इसमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मशावरत, जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमीयत अहले हदीस, मिल्ली काउंसिल समेत कई मुस्लिम संगठनों के रहनुमा मौजूद थे।
जमात-ए-इस्लामी हिंद के सचिव सलीम इंजिनियर ने सवाल उठाया एंजेसियां और उससे जुड़े लोग मेडल पाने और अपना बजट सरकार से बढ़वाने के लिए मुसलमान नौजवानों को टारगेट कर रहे हैं। उन्होने मांग रखी कि जिन नौजवानों को इन एजेंसियों और पुलिस के लोगों ने बेकसूर होते हुए भी गिरफ्तार किया था और उन्होने अपनी जिंदगी के 10-10 साल जेल में काटे। बाद में अदालत ने उनकी बेगुनाही पर मोहर लगाई। ऐसे लोगों को उन्ही अफसरों का वेतन काटकर मुआवजा दिया जाना चाहिए। मुस्लिम संगठनों ने इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले युवाओं की गिरफ्तारी के मामले में सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि आखिर हमारे देश में कैसे अभी भी देश विरोधी वेबसाइट्स चल रही हैं। सरकार के लोग उन वेबसाइट्स को बंद करने में क्यों नाकाम रहे हैं। जमीयत उलेमा हिंद उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष अशहद रशीदी ने कहा कि जिन लोगों को पिछले कुछ सालों में एजेंसियों ने आंतकी बताकर गिरफ्तार किया है उनमें से 90 फीसदी से भी ज्यादा लोगों को अदालत ने बरी किया है। ये सब एजेंसियां ऐसा सिर्फ तगमें पाने के लिए करती हैं जबकि आजतक उन मामलों के असली मुजरिम नहीं पकड़े गए,जो धमाकों या देश के खिलाफ साजिश रचने में शामिल रहे हैं।
मुस्लिम संगठन मीडिया से भी नाराज दिखे, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मशावरत के अध्यक्ष नवेद हामिद ने कहा कि मीडिया किसी भी मुसलमान की गिरफ्तारी के बाद उसे खूंखार आंतकी कहता है। उसके बेकसूर साबित होने पर एक खबर तक नहीं दिखाई जाती। देश में बढ़ रहा ये भेदभाव बहुत ज्यादा खतरनाक है।