फारूक अब्दुल्ला ने कहा, उन्हें इस बात का अहसास करना होगा कि कोई भीख का कटोरा लेकर उनके सामने आकर यह नहीं कहेगा कि आओ और हमारे साथ रहो। उन्हें कदम उठाना होगा। राज्य से विस्थापित कश्मीरी पंडितों की कई पीढि़यों के दर्द की दास्तां और अपने पड़ोसी मुसलमानों के साथ सुकून की जिंदगी बसर करने की उनकी चाह को समेटती एक किताब के विमोचन के मौके पर अब्दुल्ला ने यह बात कही।
अब्दुल्ला ने कहा कि दिल्ली में अपने घर बना चुके कई कश्मीरी पंडितों ने उस समय उनसे आकर मुलाकात की थी जब जम्मू कश्मीर सरकार ने उनसे घाटी में वापस लौटने को कहा था। वे मुझसे मिलने आए और कहा, देखिए अब हमारे बच्चे यहां स्कूलों में पढ़ रहे हैं, हमारे माता पिता बीमार हैं और उन्हें इलाज की जरूरत है। हम उन्हें पीछे छोड़कर नहीं आ सकते। इसलिए भगवान के लिए हमें यहीं रहने दें।
फारूक ने तर्क दिया, अंतिम बंदूक के खामोश होने तक का इंतजार मत करिए। घर आइए। उन्होंने साथ ही कहा, आप किसका इंतजार कर रहे हैं। इंतजार मत करिए। आप सोचते हैं कि फारूक अब्दुल्ला आएगा और आपका हाथ पकड़कर वहां ले जाएगा। अब्दुल्ला ने इस बात को रेखांकित किया कि पहला कदम उठाने तक यह मुश्किल रहेगा। उन्होंने कहा, हां, घर लौटने की जिम्मेदारी उनकी है।
कश्मीरी पंडितों को 1990 के दशक में अपने घरों को छोड़कर निर्वासन में जीने के लिए मजबूर होना पड़ा था और उसके बाद से 26 सालों में केंद्र और राज्य दोनों में ही कई बार सरकारें आई और गईं। सिद्धार्थ गिगू के साथ मिलकर ए लांग डीम आफ होम : दी पर्सिक्यूशन, एक्सोडस एंड एग्जाइल आफ कश्मीरी पंडित का संपादन करने वाले वरद शर्मा ने कहा कि सैंकड़ों नीतियां बनायी गईं लेकिन शब्दाडंबर वही रहा। अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए प्रयास किए थे लेकिन वे आशंकित रहे।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, मैंने उनसे बतौर मुख्यमंत्री मुलाकात की और उसके बाद भी मैं उनके घरों में गया। केवल मैं ही नहीं बल्कि हुर्रियत नेता भी आपके पास आए और आपसे लौटने को कहा। टाउनशिप बनाकर कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाने के पूर्व में कई प्रयास किए गए लेकिन गिगू कहते हैं, वह घर नहीं होगा। यह घर में नजरबंदी के अलावा कुछ नहीं होगा।
गीगू, शर्मा और किताब के लिए योगदान करने वाले अन्य लोगों ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को निश्चित रूप से न्याय मिलना चाहिए। जिसका मतलब है कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी लौट आए। अपने पड़ोसियों के साथ वे शांति के साथ रहें, खासतौर से कश्मीरी मुस्लिमों के साथ और इससे भी महत्वपूर्ण है कि उनकी जान को कोई खतरा नहीं हो।