ट्रेनों के लेटलतीफी ने अपने पिछले तीन सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। ट्रेनें 24 से 28 घंटे की देरी से चल रही हैं। वित्तीय वर्ष 2017-18 पिछले वर्षों के मुकाबले सबसे खराब रहा, जहां लगभग 30 फीसदी ट्रेनें अपने तय समय से देरी से चल रही हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों के समय पर आने का प्रतिशत अप्रैल 2017-मार्च 2018 के दौरान 71.3 फीसद था, जो साल 2016-2017 में इसी अवधि में 76.6 9 फीसद था। यानी ट्रेनों के समय पर चलने के प्रतिशत में 5.30 अंक की गिरावट हुई है। वहीं, 2015-2016 में 77.44 प्रतिशत ट्रेनें समय पर चल रही थीं।
अधिकारियों के मुताबिक रेलवे ने बड़े पैमाने पर रख-रखाव का काम किया है, जिसने ट्रेनों के समय पर चलने का रेलवे का प्रदर्शन सीधे तौर पर प्रभावित हुआ है।
बताया गया है कि 2016-2017 में रेलवे ने 2,687 स्थानों में 15 लाख से अधिक मेंटिनेंस ब्लॉक लगाए हैं, जिसके चलते मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों के चलने में देरी हुई है। साल 2017-2018 में ब्लॉक की संख्या बढ़ाकर 18 लाख हो गई है, जिसने रखरखाव का काम 4,426 स्थानों पर किया जा रहा था।
रेलवे की ओर से जारी बयान में बताया गया कि रेलवे में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर फोकस किया गया है। कई जगह पटरियों पर काम चल रहा है, जिसकी वजह से ट्रेनें लेट हो रही हैं।
रेलवे मंत्रालय के निदेशक (मीडिया एंड कम्युनिकेशन) राजेश दत्त बाजपेई ने बताया कि रेलवे रेलगाड़ियों की सुरक्षा और ट्रैक के अपग्रेडेशन से समझौता किए बिना ट्रेनों को समय पर चलाने का प्रयास कर रहे हैं। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पिछले वित्त वर्ष में भारतीय रेलवे में दुर्घटनाओं की संख्या 35 वर्षों में पहली बार दो अंकों में ही सिमटी है।
पिछले तीन सालों के दौरान, रेल दुर्घटनाओं की संख्या 2014-15 में 135 से घटकर 2015-16 में 107 और साल 2016-17 में 104 थी। वहीं, पिछले वित्त वर्ष में रेल दुर्घटनाओं की संख्या घटकर 73 तक पहुंच गई थी। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि अध्यक्ष रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहानी ने जोनों में होने वाली देरी पर ध्यान दिया है। उन्होंने एक संदेश में जोनल रेलवे अधिकारियों ने कहा कि ऐसी देरी रेलवे के लिए शर्मिंदगी की वजह बन सकती है।