उन्होंने देश के वर्तमान हालात को आपातकाल से भी बुरा बताते हुए यह पुरस्कार और इसके तहत दी गई पुरस्कार राशि वापस करने की घोषणा की है। त्रिशूर में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार प्राप्त कर उन्होंने खुद को सम्मानित महसूस किया था मगर अब उन्हें लग रहा है कि देश में जो चल रहा है उसके खिलाफ लेखकों की भी अपनी भूमिका है और इसलिए विरोध दर्ज करवाने के लिए वह यह पुरस्कार लौटा रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि यह वह आजाद देश है जिसमें वह रहती थीं। गौरतलब है कि लेखक और एक्टिविस्ट सारा जोसेफ आम आदमी पार्टी की केरल इकाई की अध्यक्ष भी हैं और उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव त्रिशूर से पार्टी के चुनाव चिह्न पर लड़ा था मगर जीत नहीं पाई थीं।
जोसेफ ने जहां अपना पुस्कार लौटाया वहीं मलयालम और अंग्रेजी के कवि के. सच्चिदानंदन ने इसी मुद्दे पर साहित्य अकादमी से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है। उनसे पहले शुक्रवार को कर्नाटक की लेखिका शशि देशपांडे ने साहित्य अकादमी की जनरल काउंसिल से इस्तीफा दे दिया था। शशि देशपांडे ने कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या पर साहित्य अकादमी की चुप्पी के विरोध में इस्तीफा दिया था। लेखकों के इस पूरे विरोध की शुरुआत उदय प्रकाश द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा से हुई थी। उन्होंने भी एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में सितंबर महीने में यह पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी। उनके बाद जानी मानी लेखिका नयनतारा सहगल ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की और इसके बाद अशोक वाजपेयी ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया। इस कड़ी में क्षेत्रीय साहित्य अकादमियों के पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों की भी सूची बड़ी होती जा रही है। उर्दू उपन्यासकार रहमान अब्बास ने महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया है। उन्हें 2011 में यह पुरस्कार मिला था।