रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि नोटबंदी के बाद कालेधन को बैंकों में जमा होने से रोकने में असफलता के चलते अब रिजर्व बैंक को अतिरिक्त ब्याज के रूप में इसका खामियाजा उठाना होगा। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, उन्होंने अपनी नई किताब 'आई डू व्हाट आई डू' के विमोचन के दौरान यह बात कही।
मोदी सरकार द्वारा पांच सौ और हजार रुपए के नोटों को बंद करने के फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार नोटबंदी के बाद 99 फीसदी बड़े नोट बैंकों में वापस आ गए। इसका मतलब यह है कि कालाधन रखने वालों ने इस फैसले का फायदा उठाते हुए अपना सारा पैसा बैंकों में जमाकर सफेद कर लिया। उन्होंने कहा कि पहले यह पैसा उनकी तिजोरियों में यूं ही पड़ा हुआ था अब उस पैसे पर उन्हें बैंक से ब्याज भी मिलने लगा है। अगर इस आंकलन को सही मान लिया जाए कि नोटबंदी से पहले हमारे सिस्टम में चार लाख करोड़ रुपए ब्लैक मनी के रूप में थे तो अब इनके बैंक में जमा हो जाने के बाद हर साल इस पैसे पर बैंकों को 24000 करोड़ ब्याज के रूप में चुकाना होगा। नोटबंदी के समय सरकार के दावे के अनुसार फैसले का मुख्य लक्ष्य काला धन को खत्म करना था। उन्होंने कहा कि लोगों की तिजोरियों में बंद नकदी अब बैंकों में जमा हो गई है जिस पर उन्हें ब्याज भी मिलेगा।
इसके अलावा आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने यहां दिल्ली में अपनी पुस्तक के विमोचन से जुड़े कार्यक्रम में कहा कि अगर आरबीआई गवर्नर ‘नरम’ है तो अपनी टीम के सदस्यों के बीच उसके सम्मान खोने का खतरा होता है। साथ ही राजन ने अपनी किताब में दावा किया है कि वे नोटबंदी के कभी समर्थक नहीं थे और उनके गवर्नर रहते हुए सरकार की तरफ से यह प्रस्ताव उनके सामने नहीं आया था।
बता दें कि रघुराम राजन पिछले साल जून महीने में अपना तीन साल का गवर्नर का कार्यकाल पूरा करने के बाद शिकागो विश्वविद्यालय वापस लौट गए थे, जहां वे शिक्षक के रूप में पहले से कार्यरत थे।