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'विरोध-प्रदर्शन का अधिकार कहीं भी, कभी भी नहीं हो सकता': शाहीन बाग धरने पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने शाहीनबाग में सीएए के खिलाफ धरने को लेकर अपने पुराने फैसले पर विचार करने से इनकार किया...
'विरोध-प्रदर्शन का अधिकार कहीं भी, कभी भी नहीं हो सकता': शाहीन बाग धरने पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने शाहीनबाग में सीएए के खिलाफ धरने को लेकर अपने पुराने फैसले पर विचार करने से इनकार किया है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा है कि लंबे समय तक विरोध करके सार्वजनिक स्थान पर दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता। विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक विरोध दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर कब्जा करके जारी नहीं रख सकता है।

अदालत ने टिप्पणी की कि संवैधानिक योजना विरोध प्रदर्शन और असंतोष व्यक्त करने के अधिकार देती है, मगर कुछ कर्तव्यों की बाध्यता के साथ। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हमने सिविल अपील में पुनर्विचार याचिका और रिकॉर्ड पर विचार किया है। हमने उसमें कोई गलती नहीं पाई है। न्यायमूर्ति एसके कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने ये फैसला सुनाया है।


शीर्ष अदालत ने कहा कि कुछ स्वतःस्फूर्त विरोध हो सकता है लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने पिछले साल 7 अक्टूबर को दिए का अपने फैसले के खिलाफ शाहीन बाग निवासी कनीज फातिमा और अन्य की समीक्षा की याचिका खारिज करते हुए कहा, “विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता।  कुछ सहज विरोध हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर कब्जा जारी नहीं रखा जा सकता है। ”,

शीर्ष अदालत  ने मामले में खुली अदालत की सुनवाई के लिए प्रार्थना को भी खारिज कर दिया।  शीर्ष अदालत ने पिछले साल 7 अक्टूबर को कहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चित काल तक कब्जा नहीं किया जा सकता है और असंतोष व्यक्त करने वाले प्रदर्शनों को अकेले निर्दिष्ट स्थानों पर होना चाहिए।  इसने कहा था कि शाहीन बाग इलाके में एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शनों में सार्वजनिक तौर पर कब्जे "स्वीकार्य नहीं" है।

इसने कहा था कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान औपनिवेशिक शासन के खिलाफ असंतोष का तरीका और एक स्व-शासित लोकतंत्र में असंतोष का तरीका  एक जैसा नहीं हो सकता।  "हालांकि, एक कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार के अस्तित्व की सराहना करते हुए ... हमें यह स्पष्ट रूप से साफ करना होगा कि सार्वजनिक तरीके और सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह से कब्जा नहीं किया जा सकता है और वह भी अनिश्चित काल के लिए।"

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत का फैसला वकील अमित साहनी द्वारा दाखिल याचिका पर आया था जिसमे शाहीनबाग क्षेत्र में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ 'सड़क की नाकाबंदी' कर धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों को वहां से हटाने की मांग की गई थी। यह माना गया था कि शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन एक सार्वजनिक रास्ते का अवरोध था, जिससे यात्रियों को काफी असुविधा होती थी। बता दें कि प्रदर्शन पर बैठे लोगों को बाद में कोविड 19 महामारी के कारण क्षेत्र से हटा दिया गया।

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