भारत के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने झारखंड न्यायिक अकादमी में एक विचार गोष्ठी में भाषण देते हुए वकालत के पेशे में बढ़ते गैर पेशेवर आचरण पर गहरी चिंता व्यक्त की और इस पर कड़ाई से रोक लगाने की बात कही। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, गैर पेशेवर आचरण पर कोई भी दया नहीं दिखाई जानी चाहिए। अभी ऐसे मामलों में हम क्या करते हैं, मात्र छह माह अथवा एक वर्ष के लिए उन्हें निलंबित कर देते हैं। लेकिन इससे काम नहीं चलेगा। हमें ऐसे मामलों में कठोर होना पड़ेगा, उन्हें इस पेशे से ही निकाल बाहर करें और दोबारा वकालत करने की अनुमति न दें। ऐसी एक गंदी मछली पूरे पेशे को बदनाम कर देती है। ठाकुर ने कहा कि यदि देश में वकालत के पेशे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाना है तो इसमें योग्य, साफ छवि के जानकार लोगों को लाना होगा। मुख्य न्यायाधीश रांची की दो दिनों की यात्रा पर थे और इस दौरान उन्होंने अनेक अन्य कार्यक्रमों के साथ डोरंडा में देश के दूसरे लायर्स अकादमी की आधारशिला रखी।
गोष्ठी में भारतीय विधि संस्थानों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने का मुद्दा उठाए जाने पर ठाकुर ने कहा, यह तो आवश्यक है ही लेकिन इससे कम आवश्यक गैर पेशेवर आचरण करने वालों के खिलाफ सख्ती करना भी नहीं है। उन्होंने कहा, इस समय देश में वकालत के पेशे में लगभग दो करोड़ लोग होंगे, लेकिन सवाल इस बात का है कि इनमें से कितने लोगों की हमें आवश्यकता है। जब आवश्यकता से अधिक भीड़ होगी और काम की कमी होगी तो फिर गलत रास्ते अपनाए जाएंगे और यहीं से गैर पेशेवर आचरण की शुरूआत होती है। न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने जोर दिया कि किसी को वकालत के पेशे में लेने से पहले केवल विधि की डिग्री पर्याप्त नहीं होनी चाहिए। अलबत्ता उसका इस उद्देश्य से प्रशिक्षण और नियमितीकरण भी होना आवश्यक है।उन्होंने व्यंग्य करते हुए पूछा, आखिर शादी के लिए जितनी पूछ आईएएस, इंजीनियर, डॉक्टर आदि अन्य पेशे के युवकों की है उतनी पूछ वकीलों की क्यों नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आईएएस, इंजीनियर और चिकित्सक बनना उतना आसान नहीं है लेकिन जिसे देखो वही वकील बन जाता है, शायद यही कारण है कि शादी के लिए वकीलों की पूछ नहीं होती।