प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति यू ललित की पीठ ने कहा कि एसजीपीसी की ताजा याचिका को इससे संबंधी अन्य लंबित मामलों के साथ जोड़ा जाएगा और इसकी सुनवाई पांच अप्रैल को की जाएगी। पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान एसजीपीसी की ओर से पेश अधिवक्ता सतिंदर सिंह गुलाटी से उन क्षेत्रों का जिक्र करने को कहा जिनमें उप-न्यायिक आदेश पारित किए जा सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘हमें बताइए कि ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जिनमें हम कुछ कर सकते हैं। यदि पूरा समुदाय उत्पीड़ित महसूस कर रहा है तो हम निश्चित ही इस मामले पर गौर करेंगे। एसजीपीसी के वकील ने कहा, ‘एक रूढ़िवादी धारणा पैदा की गई है और एक विशेष भाषा एवं धर्म के कारण समाज में सिखों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।’ पीठ ने वकील से सुझाव देने को कहा और उन्हें भरोसा दिलाया कि वह निश्चित ही इन मामलों पर गौर करेगी।
इससे पहले सिखों पर चुटकुलों के खिलाफ दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधन समिति (डीएसजीएमसी) की एक पृथक याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि समाज को निर्माणात्मक चरणों से संवेदनशील बनाए जाने की आवश्यकता है। समिति से सुझाव मांगने वाले न्यायालय ने कहा था कि यदि चुटकुलों का प्रसार वाणिज्यिक मकसद के लिए किया जाता है तो वह उन्हें रोक सकता है और वह साइबर जगत में जातिवादी या सांप्रदायिक चुटकुलों का प्रसार रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की समीक्षा करेगा।
डीएसजीएमसी की याचिका भी न्यायालय में लंबित है। डीएसजीएमसी ने दूरसंचार मंत्रालय को सिख समुदाय को निशाना बनाने वाली वेबसाइटों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए जाने की मांग की है। उसका कहना है कि यह आईपीसी की धाराओं 153ए और 153बी का उल्लंघन है। डीएसजीएमसी ने कहा था कि समुदाय सिखों, बिहारियों पर चुटकुले बनाने एवं प्रसारित करने और पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को विशेष नाम से पुकारे जाने के खिलाफ है।
महिला वकील हरविंदर चौधरी द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका में दावा किया गया है कि समुदाय के बमुश्किल 300 लोग या उनमें से कुछ ही लोग ऐसे चुटकुलों का आनंद लेते हैं और इस मामले पर सामाजिक पहलुओं का प्रभाव पड़ा है। उच्चतम न्यायालय ने चार जनवरी को कहा था कि वह सिखों पर चुटकुले दिखाने वाली वेबसाइटें प्रतिबंधित करने वाली याचिका पर गंभीरता से विचार करेगा।