राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने देश में नमक और चीनी के सभी ब्रांड में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के मामले में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) और अन्य से जवाब तलब किया है।
अधिकरण एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने फाइबर, छर्रे, फिल्म और टुकड़ों सहित विभिन्न रूपों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के बारे में ‘पीटीआई’ की रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया था। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 23 अगस्त को पारित आदेश में कहा, ‘‘समाचार के जरिये यह बात उजागर हुई है कि इन माइक्रोप्लास्टिक का आकार 0.1 मिमी से लेकर पांच मिमी तक था। आयोडीन-युक्त नमक में माइक्रोप्लास्टिक का उच्चतम स्तर बहुरंगी पतले रेशों और फिल्मों के रूप में पाया गया।’’
चीनी के नमूनों में, माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता 11.85 से लेकर 68.25 टुकड़े प्रति किलोग्राम तक थी। सबसे अधिक सांद्रता गैर-कार्बनिक चीनी में पाई गई।
विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की पीठ ने कहा, ‘‘समाचार में यह भी उजागर हुआ है कि माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव डाल सकती है। लेख में दावा किया गया है कि औसत भारतीय प्रतिदिन 10.98 ग्राम नमक और लगभग 10 चम्मच चीनी खाता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसित सीमाओं से बहुत अधिक है।"
इसने कहा कि समाचार रिपोर्ट में पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन के बारे में एक "महत्वपूर्ण मुद्दा" उठाया गया है।
न्यायाधिकरण ने एफएसएसएआई के सीईओ, आईसीएमआर और भारतीय विषज्ञान अनुसंधान संस्थान के सचिवों और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को पक्षकार या प्रतिवादी बनाया है