2013 में परेश रावल की एक फिल्म आई थी- टेबल नंबर 21. इसमें परेश रावल का किरदार मिस्टर खान, पति-पत्नी विवान (राजीव खंडेलवाल) और सिया (टीना देसाई) को अपने बेटे की मानसिक हालत के लिए जिम्मेदार मानता है। वह इसका बदला लेने के लिए दोनों को एक खेल में फंसाता है। इस खेल में दोनों को तरह-तरह के टास्क दिए जाते हैं, जो बाद में एक दूसरे के लिए खतरनाक बनते जाते हैं। दोनों मनोवैज्ञानिक रूप से इस खेल में फंसते चले जाते हैं और अंत में मिस्टर खान विवान से अपने बेटे को गोली मारने के लिए कहता है। यह फिल्म रैगिंग के खिलाफ थी। इसे सीधे-सीधे ब्लू व्हेल गेम से तो नहीं जोड़ा जा सकता लेकिन इससे वह मनोविज्ञान समझ में आता है कि कैसे कोई किसी टास्क वाले जानलेवा खेल में फंस सकता है। फिर चाहे अंत में दूसरे की जगह खुद की ही जान क्यों ना लेनी पड़े।
टेबल नंबर- 21 के एक सीन में राजीव खंडेलवाल
ब्लू व्हेल गेम का मनोविज्ञान भी कुछ ऐसा ही है। इस खेल की वजह से भारत समेत दुनिया भर में आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। निराशा से भरे लोग या फिर इस चुनौती को हल्के में लेने वाले ऑनलाइन गेमिंग के शौकीन टीनएजर्स इसके शिकार बन रहे हैं। ताजा मामला राजस्थान के जोधपुर का है। इसमें 17 साल की एक लड़की ने झील में कूदकर जान देने की कोशिश की। उसे बचा लिया गया। बाद में पता चला कि वह भी ब्लू व्हेल गेम खेल रही थी। उसने अपने बाएं हाथ पर व्हेल का निशान चाकू से कुरेदा हुआ था। लड़की झील के आसपास कुछ देर तक स्कटूर से चक्कर लगाती देखी गई थी। गोताखोरों और पुलिसकर्मियों ने उसे बचाया लेकिन हर कोई नहीं बच पाता है इस खेल से।
क्या है ब्लू व्हेल गेम?
ब्लू व्हेल गेम एक ऑनलाइन टास्क गेम है। इसको खेलने वाले को कई चुनौतियों से गुजरते हुए अंत में खुद की जान लेनी होती है। यह गेम कहीं से डाउनलोड नहीं होता है और ना ही इसका कोई ऐप है। यह रैंडम वेबसाइट्स पर मिलता है, जहां से फोन पर कांटैक्ट किया जाता है और कोई क्यूरेटर 50 दिनों तक इसे खेलने वाले को अलग-अलग टास्क देता है। ये टास्क इस तरह तय किए जाते हैं, जिससे इसे खेलने वाले का आत्म विश्वास और मनोबल कम होता जाता है और अंत में वह अपनी जान ले लेता है। हर टास्क को पूरा करने पर हाथ पर एक कट लगाने के लिए कहा जाता है। जिससे आखिर में व्हेल का निशान हाथों पर उभरता है। इसमें हाथ पर ब्लेड से एफ-57 उकेरकर फोटो भेजने को कहा जाता है। साथ ही सुबह 4:20 बजे उठकर हॉरर वीडियो देखने के लिए और क्यूरेटर को भेजने के लिए कहा जाता है। सुबह ऊंची से ऊंची छत पर जाने को कहा जाता है। व्हेल बनने के लिए तैयार होने पर अपने पैर में 'यस' उकेरना होता है और ना तैयार होने पर खुद को चाकू से कई बार काटकर सजा देना होता है। इस तरह इसमें कई खतरनाक स्टेप अपनाने के लिए बहकाया जाता है।
22 साल का एक रूसी लड़का, जिसने की ब्लू व्हेल गेम की शुरूआत
रूस का रहने वाला 22 साल का फिलिप बुडेकिन इस खूनी खेल के पीछे है। उसने 2013 में इस ऑनलाइन गेम की शुरुआत की। उस पर 16 लड़कियों को ब्लू व्हेल गेम से खुदकुशी करवाने का आरोप है और इस मामले में उसे गिरफ्तार किया गया है। फिलहाल वह सेंट पीटर्सबर्ग की एक जेल में है।
उसने पूछताछ करने वालों को बताया कि उसे लगता है कि लड़कियां मरने को लेकर खुश थीं। जो लोग ब्लू व्हेल गेम का शिकार बनते हैं, उन्हें फिलिप बायोलॉजिकल वेस्ट यानी जैविक रूप से कूड़ा बताता है। वो ये भी मानता है कि वह इन लोगों से समाज की सफाई कर रहा है।
सेंट पीटर्सबर्ग की प्रसिद्ध क्रेस्टी जेल में फिलिप कैद है। डेलीमेल के मुताबिक, जेल के अधिकारी एक चौंकाने वाली बात बताते हैं। उनका कहना है कि फिलिप के नाम सैकड़ों लड़कियों के लव लेटर्स आते हैं। कानून के हिसाब से पुलिस इन लेटर्स के आने और फिलिप द्वारा इनका जवाब दिए जाने पर बैन नहीं लगा सकती। फिलिप बुडेकिन, फिलप लिस के नाम से भी इन खतों का जवाब देता है।
मनोवैज्ञानिक वेरॉनिका मत्युशिना कहती हैं कि वह लड़कियां जो उसे लव लेटर्स लिखती हैं, उन्हें परिवार से ज्यादा प्यार नहीं मिल रहा है या उन्हें लगता है कि उन पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। इस ठीक-ठाक दिखने वाले लड़के ने उनका सपोर्ट किया और उससे इन लड़कियों को अटेंशन भी मिला, जो वो चाहती थीं।
फिलिप इन लड़कियों से कहता था कि वे स्पेशल हैं। उन्हें खास तौर पर चुना गया है। उन्हें उनके मां-बाप ने कभी प्यार नहीं किया। वह कहता था कि जीवन में एक बार कोई खूबसूरत चीज करो और जवानी में मरने से ज्यादा खूबसूरत कुछ भी नहीं। इस तरह ये लड़कियां फिलिप के चंगुल में फंस जाती थीं।
फिलिप बुडेकिन
सेंट पीटर्सबर्ग की जेल में फिलिप इंटरव्यू में चहकते हुए हर बात का जवाब देता है। उससे जब पूछा जाता है कि क्या उसने इन टीनएजर्स को मौत के मुंह में धकेला तो वह खुशी-खुशी कहता है, 'हां, बिल्कुल। तुम चिंता मत करो। धीरे-धीरे तुम्हें सब समझ में आ जाएगा। एक रोज हर किसी को समझ में आ जाएगा। वे खुशी-खुशी मर रहे थे। मैं उन्हें वो चीजें दे रहा था, जो उनके पास नहीं थीं। समझ, सामाजिकता, गर्मजोशी, सब कुछ।
वह कहता है, 'ये सब 2013 में शुरू हुआ, जब मैंने एफ 57 नाम की ऑनलाइन कम्युनिटी बनाई। मैं इस आइडिया के बारे में पांच सालों से सोच रहा था। सामान्य लोगों को कूड़े से अलग करने के लिए ये जरूरी था।'
फिलिप खुद किसी सायको की तरह व्यवहार करता है और उसकी सायकोलॉजी स्टडी का विषय है। वह खुद भी स्कूल में काफी अकेला रहता था। उसके दोस्त नहीं थे और पढ़ाई में भी वो ठीक था। क्लास के बाद वो सारा समय ऑनलाइन बिताता था। उसके घर में उसकी मां थी, जो सुबह काम पर जाती थी। मां से फिलिप को कोई खास लगाव नहीं रहा। इतना अकेला आदमी एक दिन अचानक पाता है कि वो कुछ लोगों को ऑनलाइन ही सही अपने हिसाब से कंट्रोल कर रहा है। उसका ईगो तुष्ट होता है और वह इस खूनी खेल में आगे बढ़ता जाता है।
एफबीआई के समकक्ष हैसियत रखने वाली एक जांच समिति के वरिष्ठ अधिकारी एंटोन ब्रीडो कहते हैं कि बुडेकिन को एकदम ठीक-ठीक पता था कि उसे मनचाहे परिणाम पाने के लिए क्या करना है। फिलिप और उसके साथी पहले बच्चों और टीनएजर्स को सोशल मीडिया ग्रुप में डरावने वीडियो के जरिए अपनी तरफ खींचते थे। उनका इरादा ज्यादा से ज्यादा टीनएजर्स को अपनी ओर खींचना होता था। इसके बाद वे इस बात को देखते थे कि किन लोगों को मनोवैज्ञानिक तरीके से बहकाया जा सकता है। उन्हें पता था कि 20,000 लोगों में 20 लोग उनके टारगेट बनेंगे। इन 'टारगेट्स' का इंटरनेट पर ही ग्रुप बनाया जाता था।
एंटोन ब्रीडो
जिन बच्चों को टारगेट बनाया जाता था उन्हें पहले छोटे-छोटे टास्क दिए जाते थे, जो उबाऊ होने से लेकर अजीबो-गरीब हो सकते थे। जैसे सिर्फ अपने बारे में स्काइप पर बताइए। कुछ भी बोलिए। फिर उन्हें ना सोने के लिए कहा जा सकता था। इसके बाद लेवल बढ़ता था। उनसे किसी छत पर खड़े होकर बैलेंस बनाने को कहा जाता था। किसी जानवर को मारकर उसका फोटो अपलोड करने को कहा जाता था। ज्यादातर बच्चे इस स्टेज पर गेम छोड़ देते थे। लेकिन ग्रुप में अपनी इमेज बनाने के चक्कर में कुछ बच्चे वही करते थे जो कहा जाता था।
जो लोग ये गेम छोड़ना चाहते हैं उन्हें धमकियां भी मिलती हैं। उनके परिवार वालों को नुकसान पहुंचाने की बात की जाती है, जिसकी वजह से लोग इससे जल्दी निकल नहीं पाते। जो लोग इससे निकलने की बात कहते हैं, उन्हें क्यूरेटर कायर कहता है और उन्हें लगातार गेम खेलने के लिए मोटीवेट करता है।
कहां से हुई खुदकुशी के सिलसिले की शुरूआत?
2015 में रूस में एंजेलिना दाव्यदोवा नाम की 12 साल की लड़की ने क्रिसमस के दिन 14वें फ्लोर से कूद कर जान दे दी थी। उसने 50 दिनों तक 'वेक मी अप एट 4.20' नाम के ग्रुप पर ब्लू व्हेल गेम खेला था। इस लड़की को कुछ हफ्तों पहले ये विश्वास दिला दिया गया था कि वह मोटी हो गई है और उसे सलाद खाना चाहिए।
एंजेलिना दाव्यदोवा
इसके बाद यूक्रेन से एक घटना सामने आई। उसने मरने से पहले बिल्डिंग की छत से एक तस्वीर पोस्ट की थी। अकेले रूस में ही इस तरह की 130 मौतों का दावा किया गया है।
'द वीक' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 8 जुलाई को यूएस का 15 साल का आइजाह गोंजालेज साल 2017 में ब्लू व्हेल गेम का पहला शिकार बना था। उसके पिता ने उसे बेडरूम में पंखे से लटका हुआ पाया था। इसके बाद जुलाई में ही अटलांटा में 16 साल की एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी।
भारत में भी हाल ही में तमिलनाडु के विग्नेश ने ब्लू व्हेल की वजह से फंदे से लटककर अपनी जान दे दी। थिरूमंगलम का 19 साल का लड़का विग्नेश मन्नार कॉलेज में सेकंड इयर का छात्र था। पुलिस ने बताया था कि उसके बाएं हाथ पर व्हेल का निशाना कुरेदा हुआ था और उसके नीचे ब्लू व्हेल लिखा हुआ था।
इसके अलावा असम से भी दसवीं के एक छात्र ने खुदकुशी की कोशिश की थी। उसने भी हाथ पर व्हेल का निशान बनाया था। इसी तरह मुंबई के 14 वर्षीय मनप्रीत ने 29 जुलाई को कथित तौर पर इस गेम को खेलकर 5वीं मंजिल से छलांग लगा दी थी। माना जा रहा है कि भारत में ये ब्लू व्हेल का पहला मामला है, जिसने मीडिया समेत पुलिस का भी ध्यान खींचा।
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, 'ब्लू व्हेल चैलेंज गेम' खेलने वाले लोगों में अबतक दुनियाभर में लगभग 200 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की बात कही गई है। वहीं अमेरिका और पाकिस्तान समेत दुनिया के 19 देशों में इस गेम की वजह से खुदकुशी करने या कोशिश करने के सैकड़ों मामले आ चुके हैं। जिसमें अब भारत का भी नाम शुमार हो गया है।'
क्या है आत्महत्या की वजह?
'द साइबर इफेक्ट' नाम की किताब के लेखक डॉक्टर मैरी ऐकेन कहते हैं कि इंटरनेट और ऑनलाइन गेमिंग के हद से ज्यादा शौकीन लोग धीरे-धीरे अपनी जिम्मेदारियों से कटते जाते हैं। वो अपनी अलग दुनिया बना लेते हैं और उसी में जीते हैं। नतीजा अकेलेपन के रूप में सामने आता है जिसका फायदा ब्लू व्हेल जैसे गेम उठाते हैं।
चेतावनी
कहा जा रहा है कि यह गेम ब्रिटेन भी पहुंच सकता है इसलिए ब्रिटेन की चाइल्ड प्रोटेक्शन संस्था 'नेशनल सोसाइटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू चिल्ड्रेन (NPCC)' ने कहा है कि बच्चों को भीड़ को फॉलो नहीं करना चाहिए और ऐसी चीजें करने से बचना चाहिए। वहीं भारत में भी पुलिस ने बच्चों के माता-पिता को अागाह करना शुरू कर दिया है। निश्चित ही पहले परिवार की जिम्मेदारी बनती है कि वह बच्चों पर नजर रखें कि कहीं वह इस चक्कर में पड़ तो नहीं गया। उसे अकेलेपन का एहसास ना होने दें। बच्चों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से अलग सामान्य जिंदगी की चीजों में भी मसरूफ़ किया जाए।