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चेहरे नहीं अभिव्यक्ति पर कालिख

देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री और बाबरी मस्जिद के खिलाफ उग्र राष्ट्रव्यापी मंदिर आंदोलन चलाने वाले लालकृष्ण आडवाणी का मानना है कि देश में असहिष्णुता का माहौल बढ़ रहा है। यह लोकतंत्र की भावना के विपरीत है। इस टिप्पणी का संदर्भ भी कम दिलचस्प नहीं है।
चेहरे नहीं अभिव्यक्ति पर कालिख

 

भाजपा और लालकृष्ण आडवाणी के सहयोगी रहे और एक कॉरपोरेट थिंक टैंक-ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया (ओआरएफ) के चेयरमैन सुधींद्र कुलकर्णी के चेहरे पर शिवसेना के लोगों ने कालिख पोत दी। शिवसेना उनसे नाराज थी। वह अपनी संस्था की तरफ से पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुुर्शीद महमूद कसूरी की किताब नाइदर हॉक नॉर ए डोव-एन इनसाइडर्स अकाउंट ऑफ पाकिस्तान्स फॉरेन पॉलिसी का लोकार्पण करने जा रहे थे। इसके लिए वह शिवसेना को मनाने के लिए बाकायदा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिले भी थे, लेकिन बात बनी नहीं। अगले दिन सुबह-सुबह उनके चेहरे पर शिवसैनिकों ने स्याही डाल दी। सुधींद्र कुलकर्णी ने भी एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह अपने स्याही पुते चेहरे के साथ ही किताब रिलीज की। उन्होंने कालिख पोतने की घटना को भारतीय संविधान के लिए खतरा बताया। यह एक ऐसी फोटो बनी जिसे देश ही नहीं, विदेशी मीडिया में भी खूब जगह मिली। इसे भारत में अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे के तौर पर पेश किया गया। इस प्रकरण में एक बात मार्के की है और वह यह कि अब उग्र हिंदुत्व के हमलों से कोई सुरक्षित नहीं है। भाजपा और संघ से जुड़े या पूर्व में जुड़े रहे आला लोग भी नहीं।

 

इस बहस के बीच शिवसेना ने एक बार फिर उग्र हिंदुत्व का कार्ड खोलना शुरू किया है जिसकी तुलना में महाराष्ट्र की भाजपा सरकार कम उग्र दिखाई देने लगी है। सारा सार्वजनिक विमर्श यहीं केंद्रित हो गया। शिव सैनिकों ने शिवसेना स्टाइल में समारोह के आयोजक सुधींद्र कुलकर्णी पर काला ऑयल पेंट फेंका, उन्हें गालियां दीं और धमकाया। महाराष्ट्र सरकार में शामिल शिवसेना ने इस कृत्य को मर्दानगी बताते हुए इसका समर्थन किया और कुलकर्णी और कसूरी को पाकिस्तानी एजेंट बताया। हालात इतने बिगड़े कि सूबे की सरकार को कड़े सुरक्षा इंतजाम में समारोह करवाना पड़ा। जहां कसूरी ने पूरे घटनाक्रम को दुर्भाग्यपूर्ण बताया, वहीं राजनीतिक दलों समेत सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इस घटना की कड़ी निंदा की गई। बाद में पुलिस ने शिवसेना के छह कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। इस घटना के बाद शाम को रखे गए विमोचन समारोह की सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी कर दी गई थी कि नेहरू सेंटर स्थित आयोजन स्थल पुलिस छावनी बन गया। विमोचन समारोह में बाधा डालने के लिए शिवसेना उपनेता श्रीकांत सरमलकर और शिव सैनिक नेहरू सेंटर के आसपास मंडराते रहे मगर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी थी।

 

विरोध को लेकर शिवसेना के अड़ियल रुख पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि वैध वीजा पर आए विदेशी मेहमान को सुरक्षा देना सरकार का फर्ज है। अगर कार्यक्रम में राष्ट्र विरोधी प्रोपेगेंडा सामने आता है तो उसे सहन नहीं किया जाएगा और आयोजकों पर कार्रवाई की जाएगी। दूसरी ओर मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद सक्रिय हुई पुलिस ने पांच अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। किस तरह सारे बवाल को रफा-दफा किया गया, यह भी ध्यान देने योग्य है। कार्यक्रम से पहले सुधींद्र कुलकर्णी उद्धव से मिलते हैं और खुद मुख्यमंत्री कालिख डालने के बाद उद्धव ठाकरे से बातचीत करते हैं।

 

कांग्रेस ने इस पूरे प्रसंग को शिवसेना और भाजपा के बीच आपसी सांठगांठ बताया। इस तरह की सुरक्षा महाराष्ट्र की सरकार ने तब नहीं दी, जब पाकिस्तान के गजल गायक उस्ताद गुलाम अली के कार्यक्रम का मामला आया। शिवसेना की धमकी के बाद महाराष्ट्र में पाकिस्तानी गजल गायक उस्ताद गुलाम अली का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। कार्यक्रम के आयोजकों और शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे के बीच बातचीत के बाद गुलाम अली के कार्यक्रम को रद्द किया गया। शिवसेना की फिल्म शाखा, चित्रपट सेना के महासचिव आदेश बांदेकर ने कहा, 'कार्यक्रम होंगे लेकिन इसमें गुलाम अली भाग नहीं लेंगे।’ महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद किसी भी कार्यक्रम को करने की इजाजत देने के लिए शिवसेना के पास जाना, एक अघोषित नियम सा बन गया है। मुंबई में गुलाम अली के गायन का कार्यक्रम दिवंगत गायक जगजीत सिंह की चौथी पुण्यतिथि पर आयोजित किया जा रहा था। मुंबई में कार्यक्रम रद्द हो गया।

 

इसके बाद दिल्ली सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने उनका कार्यक्रम करवाने का आश्वासन दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनसे मुलाकात की और कहा कि गुलाम अली साहब केवल देश नहीं बल्कि दुनिया के बड़े कलाकार हैं, विरोध करने वाले उन्हें अलग से सुनते होंगे। 

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