कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने पटना के डिस्ट्रिक्ट बोर्ड बिल्डिंग को गिराने का आदेश दिया था और अब खबर आ रही है कि शनिवार को बुलडोजरों ने पटना कलेक्ट्रेट में ब्रिटिश काल के जिला बोर्ड भवन के सामने के स्तंभों को गिरा दिया।
जिन स्तंभों को गिराया गया है उसमें से कुछ डच युग में बने थे। इस घटना से भारत और विदेशों में विरासत प्रेमियों के बीच शोक की लहर दौड़ गई है। बिल्डिंग को गिराते हुए बुलडोजर की तस्वीर को सोशल मिडिया पर इतिहासकारों, संस्कृतिकर्मीयों और आंदोलनकारियों द्वारा खूब शेयर किया जा रहा है जो साल 2019 से ही इसे बचाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।
बता दें कि राज्य सरकार ने 2016 में पुराने पटना कलेक्ट्रेट को एक नए गगनचुंबी परिसर में तब्दील करने के लिए ध्वस्त करने का प्रस्ताव दिया था, जिससे सार्वजनिक आक्रोश उपजा था और भारत और विदेशों से भी इसे रोकने के लिए अपील की गई थी।
जिस परिसर को गिराया जा रहा है उसके कुछ हिस्से 250 साल से अधिक पुराने हैं, जो गंगा के तटपर स्थित हैं। कलेक्ट्रेट बिहार की राजधानी में डच वास्तुकला के अंतिम जीवित हस्ताक्षरों में से एक है। परिसर में ब्रिटिश युग की संरचनाओं में डीएम कार्यालय भवन और जिला बोर्ड भवन शामिल हैं।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने कहा कि औपनिवेशिक युग की हर इमारत को संरक्षित करने की आवश्यकता नहीं है और दिल्ली स्थित इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि अगर यह एक ऐसी इमारत होती जिसमें स्वतंत्रता सेनानियों को रखा जाता था, तो यह एक विरासत हो सकती थी लेकिन इसका इस्तेमाल डचों द्वारा अफीम और नमक के भंडारण के लिए किया जाता था।
बेंच ने कहा, "हमारे पास औपनिवेशिक युग से बड़ी संख्या में इमारतें हैं। कुछ ब्रिटिश युग से हैं, कुछ डच युग से हैं, और कुछ केरल और अन्य स्थानों में फ्रांसीसी युग से भी हैं। कुछ इमारतों का ऐतिहासिक महत्व हो सकता है लेकिन सभी इमारतों का ऐसा मूल्य नहीं है।" गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 2016 में पुराने ढांचे को तोड़कर 12 एकड़ के परिसर में एक नया समाहरणालय परिसर बनाने का प्रस्ताव रखा था।