हालांकि, अदालत ने अभी तक नियुक्त हुए सभी इलेक्शन कमिश्नरों की तारीफ करते हुए उन्हें बेदाग करार दिया। लेकिन कहा कि फिर भी चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए कानून जरूरी है। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को याद दिलाया कि संविधान संसद से यह उम्मीद करता है कि वह इस दिशा में कानून बनाए। कोर्ट ने कहा कि लेकिन अभी तक सरकार ने ऐसा नहीं किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल रनजीत कुमार से पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट को खुद दखल देते हुए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर नियम बनाने चाहिए, ताकि आयुक्तों की स्वायत्तता बरकरार रह सके। इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने भी कोर्ट से एक सवाल पूछा कि अगर संसद को लगता है कि इस पर कानून बनाने की जरूरत नहीं है तो क्या सुप्रीम कोर्ट को विधायिका में दखल देकर नियम बनाने चाहिए? इसके बाद कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले पर विस्तृत सुनवाई के बाद फैसला लेगा, अब इस मामले पर दो महीने बाद सुनवाई की जाएगी।
पीआईएल की सुनवाई के दौरान की टिप्पणी
गौरतलब है कि कोर्ट ने यह टिप्पणी एक पीआईएल की सुनवाई के दौरान की। इस मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच कर रही है। जस्टिस दीपक, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस खेहर के अगस्त में रिटायर होने के बाद चीफ जस्टिस का पद संभालेंगे। फिलहाल, अभ्ाी प्रधानमंत्री और मंत्रियों की काउंसिल इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति पर फैसला लेती है। इसके बाद उसकी सिफारिश पर राष्ट्रपति कमिश्नर की नियुक्ति करते हैं।