इक्कीस जुलाई से शुरू होने जा रहे संसद के मानसून सत्र से ठीक पहले नर्मदा बचाओ आंदोलन के सैकड़ों समर्थकों और प्रभावितों ने जंतर-मंतर पर ढोल-नगाढ़ों के साथ अपनी आवाज बुलंद की और सरकार को चेताया कि वह किसी भी कीमत पर बांध की उंचाई बढ़ाने का फैसला न ले।
मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में करीब 48 हजार लोग हैं जो सीधे डूब क्षेत्र में रहते हैं। आंदोलनकारियों ने केंद्र सरकार के समक्ष स्पष्ट किया कि बांध की ऊंचाई बढ़ाई गई या पानी रोकने के लिए गेट लगाया गया तो वह चुप नहीं बैठेंगे और वे जलसमाधि करेंगे। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार संसद के आगामी सत्र में बांधों पर गेट लगाकर 17 मीटर पानी की ऊंचाई बढ़ाने का फैसला ले सकती है।
नर्मदा आंदोलन की कार्यकर्ता और महाराष्ट्र के डूब प्रभावितों के बीच सक्रिय लतिका राजपूत की राय में, ‘इस दो दिन के धरने का असल मकसद पूर्ण और समुचित पुनर्वास की मांग है जो अबतक पूरी नहीं हुई है। इसके अलावा सभी किसानों-आदिवासियों को जमीन के बदले जमीन और घर बनाने के लिए उचित मुआवजा मिले, जबकि सरकार पैसा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेना चाहती है।’
नर्मदा बचाओ आंदोलन के 30 वर्ष के इस संघर्षशील, सर्जनात्मक और सहभागिता वाले सफर की मुख्य भागीदार रहीं मेधा पाटकर कहती हैं, ‘सरकारें लगातार गलत दावे कर रही हैं, इनकी नीतियां झूठ और तानाशाही का पुलिंदा बन चुकी हैं। अगर सरकार बांधों की उंचाई पर रोक नहीं लगाती है तो हम बरसात के मौसम में कठोर जल सत्याग्रह करने को मजबूर होंगे।’