न्यायमूर्ति आर.के अग्रवाल और एस.के कौल की अवकाशकालीन बेंच ने केंद्र को नोटिस जारी किया है। साथ ही, पीठ ने अधिसूचना को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग याचिकाओं पर दो सप्ताह के अंदर जवाब देने के लिए कहा है। वहीं, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिमा ने पीठ को बताया कि अधिसूचना लाने के पीछे देशभर में मवेशी व्यापार पर एक नियामक शासन होना था। साथ ही, उन्होंने कोर्ट को बताया कि मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में इस अधिसूचना पर अंतरिम रहने की मंजूरी दे दी है।
गौरतलब है कि हैदराबाद के वकील फाहिम कुरैशी ने केंद्र सरकार के आदेशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। फाहिम ने अपनी याचिका में कहा है कि सरकार का आदेश संविधान के अनुरुप नहीं है, क्योंकि यह जानवरों की खरीद फरोख्त करने वाले व्यापारियों से उनके कमाने का जरिया छीनने जैसा है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे सबसे ज्यादा असर उन गरीब किसानों पर पड़ेगा, जो अपने बीमार पशुओं को काटने के लिए बेच देते थे। इसके साथ ही देश की मीट इंडस्ट्री पर भी इसका असर देखने को मिलेगा, जो कि इस वक्त 1 लाख करोड़ रुपये का सालाना कारोबार करता है। याचिका में फाहिम ने सरकार पर यह आरोप भी लगाया गया है कि वो पिछले दरवाजे से बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे को भी आगे लेकर के आ रही है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने 25 मई को आदेश जारी करते हुए गाय, भैंस को काटने के लिए खरीदने और बेचने पर रोक लगा दी थी।