या कर्मचारी अलग-अलग जगह बिजली आपूर्ति भी ठप करेंगे मगर इतना तय है कि किसी भी खराबी की स्थिति में जनता को बिजली के लिए तरसना पड़ सकता है।
इस हड़ताल में ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन, ऑल इंडिया पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइलज (ऐटक), इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीटू), इंडियन नेशनल इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (इंटक), ऑल इंडिया पारवमैन्स फेडरेशन और सभी राज्यों के कई स्वतंत्र ट्रेड यूनियन संगठन शामिल होंगे। दुबे ने आरोप लगाया कि 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र के एजेंडे में शामिल किए गए इस विधेयक का मकसद बिजली आपूर्ति व्यवस्था का निजीकरण करना है जिसमें निजी घरानों के मुनाफे का खास ध्यान रखा गया है जबकि आम जनता पर बिजली शुल्क में भारी वृद्धि का बोझ डालने की तैयारी है। यह विधेयक जनता के साथ धोखा है।
दुबे ने बताया कि प्रधानमंत्री और सभी प्रांतों के मुख्यमंत्रियों को पहले ही पत्र भेजकर प्रभावी हस्तक्षेप करने की मांग की जा चुकी है कि विधेयक को जल्दबाजी में पारित करने के बजाय जनसुविधा और विद्युत व्यवस्था की बेहतरी के लिए बिजलीकर्मियों और उपभोक्ताओं की इस बारे में राय ली जाए लेकिन कर्मचारियों के विरोध को दरकिनार कर बिल को लोकसभा के एजेंडे में शामिल कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि विधेयक के विरोध में सात प्रमुख बिंदु उठाए गए हैं। पूछा गया है कि वर्ष 2019 तक सबको बिजली मुहैया कराने के लिए इस संशोधन विधेयक में क्या प्रावधान हैं और साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज और घाटे में चल रही बिजली वितरण कंपनियां इस संशोधन की किस धारा से घाटे से उबर पाएंगी और सबको बिजली देने का लक्ष्य कैसे पूरा होगा। सरकार से यह भी पूछा गया है कि बिजली आपूर्ति के नए निजी लाइसेंसी बिजली आपूर्ति करने में अपना मुनाफा देखते हुए सामान्य घरेलू उपभोक्ता और औद्योगिक एवं वाणिज्यिक उपभोक्ताओं के बीच भेदभाव करेंगे तो इससे निपटने का संशोधन विधेयक में क्या प्रावधान है। इसके अलावा प्रस्तावित संशोधन के बाद कहीं आम घरेलू उपभोक्ताओं को ही बिजली दरों में भारी वृद्धि का झटका तो नहीं सहन करना पड़ेगा।