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सबरीमाला: मंदिर की देखभाल करने वाला बोर्ड SC में नहीं देगा कोई रिपोर्ट

सबरीमाला मंदिर महिलाओं के प्रवेश को लेकर जारी गतिरोध के बीच मंदिर की देखरेख करने वाले ट्रावणकोर...
सबरीमाला: मंदिर की देखभाल करने वाला बोर्ड SC में नहीं देगा कोई रिपोर्ट

सबरीमाला मंदिर महिलाओं के प्रवेश को लेकर जारी गतिरोध के बीच मंदिर की देखरेख करने वाले ट्रावणकोर देवासम बोर्ड ने फैसला किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट में गतिरोध से संबंधित कोई भी रिपोर्ट फाइल नहीं करेगा। बोर्ड ने यह फैसला बुद्धवार को लिया जबकि एक दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर दायर 19 याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 13 नवंबर की तारीख निर्धारित की है और केरल के मुख्यमंत्री ने कहा कि वह कोई भी पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगी।

बोर्ड के अनुसार इस समय रिपोर्ट फाइल करने का कोई औचित्य नहीं है। बोर्ड के सदस्य के.पी. शंकर दास का कहना है कि यदि कोर्ट कहेगा तो डिटेल रिपोर्ट फाइल की जाएगी।

बोर्ड द्वारा रिपोर्ट फाइल न करने का फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले स्वयं बोर्ड ने कहा था कि वह ऐसा करेगा। फिर बीते हुए मंगलवार को केरल सरकार ने बताया था कि वह सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगी। मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने कहा था कि सरकार श्रद्धालुओं के मंदिर जाने और पूजा करने की पूरी व्यवस्था करेगी। “हम कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे। किसी को कानून अपने हाथों में लेने का अधिकार नहीं है।“
मुख्यमंत्री ने मुख्य पुजारी और पंडालम शाही पारिवार की भी आलोचना की थी। मंदिर के मुख्य पुजारी राजीवरू ने कहा था कि अगर महिलाओं को मंदिर के अंदर प्रवेश करने दिया गया तो वे मंदिर के कपाट बंद कर देंगे।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश न देने के बीच प्रदर्शनकरियों द्वारा ने 23 अक्टूबर को कुल 19 पुनर्विचार की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं, जिनपर सुप्रीम कोर्ट को 24 अक्टबर को सुनवाई करनी थी लेकिन अब इन याचिकाओं पर 13 नवंबर को सुनवाई होगी।

बता दें कि सबरीमाला मंदिर में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद कुछ महिलाओं ने मंदिर के अंदर जाने की कोशिश की लेकिन कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे लोगों ने उन्हें अंदर जाने से रोका है। जहां एक तरफ प्रदर्शनकारी धार्मिक मान्यताओं-परंपराओं का हवाला देकर महिलाओं को प्रवेश नहीं करने दे रहे हैं, वहीं प्रशासन के सामने कोर्ट के फैसले को लागू करने की चुनौती है।

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