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धार्मिक राष्ट्रवाद खुद ही गढ़ लेता है अपना इतिहास: रोमिला थापर

भारत के अग्रणी बुद्धिजीवियों में से एक रोमिला थापर ने कहा है कि धार्मिक राष्ट्रवाद अपने समुदाय की महानता रेखांकित करने के लिए इतिहासकारों के इतिहास पर पूर्वग्रह का आरोप मढ़ता है और अपना इतिहास खुद ही गढ़ लेता है।
धार्मिक राष्ट्रवाद खुद ही गढ़ लेता है अपना इतिहास: रोमिला थापर

रोमिला ने एक विशेष साक्षात्कार मेें राष्ट्रवाद और छद्म राष्ट्रवाद पर चर्चा की और बताया कि किस तरह का राष्ट्रवाद हमारे देश के लिए उपयुक्त है। उन्होंने एजी नूरानी और सदानंद मेनन के साथ मिल कर नई किताब आॅन नेशनलिज्म लिखी है। अलेफ से प्रकाशित इस किताब में लेखकों ने भारतीय राष्ट्रवाद की उत्पत्ति, प्रकृति, व्यवहार और भविष्य के प्रश्नों पर सुसंगत एवं गहन विमर्श किया है।

रोमिला कहती हैं कि अपना इतिहास खुद से गढ़ कर धार्मिक राष्ट्रवाद एक अर्थ में अपनी पौराणिक गाथाएं तैयार करता है जो मौजूदा मुद्दों से जुड़ी होती हैं। वह कहती हैं, इस तरह की पौराणिक गाथाओं का विश्लेषण मौजूदा सियासत मेें उनकी जरूरतों के लिए एक अतिरिक्त व्याख्या होगी। धार्मिक राष्ट्रवाद में वैमनस्य का निशाना उपनिवेशवादी नहीं होते, बल्कि सत्ता के प्रतियोगी होते हैं। इसलिए, राष्ट्रवादी वैमनस्य किसी अंदर के ही समुदाय की तरफ लक्षित होता है।

रोमिला कहती हैं कि इसके विपरीत, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद इतिहासकारों के शोध के रूप में इतिहास का इस्तेमाल करना चाहता है और अतीत को ले कर फंतासी से परहेज करने की कोशिश करता है। वह कहती हैं, जहां धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद उपनिवेशवाद विरोधी राष्ट्रवाद भी होता है जैसा अकसर पूर्व उपनिवेशों के साथ होता है, वहां वैमनस्य उपनिवेशी ताकत के खिलाफ निर्देशित होता है जो समाज से इतर होता है और अनेक मामलों में सांस्कृतिक रूप से भिन्न होता है। उपनिवेशवादी के खिलाफ वैमनस्य इस राष्ट्रवाद में हिस्सा ले रहे समूहों को एक साथ बांधने में मदद करता है।

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