राष्ट्रपति ने कहा कि बच्चों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनमें स्कूलों में बदमाशी जैसी कम गंभीर समस्याओं से लेकर यौन उत्पीड़न के मामले, बाल विवाह एवं बाल तस्करी जैसी गंभीर समस्याएं शामिल हैं। विश्व के कई हिस्सों में बच्चों को पढ़ाई से भी वंचित रखा जाता है। अभी भी उन्हें कुपोषण का शिकार होना पड़ता है और वैसी बीमारियों से उनकी मौतें हो रही हैं जिनकी रोकथाम की जा सकती है। यूनिसेफ के अनुसार, 80 फीसदी शिशु मौतें दक्षिण एशिया एवं उप-सहारा अफ्रीका में होती हैं। सशस्त्र संघर्षों, हिंसा एवं अराजकता प्रभावित क्षेत्रों में सबसे अधिक बच्चे ही प्रभावित होते हैं। विस्थापितों के बीच ऐसे कई बच्चे हैं जिनके सामने एक अनिश्चित भविष्य है।
सत्यार्थी फांउडेशन की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने कहा कि बच्चों के लिए कार्यक्रमों एवं कदमों को राष्ट्रीय नीतिनिर्माण का केंद्रीय हिस्सा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी विषमताओं को कम करने की हमारी साझा जिम्मेदारी है जो किसी अन्य आयु समूह की तुलना में वंचित वर्गों के बच्चों को ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। प्राथमिकता का निर्धारण करने से ही समानतापूर्ण भविष्य का मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं गरीबी के संकेतकों में विषमताओं को हटाना होगा। वंचित वर्गों के बच्चों के विकास को बाधित करने वाले कारकों को दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि वास्तव में हमारे बच्चों की दिशा में, उनके विकास एवं सुरक्षा की दिशा में एवं उन्हें समान अवसर प्रदान करने की दिशा में हमारी एक नैतिक बाध्यता है। उन्होंने कहा कि आइये, हम हर जगह बाल अधिकारों के संरक्षण एवं उन्हें पूरा करने के महान दायित्व के प्रति खुद को प्रतिबद्ध करें।
इस अवसर पर नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी,धर्मगुरु दलाईलामा, मोनाको की राजकुमारी चारलीन, जोर्डन के राजकुमार अली बिन अल हुसैन, नीदरलैंड की राजकुमारी लौरेंटिन, विकास के लिए साक्षरता पर यूनेस्को के विशेष राजदूत एवं तिमोर-लेस्टे के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम जोस रामोस-होर्टा तथा नोबल पुरस्कार विजेता ने भी जनसमूह को संबोधित किया।