चंडीगढ़, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह द्वारा 2021 -22 के लिए गन्नो की पिढ़ाई सीजन के लिए राज्य में गन्ने का भाव 360 रुपए प्रति क्विंटल करने के ऐलान के समर्थन के तौर पर पंजाब के गन्ना किसानों ने मंगलवार को अपना संघर्ष ख़त्म करने का फ़ैसला किया।
यह मामला आज मुख्यमंत्री की किसान यूनियन नेताओं के साथ मीटिंग में हल हुआ जहाँ कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने राज्य में ऐलाने जाते गन्ने के भाव (एस.ए.पी.) में वृद्धि की सहमति देते हुये कहा कि पिछले तीन-चार सालों में राज्य की वित्तीय स्थिति के कारण सरकार को गन्ने का उपयुक्त भाव बढ़ाने के लिए रोके रखा। किसान यूनियन नेताओं ने पहले कहा कि पंजाब इस समय के दौरान हरियाणा की तर्ज़ पर गन्ने का भाव बढ़ाने में नाकाम रहा है जिससे किसानों को वित्तीय नुकसान हुआ है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस समस्या के लिए किसानों पर दोष नहीं दिया जा सकता जो कि पंजाब के बुरे वित्तीय हालातों के कारण पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि वह हमेशा किसानों के साथ हैं और उनकी भलाई के लिए हमेशा अपना सर्वोत्तम करना चाहते हैं, राज्य के वित्तीय संकट के कारण वह पहले गन्ने का भाव बढ़ा नहीं सके। उन्होंने कहा कि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों के मद्देनज़र सहकारी और प्राईवेट चीनी मिलों से जुड़े किसानों की ज़रूरतों का संतुलन बनाना बहुत कठिन है।
राणा गुरजीत सिंह जो कांग्रेस के विधायक के अलावा स्वयं चीनी मिल के मालिक भी हैं, ने गन्ने का भाव बढ़ाने के लिए किसानों की माँग की हिमायत की।
संयुक्त किसान मोर्चा जो बीते कई दिनों से गन्ना किसानों का आंदोलन चला रहा है, का प्रतिनिधित्व कर रहे किसान यूनियनों के नेताओं ने मुख्यमंत्री की तरफ से उनकी समस्या सुलझाने और गन्ने के भाव में वृद्धि का ऐलान करने के लिए धन्यवाद किया। उन्होंने दिल्ली की सरहदों में खेती कानूनों के विरुद्ध चल रहे संघर्ष में अपनी जानें गंवाने वाले पंजाब के किसानों के एक-एक पारिवारिक मैंबर को नौकरी और 5 लाख रुपए का मुआवज़े देने के कदम की भी सराहना की।
मुख्यमंत्री की तरफ से माँग को स्वीकृत करने से ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए बलबीर सिंह राजेवाल समेत संयुक्त मोर्चो के प्रतिनिधियों ने उनका मुँह मीठा करवाया।
मीटिंग में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों में से राजेवाल के अलावा कुलवंत सिंह संधू, हरमीत कादियाँ, जंगवीर सिंह चौहान, हरिन्दर सिंह लक्खोवाल, मुकेश चंद्र, कुलदीप सिंह वजीदपुर, बलदेव सिंह सिरसा, बलदेव सिंह दप्पर और बलविन्दर सिंह औलख उपस्थित थे।