सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी सी पंत और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अवकाशकालीन पीठ ने बलात्कार पीड़िताओं को राहत उपलब्ध कराने की आवश्यक्ता पर बल देते हुए, अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग योजनाएं हैं। कोई राष्ट्रीय योजना नहीं है कि बलात्कार पीडि़तों को मुआवजा कैसे दिया जाए। निर्भया कोष पर्याप्त नहीं है और यह बस जुबानी जमाखर्च है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को पर्याप्त राहत मुहैया कराई जाए। पीठ ने केंद्र, सभी राज्य सरकारों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस भी जारी किया और सीआरपीसी की धारा 357-ए को प्रभावी तौर पर लागू कराने और पीड़िता मुआवजा योजनाओं की स्थिति को लेकर उनसे जवाब तलब किया। न्यायालय ने ऐसे बलात्कार पीड़ितों की संख्या बताने को भी कहा है जिन्हें मुआवजा दिया गया।
अदालत को न्याय मित्र के तौर पर सहायता दे रहीं जानी-मानी वकील इंदिरा जयसिंह ने कई याचिकाओं की सुनवाई के दौरान कहा कि पीड़िता मुआवजा योजना का क्रियान्वयन चिंता की बात है, क्योंकि 29 राज्यों में से सिर्फ 25 राज्यों ने इस योजना को अधिसूचित किया है। ऐसी योजनाओं में एकरूपता की कमी से प्रथम दृष्टया सहमत होते हुए पीठ ने कहा कि कुछ ऐसे राज्य हैं जो प्राथमिकी दर्ज होने पर ही यौन उत्पीड़न की पीड़ितों को मुआवजा दे देते हैं। पीठ ने कहा, कुछ राज्य तो विशेष वर्ग की यौन उत्पीड़न की पीडि़तों को प्राथमिकी दर्ज होने पर ही अंतरिम मुआवजा दे देते हैं। दिल्ली में अलग योजना है, उत्तर प्रदेश में अलग। इस पर कोई राष्ट्रीय मॉडल होना चाहिए। 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड के बाद 2012-2013 के बीच सुप्रीम कोर्ट में छह याचिकाएं दाखिल कर महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कई मुद्दे उठाए गए थे। सभी याचिकाओं को कोर्ट ने ने एक साथ जोड़ दिया था और इस बाबत समय-समय पर कई निर्देश पारित किए गए।