81 साल के गुलजार ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी स्थिति भी आएगी जब किसी व्यक्ति का नाम जानने से पहले उसका धर्म पूछा जाएगा। देश में बढ़ती असहिष्णुता की घटनाओं पर अफसोस जताते हुए उन्होंने कहा कि पुरस्कार लौटाना ही लेखकों के पास विरोध जताने का एकमात्र तरीका होता है। कन्नड़ लेखक एम एम कलबुर्गी की हत्या और कई बुद्धिजीवियों पर हमले की अन्य घटनाओं के विरोध में कई लेखकों ने अपने पुरस्कार लौटा दिए हैं।
गुलजार ने कहा कि हत्या में अकादमी का कोई कसूर नहीं है, लेकिन लेखक चाहते थे कि संस्था इन घटनाओं का संज्ञान ले और अपना विरोध जताए। गुलजार ने कहा, हम सभी को दुखी करने वाली हत्या कहीं न कहीं व्यवस्था और सरकार का कसूर है, पुरस्कार लौटाना विरोध का एक तरीका है। उन्होंने कहा, लेखकों के पास अपना विरोध जताने का और कोई तरीका नहीं होता। हमने इस तरह की धार्मिक असहिष्णुता कभी नहीं देखी। कम से कम, हम खुद को अभिव्यक्त करने में डरते नहीं थे।
धार्मिक असहिष्णुता की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए गुलजार ने इन दावों को खारिज किया कि पुरस्कार लौटाने का लेखकों का फैसला राजनीति से प्रेरित है। उन्होंने कहा, कोई लेखक भला क्या राजनीति कर सकता है ? एक लेखक तो बस अपने दिल, दिमाग और आत्मा की बात बोलता है। वे समाज के अंत:करण के रक्षक हैं। वे समाज की आत्मा के रक्षक हैं।