संसद का बजट सत्र शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण के साथ विधिवत रूप से शुरू हुआ। उन्होंने लोकसभा में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित किया। उनके अभिभाषण के बाद, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा और राज्यसभा में आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया। अब देश की नजरें वित्त मंत्री द्वारा पेश किए जाने वाले केंद्रीय बजट पर टिकी हैं, जो उनका लगातार आठवां बजट होगा। जैसे-जैसे बजट की घड़ी नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे इस पर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज़ हो गई है। विपक्षी दलों ने सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
'मोदीनॉमिक्स' पर प्रहार
कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, "व्यक्तिगत रूप से मुझे इस बजट से कोई उम्मीद नहीं है। हमने मोदीजी के मास्टरस्ट्रोक 'मोदीनॉमिक्स' को पिछले 10 वर्षों में बखूबी देखा है, और इसका क्या नतीजा हुआ? देश में बेरोजगारी अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है, एसएमई (छोटे एवं मध्यम उद्योग) और एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग) बुरी तरह प्रभावित हो चुके हैं, किसान आज भी अपने हक के लिए संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर हैं।"
खड़गे ने केंद्र की कई प्रमुख योजनाओं पर भी सवाल उठाते हुए कहा, "मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम केवल कागज़ों तक सीमित रह गए हैं और चुनावी नारों से अधिक कुछ नहीं हैं। वास्तविकता यह है कि स्टार्टअप कंपनियां संघर्ष कर रही हैं, विदेशी निवेश (FDI) में भारी गिरावट आई है, और बीते महीने ही नौ बिलियन डॉलर से अधिक का पूंजी निकासी हो चुकी है।"
इसके अलावा, खड़गे ने अपने राज्य कर्नाटक को बजट में उचित हिस्सेदारी न मिलने पर भी केंद्र सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा, "निर्मला सीतारमण को कम से कम शिष्टाचारवश कर्नाटक के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी, क्योंकि कर्नाटक की जनता ने उन्हें दो बार संसद तक भेजा है। लेकिन कर हस्तांतरण और अन्य वित्तीय मामलों में राज्य की उपेक्षा की गई है।"
हिमाचल को नहीं मिली कोई खास सहायता
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता कुलदीप राठौर ने भी बजट को लेकर केंद्र पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "यह भाजपा सरकार का तीसरा कार्यकाल है, फिर भी हिमाचल प्रदेश को केंद्रीय बजट में कोई विशेष सहायता नहीं मिली है। इस बार भी हमें किसी बड़े सहयोग की उम्मीद नहीं है।" राठौर ने पिछले साल के बजट में किए गए वादों की याद दिलाते हुए कहा, "पिछले बजट में वित्त मंत्री ने प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हिमाचल प्रदेश को मदद देने की बात कही थी, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। इसके विपरीत, पड़ोसी पर्वतीय राज्यों को केंद्र से अधिक वित्तीय सहायता मिली। हिमाचल के प्रति यह भेदभाव क्यों?"
शिवसेना (यूबीटी) ने भी सरकार को घेरा
शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता आनंद दुबे ने भी मौजूदा आर्थिक हालात पर चिंता जताई और केंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा, "पिछले दस वर्षों में महंगाई बेलगाम हो गई है। बुनियादी सुविधाओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन आम आदमी को राहत देने की कोई ठोस योजना सरकार के पास नहीं दिखती।"
उन्होंने आगे कहा, "आज भी 80 करोड़ लोग मुफ्त अनाज के लिए कतारों में खड़े हैं। यह आंकड़ा बताता है कि देश में आर्थिक असमानता कितनी बढ़ गई है। सरकार को करों में कटौती करनी चाहिए और किसानों को सीधा लाभ देना चाहिए, लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही। रोजगार का मुद्दा भी नेपथ्य में चला गया है। पिछले 10 सालों से सरकार सिर्फ लोगों की भावनाओं से खेल रही है।"
बजट से जनता की उम्मीदें
इस बजट से देश की जनता को कई उम्मीदें हैं, विशेष रूप से मध्यम वर्ग, किसानों और बेरोजगार युवाओं को राहत मिलने की आस है। उद्योग जगत भी इस बार कर ढांचे में सुधार और निवेश को बढ़ावा देने वाले कदमों की उम्मीद कर रहा है। अब देखना होगा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने बजट में किन प्राथमिकताओं को तरजीह देती हैं और क्या यह आम जनता की उम्मीदों पर खरा उतर पाएगा या नहीं।