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लोग आइएएस बनने में जिंदगी गुजार देते हैं, वो आइएएस बनकर भी जी ना सके

प्रशासनिक अधिकारियों में भी आत्महत्या करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है।
लोग आइएएस बनने में जिंदगी गुजार देते हैं, वो आइएएस बनकर भी जी ना सके

इटैलियन फिल्म 'द बाइसिकल थीफ' का एक डायलॉग है- ''दुनिया में हर चीज सुलझाई जा सकती है, सिवाय मौत के'' लेकिन लोग चीजों को सुलझाने के बजाए मौत को ही अंतिम समाधान मान लेते हैं और इसके लिए आत्महत्या ही उन्हें आखिरी विकल्प लगता है। वह कौन सा मनोविज्ञान है जो किसी को अपनी जान लेने पर मजबूर कर देता है।

परिस्थितियां निश्चित तौर पर अपनी भूमिका निभाती हैं। आत्महत्या की प्रवृत्ति आर्थिक तौर से कमजोर लोगों से लेकर अच्छे-खासे संपन्न लोगों में पाई जाती है। जाहिर है पैसा हमेशा आत्महत्या का कारण नहीं होता। बहुत से सामाजिक कारण भी काम कर रहे होते हैं। किसानों से लेकर उच्च पद के अधिकारियों तक में अलग-अलग वजहों से आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। अब तो ब्लू व्हेल गेम के नाम पर खेल-खेल में भी लोग अपनी जान देने लगे हैं।

शुक्रवार को खबर आई कि बिहार के बक्सर में एक हफ्ते पहले डीएम नियुक्त किए गए मुकेश पांडेय ने गाजियाबाद में रेलवे ट्रैक में आत्महत्या कर ली। उनके पास से सुसाइड नोट बरामद हुआ और एक दूसरा सुसाइड नोट लीला होटल के कमरे से बरामद हुआ, जहां वह ठहरे हुए थे। इस नोट से लगता है कि वे पारिवारिक कारणों से परेशान चल रहे थे।

प्रशासनिक अधिकारियों से जुड़े दूसरे मामले

ऐसे ही 16 मार्च, 2015 को कर्नाटक के एक कम उम्र के आइएएस अधिकारी डीके रवि ने आत्महत्या कर ली थी। पुलिस ने बाद में व्यक्तिगत कारणों को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया था।

एक और मामले में 18 मई 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक काडर के आईएएस अधिकारी अनुराग तिवारी की हजरतगंज (लख्‍ानऊ) में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी।

12 मार्च, 2012 को बिलासपुर के एसपी राहुल शर्मा ने कथित तौर पर सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा था, मैं इस जीवन से तंग आ गया हूं, इस तरह के बॉस और दंभ्‍ाी जज के साथ्‍ा। उन्होंने मेरे मन की शांति छीन ली है, मेरे परिवार को संकट में डाल दिया है। मैंने अपमान के ऊपर मौत चुनी। सॉरी गायत्री (पत्नी)। बच्चों का ख्याल रखना।

कारण

कई मामलों में अधिकारियों के आत्महत्या के पीछे के कारण राजनीतिक भी होते हैं। दिल्ली के मुखर्जीनगर, राजेंद्र नगर से लेकर इलाहाबाद जैसे छोटे शहरों में बड़ी संख्या में लोग आइएएस, आइपीएस अधिकारी बनने का ख्वाब लिए तैयारी कर रहे होते हैं। बहुतों की इसमें जिंदगी गुजर जाती है, कुछ सफल होते हैं, कुछ असफल।

देश की सबसे कठिन माने जाने वाली यूपीएससी परीक्षा को पास करने के बाद आए तमाम लोगों में पहले तो व्यवस्था को बदलने का जुनून होता है। लेकिन धीरे-धीरे अंदर की कमियों को देखने के बाद बहुत से लोग हताश हो जाते हैं। कुछ इससे समझौता कर लेते हैं और तय जिम्मेदारियों का पालन करते रहते हैं और कई लोग तय सीमाओं के बीच बदलाव की कोशिश करते हैं। कुछ ईमानदार बने रहने की कोशिश करते हैं और सफल भी होते हैं लेकिन बहुत से इसमें असफल हो जाते हैं। रातों-रात बदलाव लाने या ईमानदार बने रहने के दबाव में जो समझौता नहीं कर पाते वे या तो आत्महत्या कर लेते हैं या राजनीतिक वजहों से कभ्‍ाी-कभ्‍ाार उनकी हत्या हो जाती है।

पारिवारिक और व्यक्तिगत समस्याओं की वजह से आत्महत्या करने वाले अधिकारियों को देखकर लगता है कि इन समस्याओं का सामना करने के मामले में ये लोग भी आम इंसान जैसे ही होते हैं। अंत में तो सभी इंसान होते हैं लेकिन पूरे परिवार को पीछे छोड़कर आत्महत्या का विकल्प चुन लेना किसी के लिए भी अंतिम विकल्प नहीं हो सकता है। ये समाज के जरूरी अंग के तौर पर हमारी नाकामी है। आदमी को ऊपर लिखे 'द बाइसिकल थीफ' का डायलॉग हमेशा याद रखना चाहिए।

''दुनिया में हर चीज सुलझाई जा सकती है, सिवाय मौत के।''

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