शिक्षा कुटीर नामक स्कूल की प्रिंसीपल जानसी सिन्हा का कहना है कि हालांकि अभी तक ऐसा नहीं हुआ है कि पौधा सूखने पर स्कूल से किसी बच्चे का नाम काटना पड़ा हो। वह बताती हैं ’यह तो हमने छात्रो को डराने के लिए बोला है ताकि वह ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं। अगर कभी उनके लगाए पौधे सूखेंगे भी तो हम उनसे दूसरा पौधा लगवा लेंगे। इस शर्त के पीछे मंशा यह है कि छत्तीसगड़ अब पहले जैसा हरा नहीं रहा। पहाड़ खाली हो गए हैं। हम चाहते हैं कि हमारे पहाड़ फिर से हरे हो जाएं।’ सिन्हा का कहना है कि पौधे भी स्कूल ही उपलब्ध करवा रहा है और स्कूल के पीछे खाली जमीन या कुछ दूरी पर एक पहाड़ पर पौधे लगवाए जाते हैं।
शिक्षा कुटीर में आदिवासी अंचल के गरीब एवं आदिवासी समाज के बच्चे आते हैं। अंग्रेजी माध्यम में निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है। पूरे देश में बस्ते के बोझ को कम करने पर भी जोर दिया जा रहा है। शिक्षा कुटीर भी ‘बैगलेस’ स्कूल है, जहां बच्चों के बैग स्कूल में ही रखे जाते हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए आसपास के ही दो शिक्षिकाएं आती हैं, वे केवल अपने आने-जाने का खर्चा ही स्कूल से ले रहीं हैं।