केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना कराने के ऐलान के बाद भारतीय राजनीति में हलचल तेज हो गई है। इस मुद्दे पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच तीखी नोकझोंक शुरू हो गई है। कांग्रेस ने इस फैसले को अपनी जीत बताते हुए नारा दिया, "सरकार तुम्हारी, सिस्टम हमारा," जिसका बीजेपी ने करारा जवाब दिया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस पर पलटवार किया।
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, "कांग्रेस की कुंठा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ है। 1951 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार थी, तब भी जातिगत जनगणना नहीं हुई। कांग्रेस हमेशा आदिवासी, ओबीसी और वंचित वर्गों के खिलाफ रही है।" वहीं चिराग पासवान ने भी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, "आजादी के बाद सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में कांग्रेस रही, फिर भी उन्होंने यह कदम नहीं उठाया। अब हमारी सरकार ने यह ऐतिहासिक फैसला लिया है।"
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस फैसले को अपनी पार्टी की लंबे समय से चली आ रही मांग की जीत करार दिया। उन्होंने कहा, "हमने संसद में बार-बार जातिगत जनगणना की मांग की थी। यह सामाजिक न्याय की दिशा में पहला कदम है।" कांग्रेस का दावा है कि बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में उनकी सरकारों ने जातिगत सर्वेक्षण शुरू किए, जिसने केंद्र पर दबाव बनाया।
दूसरी ओर, बीजेपी ने इस कदम को रणनीतिक बताया और कहा कि यह फैसला अचानक नहीं, बल्कि सामाजिक समावेशिता को बढ़ाने के लिए सोचा-समझा कदम है। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह घोषणा बीजेपी की मजबूरी है, क्योंकि नीतीश कुमार और आरजेडी जैसे सहयोगी दलों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जातिगत जनगणना का मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद और महत्वपूर्ण हो गया है, जब विपक्ष ने इसे बीजेपी के खिलाफ हथियार बनाया। बीजेपी की कोशिश है कि इस फैसले से वह ओबीसी और पिछड़े वर्गों के बीच अपनी पैठ बनाए रखे, लेकिन सवर्ण वोटरों के नाराज होने का खतरा भी बना हुआ है।यह विवाद अभी और गहराने की संभावना है, क्योंकि दोनों पार्टियां इसे अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने का अवसर मान रही हैं।