जिला अदालतों के न्यायिक अधिकारियों को सरकुलर जारी कर कहा गया है कि वह अपनी अदालत में किसी खास अभियोजक या नायब कोर्ट की तैनाती के लिए न कहें। अभियोजन निदेशालय एक स्वतंत्र संस्था है जिसे तर्कसंगत तरह से काम करने दिया जाए।
यह प्रशासनिक आदेश जिला और सत्र न्यायाधीश (मुख्यालय) तलवंत सिंह की ओर से उस संदर्भ में जारी किया गया है जिसमें निदेशक (अभियोजन) ने अदालतों में अभियोजकों या नायब कोर्ट की तैनाती पर जजों के व्यवहार पर चिंता जताई थी। निदेशक ने दावा किया है कि काफी संख्या में जज ने खास अभियोजक या नायब कोर्ट (हर अदालत में तैनात होने वाले पुलिसकर्मी) की तैनाती के लिए दबाव डाला है।
सरकुलर में कहा गया है कि सभी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, मुख्य मेट्रोपोलिटेन मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटेन मजिस्ट्रेट के लिए यह सुझाव दिया जा रहा है कि निदेशक अभियोजन एक स्वतंत्र एजेंसी है जो न्यायिक तरह से अपना प्रशासन देखती है। यह अभियोजन निदेशालय का अधिकार है कि वह आपराधिक अदालतों में राज्य की ओर से पैरवी के लिए लोक अभियोजक नियुक्त करे। इस नाते किसी खास अभियोजक या नायब कोर्ट की मांग करना और नए नियुक्त किसी अभियोजक को सत्र अदालत में काम करने से मना करना किसी भी तरह बाजिव नहीं कहा जा सकता।
मुख्य सचिव या गृह सचिव की तरफ से किसी भी तरह की खतोकिताबत जिला अदालत और सत्र न्यायाधीश के जरिए होनी चाहिए। इस नाते न्यायिक अधिकारियों द्वारा किसी खास लोक अभियोजक के बारे में आदेश देने की आदत पर रोक लगाई जानी चाहिए। साथ ही उम्मीद की जाती है कि न्यायिक अधिकारी इस सलाह पर अमल करेंगे और अभियोजन निदेशालय को अपनी ड्यूटी को बिना किसी अनुचित दबाव के करने देंगे। जिला जज के साथ निदेशक अभियोजन की हुई बैठक में यह बात भी सामने आई है कि कुछ जज मुख्य सचिव या गृह सचिव को पत्र लिखने तक की धमकी देते हैं, यहां तक उन्होंने इस तरह के पत्र लिखे हैं और आदेश भी दिए हैं। सरकुलर में यह भी कहा गया है कि निदेशालय आपराधिक न्यायिक व्यवस्था में बेहतर प्रशासन और सहायता देगा लेकिन जज उनके कामकाज में रूकावट पैदा न करें क्योंकि यह हमेशा संभव नहीं है कि दिल्ली के जिला अदालतों के जजों की मांग को वह पूरा कर पाएं।