देश के विभिन्न राज्यों में तकनीकी शिक्षा में सुधार लाने का जिम्मा जिन सैकड़ों आईआईटी-एनआईटी ग्रैजुएट के कंधों पर था अब उनके सामने ही बेरोजगारी का संकट खड़ा हो गया है। दरअसल, 31 मार्च को टीईक्यूआईपी-III (तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम) के तहत केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त 1,500 से अधिक सहायक प्रोफेसर अपने अनुबंध समाप्त होने के बाद बेरोजगार हो जाएंगे। लिहाजा इस खतरे को भांपते हुए वे 23 मार्च से राजधानी दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं।
नौकरी जाने की चिंता के बीच फिलहाल नई दिल्ली के जंतर मंतर पर इन सहायक प्रोफेसरों का प्रदर्शन जारी है। इससे पहले बुधवार 24 मार्च को लगभग 500 से अधिक सहायक प्रोफेसरों ने शिक्षा मंत्रालय के सामने भी विरोध प्रदर्शन किया और बाद में जंतर मंतर पर मार्च किया।
ये स्नातक 2018 में विश्व बैंक की ओर से वित्त पोषित केंद्र सरकार की योजना के तहत 12 राज्यों के इंजीनियरिंग कॉलेजों में तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम (टीईक्यूआईपी) के लिए बतौर फैकल्टी भर्ती किए गए थे। पूर्वोत्तर, पर्वतीय और निम्न-आय वर्ग वाले राज्यों में इनकी नियुक्ति हुई थी। टीईक्यूआईपी-3 के तहत शिक्षा मंत्रालय ने अन्य राज्यों के साथ-साथ राजस्थान, बिहार, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के साथ भी एमओयू हस्ताक्षर किए थे। टीईक्यूआईपी-3 के लिए शुरुआती विज्ञापन प्रोजेक्ट आधारित भर्ती के संबंध में ही था मगर बाद में केंद्र सरकार ने इसमें शामिल राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से फैकल्टी सदस्यों को लंबी अवधि तक सेवारत रखने और उनकी प्रतिभा का पूरा उपयोग करने के लिए एक ‘सस्टेनेबिलिटी प्लान’ तैयार करने को कहा था। हालांकि, अब इनकी नौकरी के स्थायित्व के लिए कोई कार्रवाई होती नहीं दिखी।
प्रदर्शन में शामिल आईआईटी गुवाहाटी से एमटेक और बीआईईटी झांसी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत ओम अग्निहोत्री बताते हैं, "हम 1554 लोगों को केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न पिछड़े राज्यों में टीईक्यूआईपी के तहत बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर तीन साल के लिए नियुक्त किया गया था। एमओयू के आधार पर हमें तीन साल बाद स्थायी करना था लेकिन केंद्र और राज्य सरकार यह नहीं कर रहे हैं।"
कानपुर निवासी अग्निहोत्री आगे कहते हैं कि उनका अनुबंध 31 मार्च को खत्म हो रहा है और अभी तक स्थायीकरण के नाम पर कुछ नही किया गया है। वे इसी रेगुलराइजेशन की मांग को लेकर 23 से धरना दे रहे है। और अभी तक मंत्री निशंक जी ने हमे मुलाकात का वक्त भी नहीं दिया है। अग्निहोत्री बताते हैं कि इन शिक्षकों के कार्यों की सराहना नीति आयोग द्वारा भी की गई। इन शिक्षकों के द्वारा किए गए कार्यों की बदौलत कई संस्थानों को एनबीए के द्वारा मान्यता मिली है जिससे अंतराष्ट्रीय स्तर पर इन संस्थानों द्वारा प्रदान की गई डिग्री को मान्य किया गया है।
इसमें चयनित कई शिक्षक बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरियां छोड़कर आए हैं और ऐसे में बिना स्थिरता का प्रबंध करे हुए इस प्रॉजेक्ट को बंद कर देने से उनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पोस्ट डॉक्टरेट कर रहे शिक्षक डॉ अंजनी कुमार शुक्ला बताते हैं उनके पास विदेश से भी पोस्ट डॉक्टरेट करने का विकल्प था परंतु पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा के विकास के लिए काम करने का अवसर मिलने के कारण वो अपने अंतर्मन की आवाज पर इस प्रोजेक्ट से जुड़ गए। वे कहते हैं कि अब 3 साल काम करने के बाद उनकी उम्र भी निकल गई है और उनके सामने रोजगार और पेट पालने का भयंकर संकट खड़ा हो गया है।
वहीं उज्जैन इंजिनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर अंशुल अवस्थी बताते हैं कि उनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं है। वो कड़ी मेहनत करके इस पद तक पहुंचे हैं और इस तरह बिना स्थिरता का निर्णय लिए प्रोजेक्ट बंद होने से उनके सामने वित्तीय संकट खड़ा हो जायेगा और वो पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने में अक्षम हो जायेंगे। उन्होंने सरकार से मांग की है कि प्रोजेक्ट की स्थिरता की योजना पर अतिशीघ्र निर्णय लिया जाए।
बता दें कि इस कार्यक्रम के पीछे विचार था कि भारत के शीर्ष संस्थानों से स्नातक करने वाले युवाओं को फैकल्टी मेंबर के तौर पर नियुक्त करके संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया जाए। इसके लिए 72 ग्रामीण कालेजों और यूनिवर्सिटी में आईआईटी और एनआईटी के 1,500 ग्रेजुएट बतौर फैकल्टी नियुक्त किए गए। मगर अब केंद्र और राज्यों दोनों सरकारों के पास इन टीईक्यूआईपी फैकल्टी के लिए आगे की योजना तैयार करने के लिए केवल एक दो दिन का समय ही बचा है, अगर समय रहते निर्णय नहीं लिया गया तो ये सहायक प्रोफेसर भी देश में बेरोजगारों के हुजूम में शामिल हो जाएंगे।